हक बराबर का – संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

” सुनो जी जरा दो हजार रूपए देना वो क्या है की मुझे गर्मियों के लिए कुर्तियां लानी है !” नताशा अपने पति कार्तिक से बोली।

” अरे इतने कपड़े है तो वैसे भी तुम्हे कौन सा कमाने कही जाना होता है जो तुम्हे नई कुर्तियां चाहिए जो है पुरानी मे काम चलाओ। “कार्तिक बोला!

” भले मैं कमाने नही जाती पर बाज़ार के सारे काम करने , बेटे को स्कूल से लाना और बाकी सभी काम मुझे ही करने पड़ते है !” नताशा चिढ कर बोली।

” हां तो उसमे नए कपड़ों की क्या जरूरत । उन पत्नियों को ज्यादा पैसे नही खर्च करने चाहिए जो कमाती नही है !” हर बार की तरह कार्तिक ने अपना डायलॉग दोहरा दिया। ऐसा आज नही हुआ जबसे नताशा शादी करके आई है ये डायलॉग बहुत बार सुन चुकी है ऐसा नही की कार्तिक कम कमाता है या कम खर्च करता है

पर नताशा को पैसे देने मे उसका यही जवाब होता है। बल्कि अब तो कार्तिक उसे छोटी छोटी चीजों के लिए पैसे देने से भी मना कर देता है हालांकि वो अपनी तरफ से पैसे खर्च करने मे कंजूसी भी नही बर्तता नताशा या बेटे के लिए खुद से चीजे लाता रहता है पर जब नताशा पैसे मांगे तो उसे यही डायलॉग मारता है कि तुम कमाती नही तो तुम्हे ज्यादा पैसे खर्च करने का भी हक नही ये बात नताशा को बहुत खलती है। नताशा ज्यादा पढ़ी लिखी भी नही जो कहीं नौकरी कर ले इस लिए मन मसोस कर रह जाती है हरबार।

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” अरे ये इतने सारे बैग्स क्या खरीद लाये ऐसा ?” अगले दिन कार्तिक ऑफिस से लौटा तो उसके हाथ मे बैग्स देख नताशा ने पूछा।

” सभी दोस्त मॉल जा रहे थे वहाँ अच्छा समर कलेक्शन आया था तो मैने अपने लिए ये चार शर्ट और दो ट्रॉउज़र खरीद लिए !” कार्तिक बैग्स खोलता हुआ बोला।

” पर आपके पास तो इतने कपड़े है विंटर शुरु होने से पहले भी आप सेल मे से लाये थे शर्ट ट्रॉउज़र !” नताशा बोली।

” हां तो मैं कमाता हूँ ऑफिस जाता हूँ हजार लोगों से मिलता हूँ मेरे पास जितने कपड़े हो कम है। वैसे भी मैं कमाता हूँ तो मुझे पूरा हक है खर्च करने का  !” ये बोल कार्तिक अंदर चला गया।

 नताशा को बहुत तेज गुस्सा आया “अब पानी सिर से गुजर चुका था अब कार्तिक को सबक सिखाना जरूरी है । उसे ये बताना जरूरी है कि भले मैं कमाती नही पर घर संभालती हूँ तो मेरी भी उतनी ही वैल्यू है जितनी उसकी।” उसने मन ही मन सोचा।

” ये क्या नताशा इतना कम खाना तुम्हे पता है मुझे खाने मे कम से कम दो सब्जी चाहियें वो भी कटोरी भरकर और तुम मुझे ये जरा सी सब्जी और एक रोटी दे रही हो जबकि तुम्हारी प्लेट मे दो सब्जी, दही , सलाद सब है !” खाने की मेज पर कार्तिक अपनी प्लेट देख गुस्से से बोला।

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” हां तो मैं बनाती हूँ खाना मुझे तो पूरा हक है अच्छे से खाने का आप कौन सा खाना बनाते है अरे खाना क्या आप तो एक गिलास पानी तक नही ले सकते खुद से । अब मैं जब इतनी मेहनत करती हूँ तो मुझे तो इतना सब खाना ही चाहिए। वैसे भी जो नही बनाता उसे शिकायत का भी हक नही !” नताशा खाते हुए लापरवाही से बोली। 

” ये जो तुम खा रही हो ना इसका सामान मेरे कमाए पैसों से आता है !” कार्तिक गुस्से मे चिल्लाया।

