हार की जीत (भाग 2) – माधुरी बसलस : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शादी के दो साल बाद एक दिन अपने शरीर मे हो रही हलचल के बार मे कामिनी

ने जब पति नरेश को बताया तो तुरन्त उसे लेडी डाक्टर के पास ले गया ,वहाँ जाँच पड़ताल

करने के बाद डाक्टर ने नरेश को बधाई देते हुए बताया आपके घर मे तीसरे सदस्य के

आने की ख़ुश ख़बरी है । अब नरेश कामिनी का विशेष ध्यान रखता,उसको खान पान की

लापरवाही नहीं बरतने देता अपने सामने बिठाकर उसको खाना खिलाता साथ ही आफ़िस

से लौटते समय फल लेकर आता ओर कामिनी को खिलाता ।इन दिनों उचित देखभाल

व पोषण मिलने से कामिनी का रंग रूप ओर निखर गया था। प्रश्व का समय नज़दीक

आने पर ,घर मे किसी बड़े के न होने से नरेश ने कामिनी को उसके माता पिता के घर

भेजना उचित समझा ।

    जिस दिन नरेश को अपने घर मे एक नन्ही कली के आने की ख़बर मिली  उसी दिन

संयोग उसे प्रमोशन का औडर मिला ,नरेश ने अपनी बेटी को मन ही मन भाग्यशाली

मानते हुए अपने दोस्तों से इस दो गुनी खुशी को साझा किया ।अरे इस दोहरी खुशी के

लिए एक दो जाम तो बनते ही है नरेश अपने दोस्तों के साथ आधी रात तक पीता रहा

फिर बेसुध हो कर सो गया ।दूसरे दिन आफ़िस से छुट्टी ली और मिठाई का डिब्बा लेकर

कामिनी के घर की ओर चल पड़ा ,अपनी बेटी को देखने के लिए वह बहुत लालायित

हो उठा था ।

       कामिनी के घर पहुँच कर जैसे ही उसने बधाई देने के लिए अपना मुँह खोला ,

शराब की बू का भभका कामिनी को हैरान परेशान कर गया। “क्या तुमने शराब पी है”

कामिनी ने पूछ ही लिया। अरे, वह तो दुहरी खुशी मे दोस्तों के साथ मिलकर थोड़ी सी

पी ली है मैं कोई रोज़ पीने वालों से नहीं हू ।तुम निश्चित रहो तुम्हारा घर आने पर ऐसा

