गुस्सा पी जाना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

रंजना जी ने अपनी दोनों संतानों को उच्च शिक्षा दिलवाई। उन्होंने बेटी और बेटा दोनों की समान परवरिश की। पढ़ाई के बाद जब उनकी बेटी नमिता ने  शादी मेट्रोमोनियल से एक लड़के को चुना ,तो उनलोगों ने लड़के तथा उसके परिवार से मिलने के बाद शादी करने की स्वीकृति दे दी।

रंजना दम्पत्ति तथा उनकी बेटी दहेज के खिलाफ थी।उनलोगों का मानना था कि इतनी पढ़ी-लिखी लड़की की शादी के लिए भी दहेज दिया जाएँ,तो समाज से दहेज जैसी कुरीतियां कब खत्म होंगी?

लड़केवाले से बात करने के बाद मिलने का दिन तय हुआ। नियत दिन को रंजना जी अपनी बेटी तथा अपने परिवार सहित लड़केवाले से मिलने गईं।चाय-नाश्ते की औपचारिकताएँ पूर्ण होने पर लड़के के पिता ने घुमा-फिराकर कहा-“मैं अपनी माँग नहीं रखता हूँ,परन्तु मेरी तीन शर्त्तें हैं।”

 शर्त्त का नाम सुनकर रंजना जी की भृकुटी तन गईं,परन्तु उनके पति ने उन्हें धीरे से कहा कि पहले शर्तें सुन तो लो।

लड़के के पिता ने कहा -” मेरी पहली शर्त्त है कि लड़के की शादी में मैं एक पैसा नहीं ख़र्च करूँगा,क्योंकि बेटे को पढ़ाने में मुझे काफी खर्चें हुए हैं!”

पहली शर्त्त सुनकर ही रंजना जी का मुख गुस्से से लाल हो गया।उनके मन में आया कि पूछ लूँ क्या आपके लड़के के बराबर  बेटी को शिक्षित  करने में हमें पैसे  नहीं लगे हैं?

परन्तु पति ने उन्हें दूसरी शर्त्त सुनने का इशारा किया।रंजना जी अपने गुस्से को पीकर दूसरी शर्त्त सुनने लगीं।

लड़के का पिता -”  मेरी दूसरी  शर्त्त यह है कि जब और जहाँ हमारी मर्जी होगी,तभी शादी होगी!”

रंजना जी लड़केवाले की हठधर्मिता के कारण उठकर जाने को तैयार हो गईं,परन्तु उनके पति ने धीरे से कहा,अब तीसरी शर्त्त भी सुन ही लेते हैं!

लड़के के पिता -” मेरी तीसरी शर्त्त

 है कि लड़की ससुराल में केवल साड़ी ही पहनेंगी और अपने वेतन का पूरा हिसाब हमें देगी,क्योंकि हम बिना दहेज की शादी के लिए  तैयार हैं!”

 होनेवाला दूल्हा सामने बैठा ‘ मिट्टी के माधो’ के समान अपने पिता की हाँ में हाँ मिला रहा था।अब रंजना जी का गुस्सा फूट पड़ा।उन्होंने लड़केवालों से कहा -” अगर लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं,तो कोर्ट-विवाह कर सकते हैं,परन्तु हमें आपकी शर्त्तें मंजूर नहीं है!

रंजना जी गुस्से में पति ,बेटी और अपने परिवार के साथ घर वापस आ चुकी थीं।बाद  में लड़के ने फोनकर नमिता से कहा -” तुम्हारी माँ,तुम्हारी शादी नहीं होने देना चाहती थीं,इस कारण गुस्से में चलीं गईं।”

तत्काल तो रंजना  जी की बेटी नमिता को लड़के की बात  सही लगी और माँ की बात गलत।परन्तु कुछ दिनों बाद दिनों बाद लड़केवाले के कर्ज में डूबे होने की सच्चाई नमिता को पता चली। नमिता ने उस लड़के से सम्बंध तोड़ लिए। आज नमिता अपने हमसफर और प्यारी बेटी के साथ खुशनुमा जिन्दगी गुजार रही है।हमेशा गुस्सा पीना ठीक नहीं होता है,कभी-कभार गुस्से को उबलने भी देना चाहिए। 

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

 

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