” सामान रसोई मे रखा है आप बना लो अपने आप !” नताशा शांत लहजे मे बोली।

कार्तिक ने गुस्से मे प्लेट खिसका दी और सोफे पर जा बैठ गया  क्योकि उसे खाना तो क्या चाय तक बनानी नही आती थी।  नताशा का एक बार तो मन किया कार्तिक को खाना खिला दे पर फिर उसने खुद को मजबूत किया और चुपचाप खाती रही क्योकि वो जानती थी कार्तिक बाहर का खाना  खाता नही और भूखा रह नही सकता तो उसे सुधारने का यही तरीका है।

 नताशा खाना खा बर्तन उठा कर रसोई मे ले गई और रसोई संगवाने लगी उधर कार्तिक का भूख से हाल बेहाल होने लगा उसने फलों की टोकरी की तरफ देखा पर वहाँ एक भी फल नही था। उसे नही पता था नताशा ऐसा भी कर सकती है कि उसके डायलॉग से उसी पर वार करे। 

काफी देर तक वो सोचता रहा नताशा अपने काम निपटा कमरे मे चली गई । कार्तिक भूख से बेहाल हो रसोई मे आया कि शायद कुछ खाने को मिल जाये। पर ये क्या वहाँ तो कुछ नही था उसने फ्रीज़ खोल कर दूध लेना चाहा पर वहाँ दूध तक नही था। अब कार्तिक के लिए भूख बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। साथ ही उसे एहसास होने लगा उसकी बात का नताशा को कितना बुरा लगता होगा क्योकि नताशा ने तो आज ये बात कही है जबकि वो तो सालों से नताशा के साथ यही कर था है ।

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” नताशा मुझे माफ़ कर दो शायद तुम सही हो मैं गलत !” कमरे मे आ कार्तिक नताशा से बोला।

” शायद ?” नताशा आँखे तरेर कर बोली। 

” नही नही मैं गलत हूँ तुम्हे भी अपने लिए पैसे खर्च करने का उतना ही हक है जितना मुझे ये बात मुझे समझ आ गई क्योकि तुम कमाती भले नही पर घर तो चलाती हो …पर मुझे भी खाने का उतना ही हक है क्योकि मैं भले बनाता नही पर कमाता तो हूँ !” कार्तिक मासूमियत से बोला तो नताशा को हंसी आ गई।

” अब आया ना ऊंट पहाड़ के नीचे चलिए आपको ये बात समझ आ गई अच्छा है अब मैं सो जाऊं !” नताशा लेटते हुए बोली।

” यार नताशा प्लीज थोड़ा बहुत कुछ बना दो आज तो तुमने मुझे सबक सिखाने को इतना कम खाना बनाया कि कुछ बचा ही नही !” कार्तिक बोला। 

” अच्छा आपको खाना खाना है चलिए तो मैं एक मिनट मे लाई पर हां आइंदा ध्यान रखना मैं कमाती नही तो ऐसा नही मुझे पैसे खर्च करने का हक नही क्योकि आप भी खाना बनाते नही हो पर खाने का हक है  !” नताशा हँसते हुए बोली और रसोई की तरफ चली गई कार्तिक मेज पर आ बैठ गया । दो मिनट बाद मन नताशा उसके लिए प्लेट लगा लाई जिसमे दो सब्जी , दही , सलाद सब था।

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” ये कहा से लाई तुम मुझे तो रसोई मे कुछ नज़र नही आया !” कार्तिक आश्चर्य से बोला।

” मुझे पता था आप मेरे जाने के बाद रसोई मे जाओगे इसलिए मैने प्लेट लगा माइक्रोवेव मे रख दी थी कि आप खा लोगे पर आपने सब जगह देखा वहीं नही देखा!” नताशा बोली। कार्तिक पत्नी को प्यार से देखने लगा नताशा ने एक कोर तोड़ उसके मुंह मे डाल दिया । 

दोस्तों कुछ घरों मे पतियों को बहुत घमंड होता है कि वो कमाते है ऐसे पति पत्नी को उसकी जरूरत के पैसे देने मे भी कंजूसी करते है जबकि ये सच है पत्नी कमाती नही पर पकाती वही है घर को घर वही बनाती है। यहाँ नताशा ने देर से ही सही कार्तिक को सबक सिखा दिया वरना तो ज्यादातर औरतें सारी जिंदगी कुढ़ती रहती है।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#हक

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