गुरुर – सिम्मी नाथ : Moral Stories in Hindi

स्नेहा   जैसे ही सोकर उठी मम्मी  खुश होकर बोलीं , उठ गई बेटा चलो , पापा तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं , पता है  4:00 सुबह से उठकर आम के बागान  में आम चुन रहे हैं रात की  आई आंधियों में आम काफी बिखरे पड़े हैं ।

सुनकर स्नेहा  बोली हूऊं ।  जाती हूं मम्मी  , आप शांति को बोल दीजिए एक कप चाय बना दे थोड़ा सर भारी हो रहा है। अरे क्यों बेटा !  रात में तुम ठीक से सोई नहीं क्या ?  नहीं मम्मी कोई खास बात नहीं है ,बस ऐसे ही थोड़ी देर रात तक मैं जागती रही थी, कुछ काम था ।

अच्छा अभी भिजवाती हूं ,शांति के हाथ से चाय , तुम बागान में चली जाओ, पापा तुम्हें देखकर बहुत खुश हो जाएंगे, कहती हुई   सुनीता देवी किचन में चली गई। 

अपनी बेटी को इस हाल में देखकर उन्हें काफी तकलीफ होती थी। आज से ठीक 1 साल पहले उन्होंने अपनी एम एम .बी .ए.में पढ़ रही बेटी की शादी खूब धूमधाम के साथ विवेक के साथ की थी। विवेक मुंबई   का लड़का था, और वो  अपनी मौसेरी  बहन की शादी में  जमशेदपुर आया था।  जब से उसने स्नेहा को देखा , उससे शादी करने की जिद्द करने लगा । अपनी मौसी को मना कर स्नेहा के माता-पिता के पास भेजा और इस तरह से स्नेहा की शादी विवेक के साथ हो गई।सुनीता  जी और  मंजू  जी , पायल की मम्मी  अर्थात् विवेक की मौसी दोनों एक ही ऑफिस में बहुत दिनों तक साथ काम किए थे, और दोनों की बहुत की गहरी मित्रता थी ,इसलिए सुनीता देवी ने बहुत अधिक छानबीन करने की जरूरत नहीं समझी उन्होंने खुशी-खुशी रिश्ता मंजूर कर लिया था। 

सुनीता जी सोचने लगी ,  कितनी धूमधाम से उन्होंने अपनी इकलौती बिटिया की शादी की थी । बेटी को विदा करते समय पिता अचानक अपने नए जमाई का हाथ पकड़ कर फूट फूट कर रोने लगे थे ,और उन्होंने कहा था कि स्नेहा को मैंने बहुत ही प्यार से पाला है ,अभी वह बच्ची है यदि कोई भूल हो जाए तो विवेक बाबू उसे क्षमा कर दें। 

विवेक काफी समझदार लड़का था ,वह  एक मल्टीनेशनल कंपनी में  जॉब करता था ।  स्नेहा ससुराल जाते ही सबकी प्यारी भाभी, मामी , चाचा बन गई थी। 

मुंबई के एक अस्पताल में उसके जेठ जी डॉक्टर थे। 

पिछले दिसंबर की बात है अचानक से उसकी जेठानी को उल्टियां होनी शुरू हुई और घर में किसी के  नहीं होने के  कारण स्नेहा उन्हें कार  में  बिठाकर अस्पताल ले गई।

वहां जाकर पता चला कि उसकी जेठानी यानी की सुरभि मां बनने वाली है। 

घर में खुशियों का माहौल था ,सभी लोग काफी प्रसन्न थे एक तो अभी नई-नई शादी हुई थी ,और दूसरी खुशी की जेठ जी के 5 साल बाद बच्चा होने वाला था।

