आज वृद्धाश्रम में अपनी जीवन संध्या व्यतीत करने वाले बुजुर्ग और वयोवृद्ध लोगों का चेकअप करने के लिए चिकित्सकों की टीम आई हुई थी। सबका बारी-बारी चेकअप हो रहा था। सभी वृद्ध आसानी से अपनी सारी समस्याएं चिकित्सकों से साझा कर रहे थे पर राजेश जी बिल्कुल गुमसुम से थे। वो कुछ दिन पहले ही यहां आए थे। अपनेआप में खोए से रहते थे। सबको लगा था शायद यहां अभी अभी आए हैं इसलिए थोड़ा चुप रहते हैं। पर उनको चिकित्सक टीम के समक्ष भी यही रवैया था।
जब चेकअप के लिए उनका नाम पुकारा गया तब भी वो अलग-थलग से बैठे रहे। जब वो कई बार नाम पुकारने के बाद भी नहीं आए तब टीम का सबसे युवा चिकित्सक उनके पास पहुंचा और बड़े प्यार से उनको बाबू जी कहकर पुकारा। इसके अपनेपन से भरे बोल सुनने के बाद जैसे ही उन्होंने अपना चेहरा ऊपर उठाया
,तब एक बार को तो उनको लगा कि उनका जवानी वाला प्रतिरूप उनके सामने खड़ा है। वो सोच में पड़ गए कि कैसे ये युवा चिकित्सक देखने में उनके जैसा लग सकता है?उनका तो कोई रिश्तेदार भी नहीं है,जिसका बेटा इस उम्र का हो।वो उसमें अपनी झलक देख रहे थे पर वो युवा चिकित्सक इस तरह के किसी भी मिलान से अनभिज्ञ था क्योंकि वक्त के थपेड़ों ने समय से पूर्व ही उनके चेहरे को झुर्रियों से भर दिया था।
अब उस चिकित्सक के मनुहार करने पर वो किसी तरह अपना चेकअप के लिए तैयार हुए और उसके साथ पूरा सहयोग भी करते दिखे। जब टीम के जाने का समय आया तब राजेश जी ने आगे बढ़कर खुद से उस युवा चिकित्सक का नाम पूछा तब वो भी अपना नाम डॉ.अक्षत बताकर जल्द ही दोबारा मिलने की बात कह कर वहां से निकल गया। अब राजेश जी हर रविवार का बेसब्री से इंतजार करने लगे क्योंकि उस दिन डॉ.अक्षत अपनी टीम के साथ आते थे। ऐसे ही दिन बीत रहे थे अब राजेश जी भी डॉ.अक्षत का सानिध्य पाकर पहले की तुलना में थोड़ा सा सबके साथ खुलने लगे थे।
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एक दिन राजेश जी की तबियत ठीक नहीं थी, उनका रक्तचाप काफी बढ़ा हुआ था,वो अपने बिस्तर से जैसे ही उठे तुरंत बेहोश होकर गिर गए। उनके साथ कमरा साझा करने वाले अमरकांत जी ने तुरंत वृद्धाश्रम की प्रबंधन टीम को सूचना दी। आनन फानन में राजेश जी को हॉस्पिटल ले जाया गया। हॉस्पिटल के कई चिकित्सक उनकी देखरेख में लगे पर उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया। फिर उनकी ज़िम्मेदारी डॉ.अक्षत को ही दी गई,पता नहीं ऐसा क्या जादू था उनके हाथों में, अब राजेश जी पहले से बेहतर थे। पर अभी भी राजेश जी को लगभग दस दिन तक हॉस्पिटल में ही रहना था।
राजेश जी के लिए तो जैसा हॉस्पिटल वैसा ही वृद्धाश्रम क्योंकि परिवार के नाम पर अब उनके पास कुछ नहीं था। राजेश जी अब ठीक हो रहे थे, एक दिन वो कमरे के बाहर धूप सेंक रहे थे कि तभी उन्होनें देखा एक थोड़ा बड़ी उम्र की महिला डॉ.अक्षत से मिलने आई थी। थोड़ी देर के बाद डॉ.अक्षत उस महिला को बहुत आदर के साथ बाहर तक छोड़ने भी गए थे। जब वो महिला उनके पास से निकली तब राजेश जी को उसका चेहरा जाना-पहचाना सा लगाl डॉ.अक्षत और उस महिला ने राजेश जी को वहां बैठे हुए नहीं देखा था। उस महिला को चेहरा राजेश जी के दिमाग में घूमता रहा क्योंकि वो कोई अजनबी नहीं बल्कि राजेश जी की पहली पत्नी दिव्या थी।राजेश जी का मन पुरानी यादों में खो गया।
जब उनकी और दिव्या की नई-नई शादी हुई थी। दोनों एक दूसरे के प्रेम में डूबे रहते थे। खुशी-खुशी दिन बीत रहे थे। दोनों को एक दूसरे के साथ अपना आने वाला कल बहुत सुंदर प्रतीत होता था। पर कई बार खुद की ही नज़र लग जाती है। एक दिन वो दोनों बाहर से खाना खाकर आ रहे थे। पता नहीं कहीं से चार-पांच गुंडों ने उनका रास्ता रोक लिया। राजेश को मार पीट कर बेहोश कर वहीं फेंक दिया और दिव्या को अपने साथ ले गए। वो जगह काफी सुनसान थी।
राजेश जी को जब होश आया तो वो किसी तरह घर आए। घर वालों को अपने साथ हुए हादसे के विषय में बताया। अभी तक बदनामी के डर से पुलिस रिपोर्ट भी नहीं लिखवायी थी। सुबह होने को थी सब दिव्या की सलामती की दुआ कर रहे थे। अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। देखा तो दिव्या खड़ी थी। वो बहुत ही ज्यादा थकी हुई थी बस इशारे से उसने इतना ही बताया कि वो ठीक है।थोड़ा संभलने के बाद दिव्या ने बताया कि वो गुंडे उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे कि वहां से दो-तीन महिलाएं और पुरुष निकल रहे थे।
