हादसा – संगीता अग्रवाल  :Moral stories in hindi

” स्नेहा कहां हो तुम …स्नेहा …!” मयंक अपनी पत्नी को आवाज लगाता हुआ घर में दाखिल हुआ।

” लो तुम यहां बैठी जाने कहां गुम हो और मैं तुम्हे घर भर में ढूंढ रहा हूं !” मयंक पत्नी को बालकनी में गुमसुम बैठे देख बोला।

” आ गए आप … मैं चाय लाती हूं !” मयंक की आवाज सुन स्नेहा अपने आंसू पोंछती हुई बोली।

” तुम रो रही हो … स्नेहा क्यों नही भूल जाती तुम सब कब तक खुद को यूं सजा दोगी !” मयंक पत्नी के दोनो कंधे पकड़ बोला।

” वो सब भुलाना मेरे बस में नहीं मयंक …नही भुला सकती मैं कि मेरे कारण मेरी….!” ये बोल स्नेह फूट फूट कर रो दी तो मयंक ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

” बस स्नेहा मत दर्द दो खुद को शायद किस्मत का खेल इसे ही कहते है !” मयंक ये बोलते बोलते खुद भी रो दिया।

अब तक की कहानी से आप ये तो समझ गए होंगे कि मयंक स्नेहा को किसी को भूलने को कह रहा है पर क्या ? ये सवाल आपके जेहन में जरूर आ रहा होगा। तो चलिए आपको इस स्वाल का जवाब देने से पहले स्नेहा और मयंक के अतीत में ले चलते हैं।

स्नेहा और मयंक की पांच साल की एक प्यारी सी बेटी थी मायरा दोनो अपनी बेटी पर जान छिड़कते थे। मायरा थी भी इतनी प्यारी कि पूरे मोहल्ले की लाडली थी वो। अपनी तोतली जबान में जब वो बातें करती तो लगता था मानो कोयल कूक रही है। आज से करीब साल भर पहले स्नेहा फोन पर अपनी सहेली से बात कर रही थी।

” मम्मा मम्मा मुझे साड़ी पहनाओ ना मुझे मम्मा बनना है !” मायरा स्नेहा के पास आकर बोली उसके हाथ में स्नेहा की साड़ी थी।

” बेटा बाद में अभी मम्मा बात कर रही है ना ..आप अपने टॉयज से खेलो !” स्नेहा बेटी से बोली।

” नही मम्मा मुझे साड़ी ही पहननी है !” मायरा तोतली जुबान में ज़िद करती बोली।

” बेटा आप बहुत जिद्दी होते जा रहे हो …जाओ अभी टॉयज से खेलो।” स्नेहा थोड़े गुस्से में बोली।

मायरा मम्मी का गुस्सा देख वहां से हट गई और कमरे में आ गई। उसने टीवी खोल कार्टून लगाए पर उसमे उसका मन नहीं लगा क्योंकि उसे तो साड़ी पहननी थी टीवी को चलता छोड़ वो ड्रेसिंग के आगे आकर  खुद से साड़ी पहनने की कोशिश करने लगी अब बाल मन की जिद वो तो उसे पूरी करनी ही होती है…खैर उल्टी सीधी साड़ी लपेट वो ड्रेसिंग के आगे खड़ी हो मम्मी के मेकअप के सामान में से मेकअप करने लगी पर उसकी साड़ी का पल्लू बार बार गिर रहा था।

अचानक उसे ख्याल आया मम्मी तो साड़ी में एक खूबसूरत सा पिन लगाती है जिससे साड़ी गिरती नही उसने इधर उधर देखा उसे ड्रेसिंग के सबसे ऊपर वाले ड्रॉल में वो पिन झांकता नजर आया अब मायरा तो छोटी सी वो भला पिन तक कैसे पहुंचे। उसने ड्रेसिंग के पास रखा पहियों वाला स्टूल खिसकाया जिसपर बैठ मम्मा मेकअप करती है  और उसपर चढ़ने लगी जिससे वो पिन तक पहुंच जाए। काफी कोशिश के बाद भी वो पिन तक नही पहुंच पा रही थी क्योंकि उसकी साड़ी उसे परेशान कर रही थी। उसने साड़ी के पल्ले को कई बार अपने गले में लपेट लिया जिससे वो लटके ना।

इधर स्नेहा को काफी देर हो गई बात करते हुए तो उसने अपनी सहेली को बाय बोल फोन काटा और मायरा के पास अंदर आई।

अंदर आते ही उसकी चीख निकल गई ….।

” मायरा बेटा मायरा क्या हुआ तुझे उठ देख मम्मा तुझे साड़ी पहनाने आई है उठ मेरी बच्ची !” स्नेहा पागलों की तरह बच्ची को गोद मे लिए उसका गाल थपथपाने लगी पर बच्ची नही उठी उसकी चीख सुनकर आस पास के लोग इकट्ठा हो गए। सबने बच्ची को ड्रेसिंग मे फंसी साड़ी से निकाला और अस्पताल भागे पर…. पर किस्मत का खेल देखिये मां पापा की जान मोहल्ले भर की लाडली हमेशा चहकने वाली बच्ची आज बेजान पड़ी थी। मयंक को भी किसी ने खबर कर दी थी और वो दौड़ा आया था। 

” सॉरी मयंक जी दम घुटने की वजह से यहां आने से पहले ही बच्ची की मौत हो गई थी !” डॉक्टर ने आकर ये दर्दनाक खबर दी।

क्योंकि मामला संदिग्ध था इसलिए डॉक्टर ने पुलिस को भी खबर दे दी थी पुलिस ने सबसे पूछताछ की घर पर आकर छानबीन की उससे ये नतीजा निकल कर आया कि साड़ी ड्रेसिंग में कही अटक गई होगी और पहिए वाला स्टूल खिसक गया होगा। गले में साड़ी लिपटी होने के कारण वो कसती चली गई और बच्ची का दम घुट गया। हो सकता है बच्ची के गिरने से आवाज जो हुई वो टीवी के शोर और फोन मे लगे होने के कारण स्नेहा तक नही पहुंची। 

स्नेहा इस हादसे का जिम्मेदार खुद को मानती है एक किस्म से वो खुद को बेटी की हत्यारिन समझती है क्योंकि उसे लगता है ना वो फोन में लगी होती ना ये हादसा होता। 

दोस्तों हादसे जिंदगी का हिस्सा है पर कुछ हादसे हमारी हल्की सी लापरवाही से घट जाते जो जिंदगी भर का मलाल दे जाते मैं यहां किसी को गलत नहीं ठहराऊंगी क्योंकि जो हुआ अनजाने में हुआ ( वैसे भी स्नेहा और मयंक का दुख बहुत बड़ा है ) , ना ही मैं आप लोगों को डराना चाहती हूं।

पर सभी माता पिता को सावधान जरूर करना चाहूंगी अगर आपके घर में छोटा बच्चा है तो उसके खेलों पर निगाह रखिए ज्यादा देर उन्हे अकेला मत छोड़िए। फोन पर लंबी बात तभी करिए जब बच्चा सोया हो , स्कूल गया हो या घर के किसी और मेंबर के साथ हो। बच्चे जिद्दी और शैतान दिमाग होते वो कब क्या कर जाएं हमे पता भी नही होता और जब तक हमे पता चलता है कई बार हादसा हो चुका होता है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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