गूंज तमाचे की! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

नैना एक हफ़्ते की छुट्टियों में घर आई है। वह इलेक्ट्रिकल   इंजीनियरिंग सातवें सेमेस्टर की विधार्थी है। सेमेस्टर ब्रेक में घर आकर उसकी खुशी बातों से ही महसूस की जा सकती है।

सारे घर में आज़ाद पंछी की तरह कभी इस कमरे में तो दूसरे ही पल अगले कमरे में पाई जाती है। बाबा दादी की चहेती है। हाॅस्टल के किस्से सुनाते हुए उनकी रजाई में ही सो जाती। बाबा दादी उसके सभी बैचमेट्स को नाम से जानते हैं।

मम्मी किचन में नैना की पसंद के व्यंजन तैयार कर कर के खिलाती। पापा हर पल पूछते कि और क्या क्या ले जाना है। पापा ने नई जैकेट खरीद दी। भाई और बहन चिढ़ाते कि अब फिर से हाॅस्टल की बातें सुनाएगी।

एक हफ्ते का समय कितना होता है। फटाफट निकलने लगा। कल नैना को जाना है। मम्मी ने नारियल के लड्डू बना दिए हैं। एक डिब्बे में भर दिये हैं। पापा बाज़ार से बेकरी के बिस्किट ले आएं हैं। काजू-बादाम वाले बेकरी के बिस्किट नैना को बहुत पसंद हैं। केक रस्क भी पैक कर दिए हैं।

नमकपारे  और शक्करपारे भी बैग में रख दिए हैं। जहां अधिकतर लड़कियां नमकीन पसंद करती हैं, नैना को मीठा ज्यादा पसंद है। नैना जब  हाॅस्टल पहुंचती है तो बैचमेट्स, सीनियर्स, जूनियर्स सभी की कई दिनों तक दावत चला करती है। उसकी मम्मी के हाथ के नारियल के लड्डू सभी को बेहद पसंद हैं।

जाने से एक रात  पहले नैना बाबा दादी के साथ बैठकर बातें कर रही है । नैना के घर में खुला माहौल है। घर में सब अपनी बातों को बिना झिझके साझा करते हैं।

नैना ने पूछा,” बाबा, बस में यदि कोई आपको परेशान करें तो क्या करें?”

बाबा अनुभवी हैं समझ गए कि कुछ बात है जो नैना ऐसे पूछ रही है। 

बाबा बोले,” कुछ बात है, नैना ?”

नैना बोली,” बाबा, बात यह है कि कभी कभी कोई पास में बैठा व्यक्ति जानबूझकर हमारी सीट पर खिसक जाते हैं। फिर ऐसा दिखाते हैं कि अनजाने में हमारे पैर पर हाथ रख देते हैं। बोलने पर सुनते नहीं या हटाने के बाद फिर टच करने की कोशिश करते हैं।”

बाबा बोले,” ऐसे में तुम क्या करती हो, बेटा?”

नैना ने बताया,” मैं बोलती हूॅ॑ हाथ हटाने के लिए लेकिन लोग कई  बार सुनते नहीं हैं। मैं बहुत कम जगह में बैठ पाती हूॅ॑। एकाध बार तो खड़ा भी होना पड़ा है।”

बाबा बोले,” तुम्हें आवाज़ ऊंची करके हाथ हटाने को बोलना चाहिए। जाने में लगा हो या अनजाने में , आदमी में शर्म होगी , लोगों तक आवाज़ पहुंचेगी तो हटा लेगा। यदि फिर भी बाज न आए, दोबारा हरकत करे छूने की या हाथ रखने की तो अपनी सीट पर खड़ी होकर ज़ोर से डांट लगाते हुए

बोलो। न मानने पर कंडक्टर से कहो, सीट बदलवाने के लिए। जोर से अपनी आवाज़ उठाओ। शोर मचाओ ताकि बाकी लोगों को भी पता चले। ध्यान रखो बेटा, अपनी सीमा रेखा का उल्लघंन करने का हक किसी को भी मत दो। गलत मत सहो,  समय पर  अपनी आवाज़ उठाओ!”

दादी ने कहा,” अपनी शक्ति पहचान कर गलत का विरोध करो। ऐसे में  चुप रहकर कुछ नहीं होगा। थप्पड़ टिकाओ जोर का कि आगे से किसी लड़की को आंख उठाकर नहीं देख पाए।”

नैना ने कहा,” बाबा-दादी, अब कभी ऐसा होगा तो मैं ऐसा ही करूंगी। मैं अब अपनी निजता के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करूंगी और यदि किसी ने भी सीमा रेखा को पार किया तो मैं चुप नहीं रहने वाली अब!”

