आज नव्या की शादी की तिथि पक्की हो गई थी।नीरजा ने चैन की सांस ली।लगभग साल भर से, परेशान थी नीरजा। नव्या की पसंद का लड़का और परिवार ढूंढ़ना बड़ी टेढ़ी खीर था। नव्या की ढेर सारी शर्तों की चेतावनी के बाद,आशीष को पसंद किया था नीरजा ने। नव्या की पसंद नीरजा से ज्यादा और कौन जानेगा?अपने जमाने की शादियां ही ठीक थीं शायद,शादी को लेकर इतनी सारी अपेक्षाएं नहीं होती थीं लड़कियों के मन में।
आज-कल तो सारे मायने बदल गएं हैं शादी के।नौकरी पाने से भी ज्यादा गंभीर इंटरव्यू होने लगा है,लड़कों का आज-कल।
नव्या अपनी मां से अक्सर कहती “मम्मी,मेरी शादी अच्छे से देख -सुन कर देना।आपको तो पता ही है,मैं अकड़ सहने वाली नहीं हूं। परिवार छोटा ही हो,मुझसे ज्यादा जिम्मेदारी निभेगी नहीं।”,नीरजा भी हूं-हूं,हां-हां कह देती । कार्ड छपने दे दिए गए थे।नीरजा को ही तैयारियां करनी थी।नव्या के पिता का बहुत बड़ा सपना था,यह शादी।जल्दी से खाने की व्यवस्था करके नीरजा और रवि अपनी-अपनी डायरी उठा लाए।रवि ने पहले की “देखो नीरजा,मेरी तरफ़ से कम से कम २५० लोग रहेंगे।रिश्तेदारों की लिस्ट तुम बना लो।किराने के सामान की लिस्ट मैं अभी भिजवा देता हूं लाला जी के पास।नीरजा डायरी में बरसों पहले बनाई मेहमानों की लिस्ट देखने लगी।रवि ने कहा”देखो, कार्ड आते ही बांटने चलेंगे हम।”
एक हफ्ते का ही समय बच गया है अब।कब कार्ड पहुंचेंगे,कब रिश्तेदार आएंगे? कितने सारे काम पड़ें हैं अभी।नीरजा और रवि अपनी -अपनी डायरी में कलम से निशान लगाए जा रहे थे,मेहमानों के नाम के आगे।कुल मिलाकर ८५० लोग हो रहें थे।रवि ने बड़े उत्साह से कहा कि खाने में मैनू मैं ही फाइनल करूंगा।
नव्या जोर-जोर से चिल्लाए जा रही थी, मम्मी!पापा!
“क्या हुआ ?”नीरजा ने घबराकर पूछा।”मम्मी,ये देखो हमारे टिकट बुक हो गए फ़्लाइट के, टेंशन ख़त्म हुई अब जाकर।”
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“फ्लाइट क्यूं बेटा?मैंने और तेरे पिता ने मिलकर एक ट्रैवलर बुक करने का सोच कर रखा था।इतने सारे मेहमान आएंगे,कैसे फ्लाइट में”नीरजा ने अपनी परेशानी बताई।नव्या भी कहां हार मानने वाली थी”मम्मी,मैंने पहले ही बता दिया था ना आपको, कि मेरी शादी में सिर्फ मुझे प्यार करने वाले लोग ही चलेंगे।इन बेमतलब के रिश्तेदारों से मुझे सख़्त नफ़रत है मम्मी।”
नव्या की बात बिल्कुल ग़लत भी नहीं थी। रिश्तेदारों से कभी निःस्वार्थ प्रेम या स्नेह नहीं मिला था उसे।बुरे वक्त में किसी ने पलटकर नहीं देखा था हमारी तरफ़।नव्या अपने इरादे की पक्की थी।पापा को भी समझा दिया था उसने”हजारों रुपए का सामान लगाकर रिश्तेदारों को खिलाने से कुछ नहीं होता पापा।गरीबों और जरूरत मंदों को तो कोई नहीं निमंत्रण देता।सब अपनी हैसियत के हिसाब से रखतें हैं रिश्तेदारी।आपके परिवार वाले हों या मम्मी के,हमारे बुरे वक्त में किसी ने हमें अपने घर के कार्यक्रमों में निमंत्रण नहीं दिया।उन्हें पता था कि आप लोग मंहगें उपहार नहीं दे पाएंगे।ऐसे मतलबी रिश्तेदारों को मुझे भी अपनी शादी में नहीं बुलाना।आप लोग अपने बेटे की शादी में अपने स्वार्थी रिश्तेदारों को बुलवा लीजिएगा।मैंने पहले ही कहा था ,मेरी शादी में कोई आडंबर नहीं होगा।पैसों की बहुत तंगी देखी है हमने।रईस रिश्तेदारों ने हमें अपनी औकात दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।ये आपकी और मम्मी की बेटी की शादी है।साधारण तरीके से शादी की रस्म निभाई जाएगी।उसके बाद हम जरूरत मंदों को खाना खिलाएंगे।मैंने अपने आपसे यह वादा किया है कि साल में जब भी कोई खुशी का मौका आएगा,मैं ऐसे ही अनजान मगर दिखावे से दूर लोगों के साथ बाटूंगी।खोखले रिश्तों से मैंने अपने आपको कम से कम आजाद कर दिया।सॉरी ,अगर आप लोगों को मेरी सोच बुरी लगी।मेरी खुशी में जो सबसे ज़्यादा खुश होंगे वो तीन लोग ही चलेंगे मेरी शादी में।”
नव्या की बात सुनकर नीरजा और रवि की आंखें भर आईं।सच में बहुत कम लोगों में इतनी हिम्मत होती है,खोखले रिश्तों से आजाद होने की।हम सारी ज़िंदगी दिखावे के नाममात्र के रिश्तों को खुश रखने के लिए अपनी जिंदगी भर की जमा पूंजी लुटा देतें हैं।बदले में हमें मिलता है उपहास,ताने, भेद-भाव के उलाहने, स्वादिष्ट खाना ना मिलने का लांछन।
“देखा नीरजा,मैं ना कहता था मेरी बेटी लाखों में एक है।अरे ये तो करोड़ों में एक है।इसके इस निर्णय पर मैं ऐसे सौ और खोखले रिश्ते कुर्बान कर सकता हूं।चलो भाई कर लो तैयारी।फ्लाइट में बैठेंगे हम दोनों पहली बार।तुम्हें डर तो नहीं लगेगा ना?”रवि के चेहरे में आज एक संतुष्ट पिता की तृप्ति दमक रही थी।
शुभ्रा बैनर्जी
#खोखले रिश्ते
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