गुरुर – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

ऑफिस में नये साल पर मॉल में खुले नये रेस्टोरेंट में लंच होना तय किया गया,सुबह सबको मुबारकवाद देने में गुजरा, दोपहर में लंच के लिये सहकर्मी वर्मा जी के साथ सुधाकर जी मॉल पहुँचे, सीढ़ियों पर बैठे एक स्कूली लड़के और लड़की को देख, वर्मा जी बोले, “क्या जमाना आ गया, स्कूल बंक कर यहाँ मॉल में मस्ती कर रहे, माँ -बाप के मेहनत से कमाये पैसे उड़ा रहे “

     “क्यों सुधाकर जी, सुलेख की भी कोई गर्लफ्रेंड है क्या..”

     “अरे नहीं मेरा सुलेख इन सब से दूर रहता है “गुरुर से सुधाकर जी बोले…..।

      पार्टी के दौरान सुधाकर जी क़ी नजरें कोने में बैठे लाल रंग क़ी जैकेट पहने जोड़े पर पड़ी, कद -काठी कुछ पहचानी सी लगी, जैकेट वाले का चेहरा दूसरी तरफ था। न चाहते हुये भी सुधाकर क़ी नजरें उस जैकेट वाले पर पड़ रही थी,सुलेख के पास भी ऐसी जैकेट है,अपने मन को समझाया, सुलेख तो अपने ऑफिस में होगा…। लंच खत्म होते ही बाहर निकलते उनकी दृष्टि फिर उसी लाल जैकेट पर पड़ी…, ओह….उनका संदेह सच निकला वो सुलेख था, तभी सुलेख की नजर सुधाकर जी पर पड़ी,

     “ओह डैड, आपकी पार्टी भी यहीं थी”, चहक कर सुलेख बोला।

     “हाँ “संक्षिप्त सा उत्तर दें वे सुलेख के साथ बैठी लड़की को देखने लगे, उनका आशय समझ सुलेख बोला “डैड, इससे मिलो,ये सुनिधि है, मेरी फ्रेंड, मेरे ही ऑफिस में काम करती है..”कह सुधाकर जी से परिचय कराया।सुनिधि ने तपाक से”हाय डैड “कह हाथ आगे बढ़ाया।

     “अरे बुद्धू, डैड को नमस्ते करो,”सुलेख ने पिता की परेशानी समझते कहा। यूँ सुधाकर जी इतने बैकवर्ड नहीं है, फिर भी वे किसी महिला से हाथ मिलाते सकुचाते थे। उनकी पीढ़ी के लोग ऐसे ही है ज्यादातर लोग महिलाओं से हाथ मिलाने में परहेज करते है..।

      “ठीक है,ठीक है.. तुम लोग एन्जॉय करो..”कह सुधाकर जी वहाँ से निकल लिये।

रास्ते में वर्मा जी ने, जो कुलीग के साथ पडोसी भी थे, व्यंग से पूछा “वो सुलेख की गर्लफ्रेंड थी “

      सुधाकर जी ने कोई जवाब नहीं दिया,अंदर ही अंदर क्रोध से भर उठे, माना सुलेख पढ़ -लिख कर मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा, पर उसको ये हक़ नहीं है सारे आम लड़की के साथ घूमें और उनकी इज्जत का जनाजा निकले..। सुलेख और सुहाना उनका गुरुर थे, पूरे मोहल्ले में दोनों अपने संस्कार के लिये जाने जाते थे.। लेकिन आज सुलेख की वजह से उन्हें अपने सहकर्मी का व्यंग भी सुनना पड़ा…।

शाम तक मोहल्ले में सुलेख की गर्लफ्रेंड है, ये कहानी घर -घर फ़ैल गई…।

         घर पहुंचे तो नीरजा पर बरस पड़े “तुम्हारे सुपुत्र ने तो मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा..।”

        “क्या किया सुलेख ने, उसने आज तक कभी हमें शिकायत का मौका नहीं दिया, आज क्या कर दिया उसने “नीरजा बोली।