कभी नहीं होगा ।

    कामिनी का मन फिर भी आशंका सेभरउठा था ।उसे मालूम था शराब की लत

यदि एक बार लग जाये तो ना मुमकिन है ।यही सोच कर कामिनी मायके से अपने

घर वापिस आगई ।नरेश के पीने की आदत रोज़ पीने मे बदल गई थी । कई बार नरेश

को प्यार ,मनुहार से समझाने की कोशिश की लेकिन उसकी हर कोशिश व्यर्थ गई ।

वह जितना विरोध करती नरेशउतना अधिक पीकर आने लगा ।

  राधा का पालन पोषण भी इसी माहौल मे हो रहा था ।इस बदहाली से तंग आकर

कामिनी फिर से अपने मायके आगई ओर नरेश के पीने की आदत के बारे मे अपने

माता पिता को बताया । उनके लाख समझाने पर भी जब कामिनी अपने घर

वापिस नहीं गई तो इस बात को नरेश सहन नहीं कर पाया ओर एक रात इतना पीकर

घर लौटा फिर कभी होश मे नहीं आया ।

    ललिता के पति भी किसी दुर्घटना का शिकार होने के कारण ,उसे ओर रमेश को

अकेला छोड़ गये थे,ललिता ने भी कड़ा संघर्ष कर के रमेश को पढ़ा लिखा कर इस क़ाबिल

बना दिया था कि वह आज एक मलटीनेशनल कम्पनी मे कार्यरत था ।

  रमेश को नौकरी करते तक़रीबन एक साल हो चला था ओर ललिता का भी रिटायरमेंट

का समय नज़दीक आरहा था । अत: ललिता ने रमेश पर शादी कर लेना का दबाव बनाना शुरू

किया । कुछ दिनों तक माँ की बात पर टाल टटोल कर देता ,इतनी भी क्या जल्दी

है शादी की ।

     ललिता का जब कभी भी कामिनी के घर आना होता तो राधा को देख कर

उसके मन मे राधा को अपनी बहू बनाने का ख़याल आने लगता ।क्यों कि राधा एक

समझदार पढ़ी लिखी लड़की थी ओर एक विद्यालय मे टीचिग की नौकरी कर रही थी ।

किसी दिन मौक़ा देखकर रमेश से इस बाबत बात करेगी ,ऐसा ललिता ने अपने मन

मे सोचा ।

   राधा की उम्र भी शादी लायक हो चली थी अत: कामिनी को राधा की शादी की

चिन्ता थी पता नहीं बिना बाप की लड़की से कौन शादी करेगा इधर ललिता भी अपने

बेटे रमेश की शादी को लेकर चिन्तित थी क्योंकि रमेश शादी की बात पर टालमटोल

कर रहा था । दरअसल वह अपनी सहकर्मी रीमा को चाहने लगा था ओर रीमा भी

रमेश को पसंद करती थी, लेकिन दोनों मे से किसी ने भी अपने घर वालों से बात नहीं

की थी ।

      एक दिन सुबह सुबह ललिता को अस्थमा का तेज़ अटैक पड़ने के कारण रमेश

को छुट्टी लेनी पड़ी । माँ की तबियत ठीक होने पर जब वह आफ़िस पहुँचा रीमा की

केबिन को ख़ाली पाया, रीमा उसकी बग़ल वाली केबिन मे ही बैठती थी. रीमा की

सहेली से पूछने पर पता लगा कि रीमा बौस के साथ एक हफ़्ते के लिये बैंकॉक गई है

         रीमा का बौस के साथ बैंकॉक जाने की बात सुन कर रमेश के मन मे कुछ दरक

सा गया फिर उसने अपने मन को समझाया,नहीं रीमा सिर्फ़ उस से ही प्यार करती

है। रीमा के बैंकॉक के लौटते ही वह रीमा को माँ से मिल वायेगा ओर अपनी शादी

की बात कर लेगा ।

        अपने मन को तसल्ली देने के लिए उसने रीमा को दो तीन बार फ़ोन मिलाया