स्नेहा सभी का खूब ध्यान रखती थी।  ठंड काफी बढ़ती जा रही थी।  एक रात स्नेहा ने अपनी सासू मां को बातें करते सुनी कि उनके गांव से एक मुरली नाम का युवक अपनी पत्नी को लेकर मुंबई उनके अस्पताल में दिखलाने आने वाला है। उन्होंने अपने पति से कहा कि मुरली मेरे बचपन से मेरे साथ एक ही स्कूल में पढ़ा लिखा है ,और उसकी पत्नी काफी बीमार है, उसे मैं अपने घर पर ही बुला ले रही हूं। यह सुनकर स्नेहा अपने आप पर बहुत ही गर्व महसूस कर रही थी कि उसकी शादी ऐसे परिवार में हुई है जो  दूसरों की मदद करने वाले हैं। 

दिन तेजी से बीत रहे थे। स्नेहा को एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गया था। विवेक और स्नेहा दोनों साथ ही ऑफिस निकलते चूंकि स्नेहा का ऑफिस पहले आता था तो विवेक उसे ड्रॉप करते हुए अपने ऑफिस चला जाता था।  एक दिन दोपहर में अचानक से स्नेह के पास सुरभि का फोन आया ,वो   काफी घबराई हुई थी , उसने कहा क्या स्नेहा तू ऑफिस से छुट्टी लेकर आ सकती है ? मेरी तबीयत अचानक से बहुत खराब लग रही है। स्नेहा एक मैसेज करती है ,और अपने बॉस के पास मैसेज छोड़कर वापस घर चली आती है ।  स्नेहा को देखते ही सासू मां ने कहा ,मुरली मामा जो अपनी पत्नी को लेकर आए थे उनकी तबीयत अचानक काफी बिगड़ गई है, और तुम्हारे ससुर जी भी अस्पताल गए हैं, मैं भी अस्पताल जा रही हूं। 

स्नेहा बोली लेकिन मम्मी जी दीदी की तबीयत काफी खराब है ,मैं उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचती हूं, आप लोग बढ़िये । स्नेहा के अस्पताल पहुंचते ही मामां  ( मुरली जी )उसके हाथ पकड़ कर काफी रोने लगे उन्होंने कहा अब तुम्हारी मामी इस दुनिया में नहीं रही बेटा …वह आवाक  रह गई, क्योंकि ऐसी कोई बात नहीं थी, उनकी तबीयत थोड़ी खराब थी, और उन्हें ऐसा लग रहा था कि शायद उन्हें किसी तरह की बीमारी है, और अच्छे इलाज के कारण वे मुंबई लेकर आए थे क्योंकि स्नेहा की सासू मां उनकी बहुत अच्छी पहचान वाली थी, उनका बेटा मुंबई के बड़े अस्पताल में   डॉक्टर था ,इसलिए उन्होंने यहां पर दिखाना उचित समझा था। वह स्तब्ध खड़ी रह गई क्योंकि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,।वो  क्या बोले। 

मुरली मामा उसे पकड़ कर किनारे ले गए और ले जाकर कहने लगे ,स्नेहा बेटा देखो तुम्हारी मामी की इस अस्पताल वालों ने किडनी निकाल ली है, उसकी किडनियां खराब नहीं थी ,और देखो मैंने देखा है उसके पेट में क्या-क्या लगा हुआ है ,मैं खुद अपनी आंखों से देखा हूं , उसकी किडनी निकाली गई है। 

यह सुनकर स्नेहा अवाक रह गई ,क्योंकि उसके जेठ जी के अंदर में ही वह पेशेंट भर्ती थी ,और ऐसा कैसे हो सकता है ?उसे यह बात समझ में नहीं आई। 

किंतु गांव के साधारण कम पढ़े लिखे मुरली मामा की बातें सुनकर उसकी आंखें भर आई उसे अचानक से अपने चाचा की याद आ गई क्योंकि वो भी इसी उम्र के थे। 

मुरली मामा ने स्वयं ही अपनी पत्नी को गांव ले जाने का निश्चय किया और वो लेकर गांव चले गए किंतु स्नेहा की आंखों में यह बात बार-बार याद आने लगी कि देखो बेटा इन्होंने इसकी किडनी निकाल ली है ।वह जानबूझकर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी ।किंतु गुमसुम सी रहने लगी थी, 