          “तुम घर में बैठी करती क्या हो, दिनभर टी. वी. सीरियल से फुर्सत मिले तब जानोगी बच्चे क्या गुल खिला रहे “..।सुधाकर की तेज आवाज सुन, बालकनी में बैठे सुधाकर जी के पिता रमेशचंद्र और माँ उर्मिला जी बैठक में आ गये, जहाँ सुधाकर, नीरजा को खरी -खोटी सुना रहा था।

     सारी बात सुन रमेशचंद्र जी बोले “तू इतनी छोटी सी बात के लिये बहू को क्यों सुना रहा, आजकल लड़के -लड़कियाँ साथ पढ़ते -लिखते, नौकरी करते तो उनमें दोस्ती होना स्वाभाविक है, इसे तुमने अपनी इज्जत से कहाँ से जोड़ लिया…… किस गुरुर में रहता है तू….,.कभी अपने अफसरी का चोला उतार लोगों के दिल में भी झाँकने की कोशिश कर,….”

         “पापा, इस उम्र मे आप बहुत बदल गये, हमें तो किसी लड़की से बात करने पर, आप और माँ दोनों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी , आज आपका पोता लड़की से बात ही नहीं कर रहा था , बल्कि हाथों में हाथ डालें मॉल में घूम रहा, आपको ठीक लग रहा “कुछ तल्ख़ आवाज में सुधाकर जी बोले।अपना जमाना याद आ गया पड़ोस की नंदा से एक बार बात करते देख कितना लानत -मलानत किया था माँ -पापा ने…, तब से क्या मजाल जो आँखों उठा कर किसी लड़की को देख ले। फिर जल्दी ही नीरजा से शादी हो गई..।

      “सुधाकर, ये हर पीढ़ी की समस्या है, क्योंकि कोई भी पीढ़ी एक दूसरे को समझने को तैयार नहीं होती, हर पीढ़ी के मान -दंड अलग होते है,मेरे जमाने में, जब तक लड़के को कुछ समझ आती, तबतक विवाह हो जाता, पति -पत्नी ही दोस्त बनते,हमें तो दूसरी लड़की को छोड़ो, दिन में अपनी पत्नी से भी बात करने की छूट नहीं थी..,। तुम्हारी शादी हुई तो हमने वर्जनाओं की डोर थोड़ी ढीली की…।

     और सीखना है तो आजकल की पीढ़ी से सीखों, जो पारदर्शिता से काम लेती है, जैसे सुलेख ने सुनिधि से तुम्हारा परिचय करा कर किया, वो चाहता, तुमसे छुप सकता था,तुमको अनदेखा कर सकता था,…”

   “एक मिनट्स पापा, आप उस लड़की का नाम सुनिधि है,कैसे जानते है…??”सुधाकर हैरान हो कर बोला।

      रमेशचंद्र जी जोर से हँस पड़े, जैसे तुम्हे आज सुलेख मॉल में मिला, वैसे ही एक शाम पार्क में घूमते मुझे कोने की बेंच पर बैठा सुलेख दिख गया,पास जा कर जब तक मै कुछ पूछता, आंधी -तूफान की तरह भागती जीन्स -टॉप पहने एक लड़की आई,अपने कान पकड़ते बोली…”सॉरी सुलु.. मै आज फिर लेट हो गई यार, सो बैड … मै कितनी भी कोशिश करू लेट हो जाती हूँ…।

    धाराप्रवाह बोलती सुनिधि को सुलेख ने टोका… “इट्स ओ. के.”