लेकिन फ़ोन हमेशा स्विच आँफ ही मिला ।रमेश के मन मे आशंका के बादल उमड़ने

लगे थे ।इस सप्ताह काम मे भी ठीक से मन नहीं लगा ।

      जैसे तैसे सप्ताह बीता,सोमवार को रीमा का देखकर रमेश का मन पुलकित हो गया .रमेश ने      

गुड मोरनिग बोला ओर कहा रीमा तुम से कुछ ज़रूरी बात करनी है । रीमा उसे अनसुना

ओर अनदेखा सा करते हुये फुरती से बौस के केबिन की ओर चली गई ।रमेश ने फिर

से मन को समझाने की नाकाम की कोशिश की शायद बौस ने किसी ज़रूरी काम से

बुलाया होगा ।

         बौसके केबिन से रीमा मुस्कुराती हुई निकली ओर अपने केबिन की ओर

चली गई .रीमा ने फ़ोन करके रमेश को,बौस से अपनी सगाई करने के बारे मे बताया।

रमेश को रीमा से ऐसे विश्वासघात की उम्मीद क़तई नहीं थी ,रमेश का दिल टूट

चुका था ,वह आधे दिन की छुट्टी लेकर अपना ग़म ग़लत करने के लिए शराब पी

कर घर पहुँचा ओर सो गया ।

       रमेश को ओर दिनों की अपेक्षा जल्दी घर आया देख कर ललिता ख़ुश हुई

मन मन ही सोचा आज रमेश से राधा के साथ उसके विवाह की बात करेगी ,

     रमेश ने सोकर उठने के बाद महसूस किया कि उसका सिर भारी है कुछ

सोचने समझने की शकती जैसे ख़त्म हो गई हो तभी ललिता चाय का कप लेकर उसके

पास आ बैठी ओर प्यार से उसका सिर सहलाने लगी साथ ही ललिता ने रमेश

के सामने रमेश व राधा के रिश्ते के बारे मे बात की । ललिता रमेश की मनःस्थिति

से एक दम अनजान थी ,रमेश ने भी माँ के कहने पर राधा से अपने रिश्ते के

लिए हाँ कर दी ।

      रमेश ने राधा से शादी के लिए हाँ तो कह दी थी लेकिन वह अभी तक रीना

की वेवफाई से उबर नहीं पाया था इसलिये वह  जब तब अपना ग़म भुलाने के 

लिए शराब का सहारा ले लेता, धीरे धीरे यही उसकी आदत बन गई.रमेश की

इस आदत के बारे मे कामिनी और ललिता को तनिक भी एहसास नहीं था । उचित

मुहूर्त देखकर राधा ओर रमेश की शादी हो गई ।

    सजी-संबरी राधा शादी के बाद रमेश के घर एक साफ़ सुथरे कमरे मे पलंग

पर बैठी थी जिसे उसकी सास ने अपनी तरफ़ से पलंग पर साफ़ चादर बिछा कर,

उस पर फूल फैलाकर सजाने का भरसक प्रयास किया था । राधा हर पल

रमेश के आने का इन्तज़ार कर रही थी कब रमेश आकर उसका घूँघट उठाये,

उसे शर्माते देख अपने आगोश मे ले लेगा ।

      जब घड़ी ने रात के १२बजाये तब उसकी सास ने कहा ” बेटा रात बहुत हो गई

है ,शादी की रस्में निभाते निभाते तू भी थक गई होगी अब सोजा ” लाख अच्छाई

के बाबजूद मेरे रमेश मे यही एक ख़राबी है कि खुशी के मौक़े पर एकाद पैग लगा ही

लेता है ।

      राधा की आँखें नींद से बोझिल तो हो रही थी लेकिन ललिता से रमेश की

पीने की आदत के बारे मे जान कर ,नींद आँखों से कोसो दूर हो चुकी थी ।उसे

अपना सपनों का महल टूटता हूआ नज़र आरहा था ,मन मे तरह तरह के विचार

आ रहे थे ,क्या उसकी शादी किसी शराबी से हुई है ? क्या यह मंज़र रोज़ देखना

पड़ेगा ?