उसकी जेठानी को एडमिट कर लिया गया था, और दुर्भाग्य की बात ये थी कि उसका भी गर्भपात हो चुका था। 

सासू मां स्नेह के घर आने के बाद जोर-जोर से चीख चीख कर कह रही थी स्नेहा  ही  उसे अस्पताल ले गई। क्या जरूरत थी उसे अस्पताल ले जाने की ।अगर वह नहीं ले गई होती तो शायद ऐसा नहीं होता कहकर वह जोर-जोर से चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी। 

स्नेहा कुछ समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो एक साथ ऐसी दो —दो घटाएं घट गई जिसके किसी भी में भी कल्पना नहीं की थी। उसने यह निश्चय किया कि जरूर वह इस बात का पता लगा कर रहेगी कि आखिर गांव से आए मुरली मामा की पत्नी अर्थात उनकी  उसकी मामी का देहांत कैसे हो गया ?

वह थोड़ी गुमसुम सी रहने लगी थी विवेक से भी अच्छी तरह से बात नहीं कर पाती थी। 

इधर सुरभी  भी अपनी शारीरिक अस्वस्थता और बच्चे के खोने के गम से दुखी रहती थी। 

होली का त्यौहार आने वाला था, सासू मां शॉपिंग की तैयारी में थी। किंतु स्नेहा और सुरभी  अपनी ही दुनिया में खोई रहतीं थी।  स्नेहा धीरे-धीरे ऑफिस जाना शुरू कर चुकी थी।  एक शाम अचानक से मम्मी का फोन आने पर स्नेहा छत पर बात करने चली गई, जब वह बात कर नीचे वापस आ रही थी ,तो उसने सुना, सासू मां अपने पति यानी  ससुर जी से कह रही थी ,कि जितने भी पैसे हैं सभी को क्यों ना बैंक में डाल दिया जाए इतने सारे पैसों का यहां क्या काम? घर में रखना सुरक्षित नहीं है। ससुर जी ने भी कहा ,कितनी चालाकी से तुमने मुरली की पत्नी को ऊपर भेज दिया, उसकी आत्मा को शांति मिले , और ठहाके की आवाजें आने लगीं।

एक बार उससे पूछ लेती हूं ,उन्होंने उसके जेठ के बारे में कहा ,और फिर कहा कि देखो ध्यान से इन पैसों के बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। अब स्नेहा के कान खड़े हो गए ,इतने सारे पैसे का क्या मतलब ?  क्या इतने सारे मतलब .. मामाजी सच कह रहे थे 

उसने यह पता लगाने का निश्चय किया। एक दिन स्नेहा अपने पेट दर्द के बहाने उसके हॉस्पिटल में अपने दूसरे नाम से जाकर एडमिट हो जाती है, तभी एक नर्स जाकर कहती  है कि आपका बहुत सारा टेस्ट होना है। इस बात की  घर में किसी को कानों कान खबर नहीं लगी थी, क्योंकि स्नेहा अपने ऑफिस जाने के बहाने हॉस्पिटल चली गई थी।

दोपहर के समय स्नेहा के पास एक नर्स जाकर कहती  है कि आपका बहुत सारे टेस्ट करवाने होंगे शायद आपकी किडनी में इंफेक्शन है यह सुनकर स्नेहा अचंभित रह गई और उसे लगा कि क्यों ना टेस्ट करवा कर देखा ही जाए। 

जीरन  नाम की नर्स ने आकर कहा , मैम आपके साथ कौन हैं बुलाइए ।आपकी  दोनों किडनियां फेल हो गई हैं ,आपको जल्द से जल्द इलाज करवाने के लिए एडमिट होना पड़ेगा। आपके साथ कोई और है तो बताइए ,स्नेहा अपने नकली नाम पूनम के नाम से एडमिट हुई थी। उसने कहा, नहीं मैं यहां बाहर रहकर पढ़ाई करती हूं मेरा यहां कोई नहीं है ,कृपया आप लोग  इलाज  कीजिए ,जितने भी पैसे लगेंगे मेरा ऑपरेशन कर दीजिए। 