    मुझे देख सुलेख बोला “दादू ये ऐसी ही है, हमेशा लेट होती है “

    “ये दादू है,”कह खुशी से सुनिधि मेरे गले लग गई, मुझे अपनी पोती सुहाना याद आ गई, वो भी तो मेरे गले ऐसे ही लगती थी, सुमन तेरी बहन तो कभी मेरे डर से मेरे गले नहीं लगी, बेटियाँ चली गई इस घर की खिलखिलाहट ले कर… “नम आँखों से रमेशचंद्र जी बोले।

      ” क्या हुआ जो उसने मेरे पैर नहीं छुये, गले लग कर अपनी स्वाभाविक खुशी जताई या तुमको हाथ मिला कर अपनी खुशी व्यक्त की,सबके प्यार इजहार करने का तरीका अलग होता है, सुनिधि जैसी, निश्छल लड़की कम ही होगी,मुझे तो पसंद है, “रमेशचंद्र जी के बोलते ही उर्मिला जी और नीरजा सबने एक स्वर में कहा “मुझे भी पसंद है, “।

    “क्या मतलब…. किस लिये पसंद है “सुधाकर आश्चर्यचकित हो कर बोले…।

      “मतलब… हम उसे अपनी बहू बनाने के लिये तैयार है “सबने एक साथ बोला।

      “बात इतने आगे बढ़ गई, और मुझे किसीने बताया नहीं, अभी तक तो गर्लफ्रेंड थी…..”सुधाकर की नाराजगी देख, नीरजा बोली “आपको एक -दो बार मैंने बताने की कोशिश की थी पर आपने ये कह सुनने से इंकार कर दिया, “प्रेम -वेम जैसी फालतू बात सुनने के लिये मेरे पास समय नहीं…”।

          “ठीक है जब सब राजी तो क्या करेगा काजी “सुधाकर जी बोले।

        “नहीं डैड, जब तक आप खुश होकर हाँ नहीं बोलेंगे तब तक मै शादी नहीं करूँगा, “सुलेख की. आवाज आई जो काफी देर से खड़ा, सबकी बात सुन रहा था।

     “वाह… पुरानी पीढ़ी की क्या सोच है… मैंने नंदा से बात ही की थी, पापा और माँ को लगा मै सीधे उसे बहू ही बना कर ला रहा हूँ, उस उम्र में भी पिता का थप्पड़ पड़ा था, और आज … सुलेख के लिये सब माफ है,कहते है मूल से सूद ज्यादा प्यारा है… ऊँह… ये पुरानी पीढ़ी और उनकी सोच..”

.अंदर से आवाज आई… “तू भी पुरानी पीढ़ी हो गया है… क्यों न आगे बढ़ तीनों पीढ़ी के संग खुशहाल जीवन जीया जाये…”सुधाकर जी सोच रहे थे..।

  “लगता है, फिर अपना पुराना दर्द याद आ गया तुझे ” माँ उर्मिला ने चुटकी ली…। सब लोग हँस पड़े, सुधाकर झेँप गया… “अरे नहीं.माँ .. मै नीरजा को कितना भी डांटू पर नीरजा ही मेरी जिंदगी है “सुधाकर ने भी आज खुल कर बोल दिया..।नीरजा शरमा गई..।

  और कुछ दिनों बाद सुलेख की शादी सुनिधि से हो गई,पोते की बारात निकलने वाली थी,उर्मिला जी सिल्क की कांजीवरम साड़ी पहने, सफेद बालों का जूड़ा बनाये, खूब सुन्दर लग रही थी,रमेशचंद्र जी गुलाब की एक कली उनके जूड़े में लगाते बोले “इसी की कमी थी “और बैंड वाले ने गाना शुरु कर दिया “ओ मेरी जोहर जबी.. तुझे मालूम नहीं….”

   उधर सुधाकर जी भी आज पूरे जोश में थे, नीरजा का हाथ पकड़ खूब नाचे… आखिर आज उनके बेटे की शादी है….।

  सुहाना को विदा करने के बाद जो उदासी उस घर में थी उसे सुनिधि ने दूर कर दिया, अपने निश्छल स्वभाव से सुधाकर जी के घर का गुरुर बन गई।

#गरूर 

     

                        —-=संगीता त्रिपाठी 

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