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उनकी आवाज़ सुनकर वो भाग खड़े हुए। वही लोग उसको गली के बाहर तक छोड़ गए हैं। उसकी बात सुन सभी की सांस में सांस आ गई। इस दुख की बेला के कुछ समय बाद दिव्या के मां बनने की खुशखबरी मिली पर राजेश जी के मन में शक के बीज उत्पन्न हो गए थे। उसको लग रहा था कि गुंडों ने इतनी आसानी से दिव्या को कैसे छोड़ दिया,हो न हो ये बच्चा गुंडों की दिव्या के साथ गलत हरकत का नतीजा है। बस ये सोचकर वो दिव्या से गर्भपात के लिए कहता है।
पहले तो दिव्या को कुछ समझ नहीं आता पर राजेश जी के अजीब से व्यवहार से उसको सब समझ आ जाता है। वो गर्भपात के लिए मना करती है तब राजेश जी कहते हैं कि अपने पाप के साथ वो इस घर में नहीं रह सकती। तब दिव्या गर्भपात ना करवाकर वहां से जाने का फैसला लेती है और कहती है कि वैसे भी जिस रिश्ते में विश्वास ना हो उसको आगे घसीटने से कोई फायदा नहीं है।
मैं पढ़ी-लिखी हूं अपने दम पर अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने की हिम्मत रखती हूं। इस तरह दोनों की राहें अलग हो जाती हैं। कुछ समय बाद राजेश की दूसरी शादी हो जाती है। कुछ दिन तो सब सही चलता है पर दूसरी पत्नी बहुत झगड़ालू किस्म की थी। बात-बात पर थाने जाने की धमकी देती थी। जब देखो तब उसके मायके वाले घर पर पड़े रहते थे। एक तरह से घर मायके वालों का कब्ज़ा हो गया था।दूसरी शादी से कोई संतान भी नहीं हुई थी।इस उम्र तक आते-आते दूसरी पत्नी के भाई-भतीजों ने उसका सब कुछ छीनकर वृद्धाश्रम की चौखट तक पहुंचा दिया था। वैसे भी अब उनके अंदर भी जीने की इच्छा खत्म हो गई थी।
वो तो डॉ.अक्षत से मिलने के बाद उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे कोई अपना ही हो।कहीं ना कहीं डॉ.अक्षत का चेहरा मोहरे में उन्हें अपने जवानी का अक्स दिखता था। अभी वो ये सब सोच ही रहे थे कि तभी डॉ. अक्षत उनके प्रतिदिन वाले चेकअप के लिए आ गए। आते ही उन्होंने राजेश जी अपने देरी से आने की क्षमा मांगी और बताया आज उनकी मां भी अपनी किसी बीमार परिचित को देखने हॉस्पिटल आई थी।
अब राजेश जी को पूरा यकीन हो गया कि डॉ. अक्षत उनका और दिव्या का ही बेटा है। फिर भी उन्होंने डॉ अक्षत से पिता के विषय में पूछा तब उन्होंने कहा मेरी मां ही मेरे लिए सब कुछ है। ये सब बातें सुनकर राजेश जी को थोड़ी तसल्ली हुई कि आखिरी समय में ही सही पर उन्हें अपने बेटे के साथ कुछ पल तो बिताने को मिलें।आज उनके चेहरे पर एक सुकून था। बस अब वो डॉ अक्षत और उनकी मां से अपने किए हुए गुनाहों की क्षमा मांगना चाहते थे। उन्होंने डॉ. अक्षत से एक बार अपनी मां से मिलवाने का अनुरोध किया। अगले दिन डॉ अक्षत अपने साथ अपनी मां को लेकर आए और राजेश जी से मिलवाया।
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राजेश जी से मिलने के बाद एक बार तो दिव्या झुर्रियों से भरे उनके चेहरे को देखकर उन्हें नहीं पहचान पाई पर गौर से देखने के बाद और उनको पहचानने के बाद वो गुस्से और घृणा से मुंह फेरकर वहां से जाने लगी। तभी राजेश जी के फूट-फूट कर रोने और माफी मांगने से उसके कदम वही रुक गए। उन्होंने दिव्या से यही कहा मेरे गुनाहों की जितनी सज़ा दी जाए वो कम है,आज मैं उम्र के इस पड़ाव पर एकदम अकेला हूं।मेरे पुरुषत्व के दंभ ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।
कुदरत ने मेरे को तुम्हारे साथ किए बुरे व्यवहार की सज़ा दे दी है।बस तुम्हें एक बार देख लिया तो अब चैन से मर सकूंगा। ये कहकर उन्होंने हमेशा के लिए आंखें मूंद ली। डॉ.अक्षत को भी अब सब कुछ समझ में आ गया था। आज उनके मन में अपनी मां के प्रति आस्था और भी गहरी हो गई थी। अकेले होते हुए भी उनकी मां ने जिस तरह से उनका पालन पोषण किया वो वास्तव में पूजनीय था।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।एक स्त्री सब सहन कर सकती है,पर आपने चरित्र और संतान के विषय में कुछ गलत नहीं सुन सकती।उसके अंदर इतनी सामर्थ्य है कि वो अकेले अपने दम पर ही बच्चे का पालन पोषण कर सकती है।अपने किए गुनाहों की सज़ा हमें इसी जन्म में भुगतनी पड़ती है।
#जन्मोत्सव
कहानी प्रथम
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा