Moral stories in hindi : सत्संग भवन खचाखच भरा हुआ था,आज “निर्मला मां” का स्पेशल सत्संग था और औरतों,बच्चों की बहुत भीड़ थी। माता जी की प्रभावशाली आवाज़ गूंज रही थी …
“चरित्र एक अनमोल खजाना है जिसकी रक्षा हर संभव तरीके से की जानी चाहिए।धन एक बार खो जाए,दोबारा प्राप्त किया जा सकता है पर चरित्र रूपी धनेक बार नष्ट हो जाए,फिर उसे नहीं पा सकते।”
उनकी ये बात सुनते ही कुछ औरतों में खुसुर पुसूर शुरू हो गई।
“अरे!चौबीस नंबर वाली गुप्ताईंन की बेटी का सुना कुछ?”सुमन फुसफुसाई, देविका के कान में।
“कौन?”वो बोली।
“ए विंग वाली!!पूजा का किस्सा।”सुमन ने बताया।
“क्या हुआ उसे?वो तो बड़ी प्रतिभाशाली है,मेरे बेटे को ट्यूशन पढ़ाया था पिछले साल,फर्स्ट आया था पूरे क्लास में।”
“हां!मेरी बेटी को डांस भी सिखाया था,बड़ी अच्छी डांसर है”, मालती कहने लगी।
“अब का कारनामा सुनोगी तो दंग रह जाओगी”सुमन गुस्से में थी। “पता चला है कल रात मूवी देखकर लौट रही थी कुछ फ्रेंड्स के साथ,रास्ते में किन्ही गुंडों ने घेर लिया और मुंह काला कर लौटी है अब, राम!
राम!घोर कलियुग आ गया है।”
“लेकिन इसमें उस बेचारी का क्या दोष?”
मालती कहने लगी,”कल को ये हमारे किसी के साथ भी तो हो सकता था।”
“अरे शुभ शुभ बोलो” ! सुमन बड़बड़ाई।”उसकी मां रजनी,बड़ी डींगे मारती थी कि बेटी का रिश्ता बड़े खानदान में तय किया है,अब देखूंगी,कौन अपनाएगा उसकी बेटी को।”
उधर भजन बजने लगा था सत्संग में..
“कसमें वादे प्यार वफा सब,बातें हैं बातों का क्या?”
माता जी की आवाज़ अभी भी हवा में गूंज रही थी,”चरित्र बड़ी मुश्किलों से ,वर्षों में निर्मित किया जाता है लेकिन मिनटों में उसका हनन हो जाता है,इसलिए इस आभूषण को संभाल कर रखना चाहिए,जतन से उसकी रक्षा की जानी चाहिए।”
मालती काफी अपसेट हो गई थी पूजा के संबंध में लोगों की बात सुनकर..”ये क्या तरीका है लोगों का?कल तक जिस पूजा के गुण गाते नहीं थकते थे,आज उसके संग एक हादसा क्या हुआ ,सबने नजरे फेर लीं।”
रेखा जी,,जो मालती की घनिष्ठ सहेली थीं,उनसे बोलीं,”क्या हुआ मालती!देख रही हूं,जब से पूजा की बात सुनी है तू बड़ी परेशान है।”
“तुम ही बताओ रेखा,ये क्या रवैया है लोगों का,एक तो बेचारी के संग ये हादसा हुआ,उससे सहानुभूति की जगह ये लोग उसे कोस रहे हैं,उसकी शादी वहां से टूट जाए,ऐसा सोच रहे हैं,कितने शर्म की बात है!”
“यही समाज है हमारा बहन,यहीं रहना है हमें,जल में रहकर मगर से वैर भी तो नहीं कर सकते।”रेखा ने समझाया उसे।
*समाज..”मालती व्यंग से बोली,”ये समाज हम सब से ही बनता है रेखा,जैसे हमारी सोच होगी,वैसा ही समाज बनेगा।”
“कह तो तुम ठीक रही हो पर सोचो!क्या तुम अपने लड़के की शादी एक ऐसी लड़की से कर दोगी जिसके चरित्र पर ऐसा दाग लग चुका हो?”
“अगर यही हादसा,शादी के बाद हो जाता,तब भी तुम बहु को नकार देते,उसे घर से निकाल यूदेते?”मालती तैश में आ गई थी।
“पर देखती आंखों तो मक्खी नहीं निगली जाती बहन,तब की बात और होती।”रेखा धीमे स्वर में बोली।
“लेकिन मुझे ये सब बहुत बुरा लग रहा है, उस पीड़ित बच्ची के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए,उसके साथ पहले ही क्या कम निर्दयता हुई है हमारे तथाकथित सभ्य लेकिन कुंठित मानसिकता वाले लोगों के द्वारा जो बाकि कसर हम स्वस्थ मानसिकता वाले कर रहे हैं अब।”
“हम क्या कर सकते हैं मालती?”रेखा परेशान होती हुई बोली।
“बहुत कुछ कर सकते हैं,सबसे पहले तो उसे क्रिटिसाइज करना बंद कीजिए,देखेंगे!उसके ससुराल वालों की क्या रिएक्शन है!अगर वो इस शादी को नहीं होने देंगे तो पहले समाज से उनका बहिष्कार करेंगे।”
“कह तो तुम ठीक रही हो”,रेखा भी सोच में पड़ गई थी,”कल जो हादसा हुआ ,उसमे पूजा का क्या कुसूर?फिर जब उसकी गलती नहीं तो वो क्यों उस बात के दुष्परिणाम भुगते?भला एक लड़की,जो समाज के कुत्सित लोगों की मानसिकता के भेंट चढ़ जाती है,हम उसी के चरित्र पर उंगली उठाना शुरू कर देते हैं,ये तो कोई तर्कसंगत बात न हुई।सबको नहीं बदल सकते पर खुद पर तो हमारा अख्तियार है ही।”
“किस सोच में पड़ गई रेखा तुम?”मालती ने पूछा।
सोचती हूं,तुम ठीक हो,तुमने,सच में,मेरी आंखें खोल दीं आज,पूजा के चरित्र पर दाग नहीं लगा कल की घटना से,ये दाग तो हमारे समाज पर है जहां ऐसे लोग फल फूल रहे हैं,कोई भी ऐसी दुर्घटना हो जाती है,हम मोमबत्ती जलाकर मार्च निकाल लेते हैं,विरोध प्रदर्शन कर लेते हैं और हमारे कर्तव्यों की इति श्री हो जाती है।
सही मायने में,हमें, उन लोगों का भी विरोध करना चाहिए जो इससे पीड़ित लड़कियों पर उंगली उठाते हैं,उनके मां बाप की भर्त्सना करते हैं कि वो अपनी बेटियों का चरित्र निर्माण नहीं कर सके।असली चरित्र तो ऐसे लोगों का खराब है जो उस हादसे से पीड़ितों को बुरा भला कह नीचा दिखाते हैं या उन्हें समाज की मुख्यधारा से तोड़ना चाहते हैं।
समाप्त
डॉ संगीता अग्रवाल
वैशाली
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