      वैसे साधारण परिवार के होने के कारण उसने अपनी ज़िन्दगी से अधिक कुछ

की चाह भी नहीं की थी. शादी से पहले हर लड़की की तरह उसने कुछ रंगीन सपने

देखे थे।ख़ुशियो से भरी रंग विरंगी ज़िन्दगी ओर प्यार करने वाला पति ।सब कुछ कितना

सुखद व आकर्षक था परन्तु न वह रात आई न सुबह जिसका राधा के मन मे

अरमान था ।

       जब भी रमेश शराब पीकर घर आता उसे वह एक दम अच्छा नहीं लगता।कोई भी

  तीज-त्योहार व खुशी का मौक़ा हो वह अपनी आदत से बाज़ नहीं आता । हद तो

  उस समय हो गई जब उसकी सास ललिता को अस्थमा का अटैक पड़ा ओर राधा

  ने रमेश को दवा लाने को कहा ,,नशे मे चूर रमेश ने राधा की बात को अनसुना कर

  दिया।बेटे को पुकारते पुकारते ललिता ने दम तोड़ दिया ,माँ के जाने के बाद भी

  रमेश ने पीना नहीं छोड़ा, राधा को रमेश से घृणा व नफ़रत होने लगी थी ।

        राधा अकेली पड़ गई थी ,लाख कोशिशें के बाबजूद रमेश को पीने से नहीं

  रोक पा रही थी ।लड़ झगड़ कर चीख़ चिल्ला कर चुप हो जाती ओर माँ के घर

 चली जाती । राधा के घर से जाने के बाद रमेश ख़ुश हो जाता ,अपने ही घर मे

 दोस्तों के साथ महफ़िल लगाता और देर रात तक शराब का दौर चलता ।

        दो तीन दिन के बाद कामिनी , राधा को समझा बुझा कर उसे उसके घर वापिस

   भेज देती ।इसी उलझन भरी ज़िन्दगी मे दो साल बीत गए ,कामिनी की तबियत

   यह सोच सोच कर ख़राब रहने लगी कि मेरे बाद मेरी बेटी का भविष्य क्या होगा ?

   कही उसके जीवन मे मेरे जैसी पुनरावृत्ति तो नहीं होगी मेरी बेटी के साथ ।

              इस बार होली का त्योहार आते ही जब रमेश ने पीना शुरू कर दिया तो

   राधा की हिम्मत ज़बाव दे गई ,वह चुपचाप अपने कपड़े लेकर माँ के घर चली आई ।

   लेकिन इस बार उसकी माँ ने राधा को न समझाया न कुछ कहा ,शायद अपनी बेटी

    का भविष्य अंधकार मे डूबता नज़र आरहा था ।

             जब पाँच छ  दिन बीत गये ,राधा वापिस लौटने को उत्सुक नहीं दिखाई दी

    तो उसने राधा को अपने पास बैठाया और बोली “राधा यदि रमेश के साथ नहीं रह सकती

    तो उसे सदा के लिए छोड़ क्यों नहीं देती ,जी लेना तू भी मेरी तरह किसी वैरागी जैसा,जीवन

    मैं तो तेरी ममता मे जकड़ी रही पर तू तो इस से भी मुक्त है ,दुविधा मे मत जी,टुकड़ों

    टुकड़ों मे बँट कर कब तक जियेगी तू ।इसलिए कहती हू या तो पूरी तरह अलग होजा

    या अपने पति की होकर जी “

           माँ की बातें सुनकर राधा को दुख तो बहुत हुआ लेकिन उसने मन ही मन एक

   निर्णय लिया ओर माँ से कहा ” माँ मे अभी इसी वक़्त घर लौटना चाहती हू ।अभी तक

   जीतने के प्रयास मे हमेशा हारती रही हू ।आज आख़िरी बार हार कर भी देख लेती हू “

   उसकी माँ ने सजल नेत्रों से उसे बिदा किया ओर मन ही मन उसके उज्जवल भविष्य

   की कामना की ।

         घर पहुँच कर घर की बदहाली देखकर एक वारगी तो उसे आक्रोश आया लेकिन

   लेकिन आक्रोश को परे हटाकर सहज भाव से बिस्तर ठीक किया ,बिस्तर पर साफ़

   सुथरी चादर बिछाई ,घर साफ़ सुथरा कर के चमका दिया फिर गुनगुनाती हुई रसोई

   मे गई ओर रात का भोजन तैयार करने मे व्यस्त हो गई ।

          रोज़ की तरह रमेश अपने साथियों को लेकर घर लौटा तो घर की लाइट जली

  देख कर चौक उठा ,उसे राधा के लौट आने की उम्मीद नहीं थी ।जैसे ही उसने

  दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई राधा ने दरवाज़ा खोल दिया ।राधा को सामने देख कर

