मैं उस समय एक हायर सेकंडरी स्कूल में पदस्थ थी, एक दिन मैं अपनी कक्षा से छात्रों को पढ़ा कर आफिस में जैसे ही आई, सन्नाटा पसरा हुआ था, पूरा स्टाफ मुझे देखने लगा, मैंने सबका चेहरा पढ़ा और बोली,भई, क्या बात है,
कोई भूत देख लिया क्या,, मुझे देख कर सब ख़ामोश हो गये हैं,, एक क्लास टीचर बोली,,जो, उपस्थिति रजिस्टर खोल कर बैठीं
थीं,, मैडम , प्रिंसिपल मैडम ने सूरज का नाम काटने को कह दिया है, मैंने हैरानी से पूछा,, आखिर क्यों,, उन्होंने कहा कि, वो बारहवीं की परीक्षा फीस नहीं जमा कर पाया, बेचारा बहुत गरीब है, मैडम ने उसको बहुत डांटा है, वो बार बार कह रहा था कि पिता जी को जैसे ही मजदूरी मिलेगी, मैं जमा कर दूंगा,,पर वो नहीं मानी,, और मुझे बुला कर उसके सामने ही उसका नाम काटने का आदेश दे दिया,सूरज रोता हुआ चला गया, अब क्या करूं, नाम तो काटना ही पड़ेगा,
मैंने मन ही मन सोचा, ये तो सरकारी स्कूल है,पर हां, परीक्षा फीस तो बोर्ड को देना ही पड़ेगा,
इतना बड़ा स्टाफ है हमारा, क्या, पचास, पचास रुपए प्रति शिक्षक नहीं दे सकता था, मैंने उन मैडम से कहा कि आप नाम मत काटिए, सूरज को बुलाईये,सूरज आंसू पोंछते हुए आया, मैंने उसे पांच सौ रुपए दिए और कहा,जाओ,जमा कर दो,अपना साल मत ख़राब करो, उसने झुक कर मेरे पैर पकड़ लिए और जाकर फीस जमा कर दी,,उस समय पांच सौ रुपए बहुत मायने रखते थे, कुछ दिनों बाद वो स्टाफ रूम में आया और मुझे धन्यवाद कह कर रुपए मेरे सामने रख दिया,, मैडम आप ने मदद ना की होती तो मैं तो बर्बाद हो जाता, मैं भी मजदूरी करने लगता, मैंने उसे रुपए लौटाते हुए कहा,सूरज,इन पैसों से तुम अच्छी किताबें खरीद लेना, और यदि तुम मुझे धन्यवाद देना ही चाहते हो तो वादा करो कि तुम खूब मन लगाकर पढ़ाई करोगे और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होगे, मैं आज तुमसे गुरु दक्षिणा मांगती हूं, वो खुश हो कर चरण स्पर्श कर के मुझसे वादा किया,मैम, मैं करके दिखाऊंगा, ये एक शिष्य की तरफ से मेरे गुरु जी की दक्षिणा है, और खुश होते हुए चला गया,, परीक्षा फल निकलने पर मेरी गुरु दक्षिणा मुझे मिल गई,
सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,
स्वरचित मौलिक