हैसियत ! – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

अंजना देख रही थी कि रागिनी और रमन के पांव आज जमीन पर नहीं पड़ रहे । उनके बच्चे भी खुशी से  इठलाते हुए घर-भर में घूमते फिर रहे थे। खुशी होती भी क्यों न उन्हें ? ‘किराएदार’ शब्द में छिपी सामाजिक अवहेलना तथा उसके कटु अनुभवों को झेलते हुए आज एक लंबे समय के बाद उन सबको मानो गुलामी से मुक्ति मिलने वाली थी । आज वे भी ‘मकानमालिक’ शब्द की सामाजिक गरिमा को पाने वाले थे।आज उनका सपनों के अपने घर में प्रवेश था।

   रागिनी और अंजना दोनों गहरी सखियां हैं। एक ही संस्था में काम करते-करते दोनों ने ‘सहकर्मी से गहरी सखी’ की दहलीज’ कब लांघ ली दोनों को ही पता नहीं चला।

     अंजना अच्छी तरह जानती है कि कितने आर्थिक संघर्षों के पश्चात् आज रागिनी और रमन का ‘अपना घर’ बनाने का सपना साकार हुआ था और आज अपने नए घर में प्रवेश करने के लिए ‘गृह-प्रवेश’ के नाम पर उन्होंने एक छोटा सा आयोजन किया था। ‘छोटा’ इसलिए क्योंकि यहां भी उनकी आर्थिक सीमाएं आगे आन खड़ी हुई थीं। इसलिए उन्होंने घर के आसपास के कुछ पड़ोसी तथा अपने कुछेक मित्र ही बुलाए थे।

    धीरे-धीरे अपने-अपने हाथों में,अपनी-अपनी हैसियत तथा रमन एवं रागिनी के साथ संबंधों की गहराई के हिसाब से रंग-बिरंगे चमकीले लाल-पीले, नीले-गुलाबी आदि कागजों में लिपटे उपहारों संग उन ‘थोड़े’ से मेहमानों का आना शुरु किया। 

       सबके हाथों में अलग-अलग आकार के उपहार देखकर अंजना सोच रही थी कि खुशी के अवसरों पर मिलने वाले ये ‘उपहार’ यद्यपि देने वाले की शुभकामनाओं का प्रतीक होते हैं, किंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अप्रत्यक्ष रूप से ये उपहार मिलने  वाले को उनकी सामाजिक औकात का आइना भी दिखा देते हैं। इन्हें लेन-देन का व्यापार भी कहा जा सकता है। कोई माने या न माने, किंतु इन्हें खरीदते समय ‘उन्होंने हमें क्या दिया था ?’ अथवा ‘वे क्या डिजर्व करते हैं ? या फिर उनसे कितने की उम्मीद रखी जा सकती है ?’ जैसे भाव उपहार खरीदने वाले पर हमेशा हावी रहते हैं। खैर…

      मेहमानों द्वारा ग्रहण किए गए उपहारों को एक स्थान पर रखते हुए रमन ने पंडितजी को  घर की शुद्धि एवं पवित्रता के लिए हवन आरंभ करने के लिए कहा । इस बीच दोनों बच्चों का ध्यान हवन में कम लेकिन सुंदर गिफ्ट्स पैक की ओर ही अधिक लगा रहा। मेजबान ने हवन समाप्ति के पश्चात् सभी मेहमानों के लिए जल-पान की व्यवस्था कर रखी थी। अतः पूर्णाहूति और प्रसाद देने के बाद उन्होंने बड़ी विनम्रता और स्नेह से सभी को जलपान का आग्रह किया।

      इस दौरान एक तरफ जहां हवन की समिधाओं से सारा घर सुगंधित हो उठा था,वहीं दूसरी तरफ वहां मेहमानों में उपस्थित उनकी दो पड़ोसिनें मिसीज वर्मा और मिसीज सक्सेना की फब्तियां लगातार अंजना के कानों को दूषित कर रही थीं, 

      ‘किचन में आजकल कौन मारबल लगवाता है ? अब तो ग्रेनाइट का ही चलन है न ?’ यह मिसीज वर्मा की खुसर-पुसर थी