  उसके साथियों के चेहरे सकपका गये मानो चोरी करते पकड़े गये हो । राधा ने

  मुस्कुराकर कहा “आज़ाइये आप सबका मेरे घर मे स्वागत है मैंने आप लोगों की

  टेबिल सजा दी है ,गिलास व नमकीन टेबिल पर सजे हुये है अपना रोज़ का कार्यक्रम

  जारी रखिये  ” यह कह कर वह मुड़ कर भीतर चली गयी ।

           रमेश को आश्चर्य हुआ कि कही वह किसी ओर के घर तो नहीं आ गया ।ज़रूर

 कुछ गड़बड़ है । राधा चीख़ चिल्लाना छोड़कर पीने की महफ़िल सजाने की बात कर

 रही है ,धीरे धीरे उसके सब साथी चले गये ।

          रमेश ने सांथ लाई बोतल को बाहर ही छोड़ा ओर डरते सहमते घर मे क़दम रखा आख़िर

 राधा एकाएक कैसे बदल गई । वह सोच मे डूबा गुमसुम सा सौफे पर आकर बैठ गया

 क्या बात है ? बहुत परेशान नज़र आरहे हो राधा भी उसके बग़ल मे आकर बैठ गई ।

       थोड़ी देर मे राधा खाना परोस कर ले आई,मैंने भी अभी तक कुछ नहीं खाया है ।दोनों

 चुपचाप भोजन करते रहे फिर बिस्तर पर लेट गये पर नींद दोनों की आँखों मे नहीं थी ।

 दोनों के अन्तरमन मे हलचल मची हुई थी । रमेश ने करवट ली तो देखा राधा भी

 जगी हुई थी ,राधा क्या सोच रही हो ।”कुछ भी नहीं  अब मैंने निश्चय कर लिया है

 कि अब तुम्हें कभी भी पीने से नही रोकूँगी ”  क्यों ? रमेश ने अचकचा कर पूछा।

         पिछले पाँच साल से यही तो करती रही मे पर तुम्हें कहा रोक पाई,उलटे

   हम दोनों नफ़रत की आग मे जलते रहे ।

          रमेश ख़ामोश था उसके अन्तरमन से आवाज़ आई क्या सारा दोष मेरा था

   राधा का ज़रा भी नहीं ?

           हाँ सारा दोष सिर्फ़ तुम्हारा था। उसकी आत्मा से आवाज़ आई ,रीना की

   वेवफाई का बदला तुम राधा से लेते रहे जब कि वह तो तुम्हारी भावनाओं से एकदम

  अनजान थी तो रीना की वेवफाई का जश्न पीकर मनाते रहते ज़िन्दगी भर ।राधा से

  शादी क्यों की ? राधा भी सोच मे डूबी थी कि आख़िर उसने कभी जानने की कोशिश

  कयो नहीं की कि रमेश हमेशा शराब के नशे मे कयो डूबा रहता है । कभी तो

 प्यार के दो बोल बोलकर समझाया होता उसे सोचते सोचते कब नींद आगई

  पता ही न चला।

           सुबह चिड़ियों की चहचहाने की आवाज़ कानों मे पड़ी ,उठी चाय बनाकर

 लाई ओर प्यार से रमेश को जगाया ,रमेश ने चाय का कप अपने हाथ मे लिया

 ओर राधा को अपने पास बिठा लिया “बोला राधा मै अपनी आदत पर बहुत शर्मिन्दा

 हू ” नहीं रमेश ग़लती मेरी भी थी मैंने कभी तुम्हारी भावनाओं को समझने की कोशिश

नहीं की ।

         नहीं राधा मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ मैं बीते दिन तो लोटा नहीं सकता लेकिन

 तुम से वायदा करता हूँ आज के बाद शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाऊँगा ।

           हाँ रमेश तुम पीना छोड़ दो मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती ,इसी शराब ने

 मेरे पिता की जान ले लो थी कहकर राधा के आँखों मे आँसू आ गये ।

          राधा विश्वास करो ,मैं कभी भी तुम्हारे विश्वास को टूटने नहीं दूँगा रमेश

  के ऐसे वचन सुनकर राधा का उस पर अथाह प्यार उमड़ पड़ा ओर आनन्द विभोर

  होकर रमेश से लिपट गई रमेश ने भी उसे अपने आग़ोश मे ले लिया ।आज

   सचमुच राधा हार कर भी जीत गंई  थी ।

अगला भाग

हार की जीत (भाग 3) – माधुरी बसलस : Moral Stories in Hindi

       माधुरी

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