नैना अकेले ही अपने हाॅस्टल आती जाती है। बस से चार घंटे का समय लगता है।

पापा-मम्मी भी कमरे में आ गए हैं। उन्होंने भी नैना की हिम्मत बढ़ाई। अपना विरोध पुरजोर तरीके से दर्शाने की बात कही। पापा ने कहा कि इस बार वह नैना को हाॅस्टल छोड़ आएं। जिस पर नैना ने कहा कि वह डरती नहीं है, अकेले ही जाएगी।

नैना को अगले दिन सुबह पापा-मम्मी बस पर छोड़कर आए।

बस चल पड़ी। नैना की विंडो सीट है। आधे रास्ते तक एक आंटी पास वाली सीट पर बैठी थीं। फिर उनके उतरने के बाद एक अधेड़ उम्र के अंकल जी पास में बैठ गए। नैना ने सोचा कि चलो आज कोई परेशानी नहीं होगी।

कुछ देर बाद उसने देखा कि अंकलजी ने उसकी सीट के पीछे कंधे के ऊपर हाथ रखना चाहा। नैना ने तमीज़ से कहा कि अपना हाथ अपनी सीट पर रखें।

अंकल जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि गलती से चला गया। उन्होंने हाथ अपनी सीट पर रख लिया।

नैना निश्चिंत हो गई पर एहतियात के तौर पर उसने अपना पर्स बीच में रख लिया।  थोड़े देर बाद अंकल जी का हाथ उसके पैरों पर आ गया। नैना ने हटाने को कहा जिसपर उन्होंने फिर से सफाई दी कि नींद लग गई थी।

नैना सावधान हो चुकी थी। अबकी बार जैसे ही अंकल जी का हाथ टच हुआ, चलती बस में आवाज़ आई,”तड़ाक”। 

तमाचे की गूंज से बस में सभी ने पलटकर देखा।

नैना खड़े होकर जोर से बोली,” आपको शर्म नहीं आती है , बार बार नींद का बहाना कर कभी मेरे कंधे पर तो कभी पैरों पर हाथ रख रहें हैं। मुझे टच किए जा रहे हैं।”

सकपका कर गाल सहलाने लगे अंकलजी। उनको शायद ऐसी उम्मीद नहीं थी कि नैना ऐसे खड़े होकर जोर से बोलेगी।

बस में बैठे सभी यात्री देखने लगे। कंडक्टर ने सीटी बजाकर बस रोकी। तुरंत नैना की सीट पर आया और नैना से पूछा। नैना ने अंकल जी की हरकतों के बारे में बताया। सभी यात्री और कंडक्टर ने मिलकर अंकल जी को डांटा। सभी एकमत हो गए कि अंकलजी को पुलिस में दे दिया जाए।

अब तक अंकल जी के होश उड़ चुके थे। वह बहुत गिड़गिड़ाने लगे। नैना से माफी मांगने लगे। सभी ने उन्हें इस शर्त पर छोड़ा कि अब वह किसी लड़की को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेंगे। सभी को अपनी बेटी की नज़र से देखेंगे।

अंकल जी की सीट बदल दी गई। नैना की हिम्मत और साहस की सभी यात्रियों ने तारीफ़ की। नैना के साहसी कदम को देख बस में बैठी बाकी लड़कियों ने भी कभी भी गलत बात नहीं सहेंगे, ऐसा प्रण लिया।

आज का ज़माना दबकर गलत बात या व्यवहार सहने का नहीं है अपितु माॅ॑ दुर्गा का रूप धारण कर गलत व्यक्ति को धूल चटाने का है। अपनी शक्ति पहचान कर गलत का विरोध करें।

लेखिका की कलम से  

दोस्तों, हम कभी न कभी बस में या ट्रेन में आते जाते छेड़छाड़ का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में चुप रहने से अपराधी का साहस बढ़ जाता है। बेहतर  है कि गलत के खिलाफ आवाज़ उठाई जाए।

कहने को यह छोटी सी बात है पर क्या अस्मिता लुटने का इंतजार करना है? नहीं ना!

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना 

( मौलिक व स्वरचित)

#सीमा रेखा

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