उस दिन वह वापस घर चली आती है, फिर दो दिनों के बाद दो वह हॉस्पिटल जाती है, तभी उसकी नजर उसके जेठ पर पड़ती है, लेकिन यह अपना मुंह घुमा लेती है ,और जेठ को देख नहीं पाते  हैं । उसने जीरन से बात करते हुए सुना कि एक नई पेशेंट आई है ,और इसकी भी वो किडनी निकालने वाले हैं, और निकाल कर फिर बाहर बेचने वाले हैं। यह सुनकर स्नेहा आवाक रह गई, कि वह जिसे देवता स्वरूप समझती थी ।वह इंसान किडनी का व्यापारी निकला। छी ! उसे अपने आप पर घिन  आने लगी ,वह कैसे लोगों के बीच में रह रही है, तो इसका मतलब मुरली मामा की पत्नी की इन्होंने किडनी निकाल ली थी। । हे भगवान  !!

इस बात की खबर वह सबूत के साथ जाकर प्रेस में दे देती है ,और इस तरह से स्नेहा अपने ससुराल वालों को पकड़वा देती है, और उनका अस्पताल भी सीज  हो जाता है । सासू मां ने उसे कुलटा, अभागन क्या-क्या नहीं कहा, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था,क्योंकि उसे अब उसे घर में रहना ही नहीं था। विवेक जो 3 महीने की छुट्टी लेकर अमेरिका गया हुआ था ,ऑफिस के काम से जब आया तो उसे सारी बातें पता चलीं, तो उसने भी स्नेहा को ही दोषी मान लिया ।उसने कहा ,अगर ऐसी कोई बात थी तो तुमने मेरे आने का इंतजार क्यों नहीं किया? 

स्नेहा सोचती थी, कि विवेक इन बातों को नहीं जानता होगा ,किंतु उसे सब कुछ पता था , यह सुनकर उसे बहुत गहरा धक्का लगता है, और उसे अपनी गलती का अब बहुत अफसोस होता है, उसे यह लगता है, कि कैसे वह इन लोगों को पहचान नहीं पाई। 

वापस अपने घर जमशेदपुर आकर कुछ दिनों तक बहुत गुमसुम रहने लगी स्नेहा। आज बहुत दिनों के बाद वह थोड़ा सा मुस्कुराई थी। मम्मी पापा के सामने वह सामान्य बनी रहने का नाटक करती थी, किंतु अंदर ही अंदर उसे अपने विवाह करने पर बहुत पश्चाताप होता था। 

जब स्नेहा सारे गिरे हुए आमों को टोकरी में डाल चुकी तो अपनी मम्मी को जोर से आवाज दी ,मम्मी शांति को भेजो ना प्लीज ,वह ले जाएगी, देखो कितने आम गिरे पड़े थे। 

आज स्नेहा की मम्मी को स्नेहा बिल्कुल छोटी बच्ची सी  तरह नजर आ रही थी। जब वह छुट्टियों में इसी तरह से अपनी नानी के घर जाकर भी खिलखिलाती रहती थी। 

स्नेहा की मां उसे बहुत दिनों के बाद खुश देखकर गले से लगा लीं,और भाव विभोर होकर बोली स्नेहा ! मेरी बच्ची ऐसे ही हमेशा खिलखिलाती रहा करो, मुझे तुम पर गुरुर *  है  मेरा बच्चा। स्नेहा को भी अपनी मां के गले से लगकर ऐसा लगा ,मानो छोटा शिशु सारा दुख   भूल कर उसकी शरण में आ गया हो। 

#गुरुर

सिम्मी नाथ 

राँची, झारखंड 

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित,अप्रकाशित ।

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