गुरूर -प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’ : Moral Stories in Hindi

“अरे बहुओं को थोड़ा कंट्रोल में रखना चाहिए नहीं तो घर बिगड़ते देर नहीं लगती….” रामदयाल जी ने अपने छोटे भाई किशनलाल से कहा जिनकी बहू किसी बात से नाराज होकर एक दिन पहले अपने मायके चली गई थी।

“अब क्या बताएं राहुल भी तो नहीं कहता कुछ उससे…अब हम भी कब तक कहें…हमारा ज्यादा कहना भी तो ठीक नहीं है जब तक बेटा भी न कहे।” किशनलाल जी बोले।

“अरे बहुओं का क्या है ये तो दूसरे घर से आईं है जैसे नियम कानून बना दोगे उन्हीं में ढल जाएंगी नहीं तो ऐसे ही सिर पर नाचेंगी। अपने बेटे को भी समझा कि उसे इतनी छूट न दे कि मनमानी करने लग गई….अभी तो शुरुआत है… आगे तो जीना दुश्वार कर देगी तुम सबका… अब हमको ही देख लो मजाल है कि रवि (रामदयाल जी का बड़ा बेटा) की बहू हम लोगों के आगे कुछ बोल जाए या अपनी मर्जी से कुछ करे” अपने गुरुर में रामदयाल जी  बोल गए।

ये रामदयाल जी का गुरुर था कि उनके यहां सिर्फ उनकी चलती है, उनकी मर्जी के बिना कोई कुछ नहीं कर सकता और इसी कारणवश जब भी किसी के यहां पारिवारिक विवाद होता तो वह बाद में बात चलने पर घमंड से अपने घर का उदाहरण देना न भूलते।

कुछ सालों बाद उनके छोटे बेटे अमन का विवाह हुआ। कुछ महीनों बाद अमन की पत्नी वीणा ने अमन से कुछ दिनो के लिए मायके जाने की पूछी उसके हां कहने पर जाने की तैयारी कर ली जब जाने से कुछ देर पहले

रामदयाल जी को बताया तो उन्हें यह बात नागवार गुजरी और वह आग बबूला हो गए, ” ये क्या तरीका है कि अपनी मर्जी से सारा निर्णय ले लिया…अभी मैं जिंदा हूं… और तुझे तो पता है अमन कि यहां हमारे घर में मेरी मर्जी

चलती है…तो तू बहू को समझा नहीं सकता था…”

“मैंने वीणा से कहा था कि मम्मी पापा से पूछ ले लेकिन उसने कहा कि इससे पहले 2–3 बार वह आपसे पूछ चुकी है लेकिन आपने जाने नहीं दिया इसलिए…”

“अच्छा तो अब तू इतना बड़ा हो गया है कि हमने नहीं जाने दिया तो तू भेजेगा…(और अधिक गुस्से से) कोई कहीं नहीं जाएगा…ये जो रोज रोज का ड्रामा लगा रखा है कि मायके जाना है मायके जाना है बंद करो…अरे जब भेजना होगा हम खुद कह देंगे..अभी अपना घर परिवार संभालो….अब व्याह हुआ है तो कुछ इस घर की जिम्मेदारी भी बनती हैं कि जब चाहो मुंह उठाकर घूमने फिरने चल दो…”

बहुत देर से वीणा जो अपने कमरे से सब देख सुन रही थी बाहर आई और तेज आवाज में बोली, “माफ करना पापाजी, विवाह हुआ है, आपने खरीद नहीं लिया है जो हर बात तुमसे ही पूछकर की जाए…और जो आप ये कह रहे थे कि आपके घर में आपकी चलती है तो यदि ऐसे ही हर बात में अपनी ही चलानी है तो हम भी अलग घर की व्यवस्था कर लेंगे…फिर चलाते रहना आप अपनी अपने घर में….”

छोटी बहू के मुंह से ये सब सुनकर रामदयाल जी अमन से बोले, “देख रहा है कैसे बेशर्मी की हद पार कर रही है और तू चुपचाप खड़ा खड़ा सुन रहा है….अरे आज तक तेरे भैया और बड़ी बहू ने इतने सालों तक कुछ नहीं कहा और ये कुछ ही महीने पहले आई इतनी जुबान चला रही है…अभी से कह रहा हूं इसे कंट्रोल कर ले नहीं तो बाद में तू भी पछताएगा…”

तभी रामदयाल जी की बड़ी बहू अंदर से आई और बोली, ” माफ करना बाबू जी, मैं तो बहुत सालों से ये सोचकर चुप थी इक न एक दिन आप समय के साथ बदल जाओगे, कभी तो हमारे व्यवहार से ये सोचोगे कि कभी

इनकी भी मान लिया करूं लेकिन आप जो कह रहे हो कि आपने हमें कंट्रोल कर रखा है तो माफ करना ये आपकी गलतफहमी है…क्योंकि ये तो हमारे संस्कार है जो हमारे माता पिता देते हैं कि परिवार की सुख शांति और

एकता बनाए रखने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता है…इसलिए मैं चुप रह जाती थी लेकिन मुझे नहीं पता था कि इसे आप हमारी कमजोरी समझ लेंगे…यदि ऐसी ही बात है तो हमारी व्यवस्था भी अलग कर दीजिए जिससे हमें भी लगे कि हम भी घर परिवार चला सकते हैं।”

इतना सुनकर ही रामदयाल जी का झूठा गुरुर टूट गया और उन्होंने अपनी गलती मानते हुए कहा कि अलग अलग हो गए तो बदनामी हो जायेगी इसलिए सब एक साथ ही रहते हैं और आगे से हम सभी एक दूसरे की भावनाओं को समझने की पूरी कोशिश करेंगे और अपने परिवार के मान सम्मान को भी बनाए रखेंगे

यह सुनकर उनकी दोनो बहुएं भी खुश हो गईं और उन्होंने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगते हुए रामदयाल जी के चरण स्पर्श कर लिए।

रामदयाल जी खुश होते हुए बोले,” क्यों छोटी बहू, अब तुम्हें मायके नहीं जाना…”

प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

मथुरा (उत्तर प्रदेश)

कृपया बताएं कि आप सभी को मेरी कहानी कैसी लगी।

# गुरूर 

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