  ‘ बिल्कुल ठीक कह रही हैं आप। अरे भई! हमारे घर को बने तो अब दस साल हो चुके हैं। हमने तो तभी ग्रेनाइट लगवा लिया था।’ मिसीज सक्सेना का दंभ साफ-साफ झलक रहा था।

  ‘दीवारों पर भी सिंपल पेंट करवाया है ? अब तो डिस्टैंपर ही करवाते हैं सब । नहीं क्या ?’  अपनी तेज दृष्टि से घर का मुआयना करते हुए मिसीज वर्मा ने अपनी राय पर सहमति चाही। 

   ‘अरे डिस्टैंपर करवाने और ग्रेनाइट लगवाने  के लिए इतनी ‘हैसियत’ भी तो होनी चाहिए न ! देखिए न ! स्नैक्स भी कुछ खास नहीं हैं।’ गुलाब जामुन की मिठास पर अपनी निंदक वाणी का कसैला लेप लगाते हुए मिसीज सक्सेना बोलीं। उनका दंभ अब अपनी सीमाएं लांघने को तैयार था।

   ‘हुम्म..रिश्तेदार तक भी नहीं बुलाए अपने। भला बिना रिश्तेदारों के भी कहीं फंक्शन होते है ‘ कहकर मिसीज वर्मा ने रागिनी की हैसियत पर पुन: प्रहार किया। 

     ‘आप भी कितनी भोली हैं मिसीज वर्मा! रिश्तेदारों को बुलाने के लिए औकात भी तो होनी चाहिए न ? मुझे तो लगता है कि मात्र उपहार इकट्ठे करने के लिए हम लोगों को बुला लिया गया है।’ कहकर सबसे नजरें चुराते हुए  मिसीज सक्सेना व्यंग्यात्मक रूप से हँस पड़ी पड़ीं।

     रागिनी तो इन सबसे बेखबर थी, लेकिन सहसा ‘मैडम !आपने अपने मेहमानों के साथ हम गरीब मजदूरों को बुलाकर पहले ही हमें इज्जत और प्यार का इतना बड़ा उपहार दे दिया है।अब इन उपहारों की क्या जरूरत है ?’  की आवाज से मिसीज वर्मा और मिसीज सक्सेना की ‘मीन मेख-गाथा’ पर स्वयं विराम लग गया। 

   अंजना समेत वे दोनों एक साथ पीछे मुड़ीं तो सभी मेहमानों के पीछे 7-8 पुरुषों को बिल्कुल साधारण वेशभूषा में इकट्ठे खड़े पाया। दरअसल ये सब वही मजदूर थे,जिन्होंने उनका घर बनाने में दिन-रात एक किया था। रागिनी और रमन भी अपने हाथों में कुछ छोटे-छोटे पैकेट्स लिए वहां खड़े थे। जब उन्होंने उनके मिस्त्री को उपहार के रूप में एक पैकेट देना चाहा तो ये स्वर उसी के थे। 

   रागिनी ने प्रेम पूर्वक उसे वह पैकेट पकड़ाते हुए कहा, ‘भैया जी ! इस छोटे से उपहार के रूप में यह आप सभी के प्रति हमारा आदर और प्रेम मात्र ही है। इस घर को बनाने में आप सबने गर्मी-सर्दी, धूप-छांव, आंधी-बारिश की परवाह न करते हुए अपना पसीना बहाया है।आपकी मेहनत से ही यह घर खड़ा हुआ है। सही मायनों में इस घर में आपका संघर्ष भी जुडा हुआ है। अत: आपका सम्मान करना तो बनता ही है न !’

   अपनी सखी की सोच पर गर्व महसूस करते हुए अंजना साफ देख पा रही थी कि सहसा मिलने वाले इस अद्भुत प्रेम से सभी मजदूरों के नेत्र तो भीग चुके थे, किंतु मिसीज वर्मा और मिसीज सक्सेना का उपहार-उलाहना उन्हें मुहँ चिढ़ाते हुए उनकी ‘हैसियत’ दिखा रहा था। 

      दरअसल स्वयं को ‘बड़ा एवं उत्कृष्ट’ ( सुपीरियर) दिखाने के लिए ‘पैसे का गुरुर’ कब हमें अपने ‘छोटेपन’ की हैसियत दिखा देता है, हमें पता ही नहीं चल पाता।  

उमा महाजन

कपूरथला 

पंजाब।

#पैसे का गुरुर
VM

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