आँखों में सतरंगी सपने लिए सुनीता ने दुल्हन के लिबास में ससुराल में पहला कदम रखा। हंसी खुशी के माहौल में सारी रस्में पूरी हुईं। दो तीन दिन में सभी रिश्तेदार चले गए और घर में सुनीता, उसके पति सुवीर, सास और ससुर रह गए। बङी ननद की लगभग दस वर्ष पहले शादी हो चुकी थी। बच्चों की परीक्षा के चलते वह भी चली गईं। छोटा सा परिवार था और सभी आपस में समझदारी व सामंजस्य के साथ मिलजुल कर रहते थे। कुछ ही समय में सुनीता सबसे घुल मिल गई और सबके स्वभाव को पहचान गई। उसकी सास सुधा जी एक समझदार एवं व्यवहार कुशल महिला थीं। सुनीता का ससुराल एक छोटे से शहर में था। सुवीर अपना ज्यादा से ज्यादा समय घर के सब सदस्यों के साथ बिताते। वह एक फौजी थे और कुछ ही समय में उनकी छुट्टियां खत्म हो रही थी। अभी उनकी पोस्टिंग ऐसी जगह थी जहां पत्नी को साथ नहीं ले जा सकते थे। सुधा जी कई बार उसे सुनीता के साथ समय बिताने को कहती पर वह सुनीता को भी साथ बिठाकर सबके साथ समय बिताते। सुनीता को मन ही मन अच्छा नहीं लगता था। उसका पति कुछ ही समय बाद उससे दूर जाने वाला था और वह चाहती थी कि वह अपना ज्यादातर समय उसके साथ बिताये। किंतु ससुराल में संकोच वश कह नहीं पाती थी। वैसे सुवीर उसकी हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखते थे। पर वह यह भी जानते थे कि उसके जाने से उसके माता-पिता भी बहुत व्यथित हो जाते हैं। आखिर उनकी नौकरी थी ही ऐसी जिसमें हर वक्त खतरा बना रहता। धीरे-धीरे वह दिन भी आ गया जब उन्हें जाना था।
आज सुनीता का मन बहुत व्यथित था। जब सुवीर चला गया तो उसे उदास देखकर सुनीता की सास ने उसे समझाया कि यदि तुम इस तरह से परेशान और उदास रहोगी तो क्या सुवीर वहां खुश रह पाएगा? एक फौजी की पत्नी का जीवन बहुत संघर्ष पूर्ण होता है। अपने मन में हमेशा विश्वास बनाए रखना कि तुम्हारा पति जहां भी रहे सकुशल रहे और देखना इस विश्वास की ज्योति के सहारे यह दिन भी कट जाएंगे। हम सब तुम्हारे साथ हैं। सास की प्रेम भरी बातें सुनकर सुनीता को बहुत संबल मिला। धीरे-धीरे वह अपने घर परिवार में रम गई। घर में बुजुर्ग ससुर थे। और किसी अन्य पुरुष के ना होने के कारण बाहर के ज्यादातर काम सुनीता करने लगी। शादी से पहले सुनीता घर में ही व्यस्त रहती थी। धीरे-धीरे बाहर के काम करने और लोगों से मिलने जुलने से उसके अंदर एक आत्मविश्वास आने लगा। सास बहू दोनों मिलकर घर का काम करते। जिस से उसके पास काफी समय बचता था। ऐसे में उसके माता पिता ने उसे अपनी पढ़ाई जारी रखने का सुझाव दिया जिसका उसके सास ससुर ने भी समर्थन किया। सुनीता ने ग्रेजुएशन किया हुआ था। अब उसने पत्राचार द्वारा B.Ed में दाखिला ले लिया। परिवार के सहयोग और आपसी सामंजस्य के चलते वह सहज होकर पढ़ाई करने लगी। धीरे-धीरे 2 साल बीते। कई बार सीमा से सैनिकों के शहीद होने की खबरें आती। ऐसे में सुनीता का मन बुरी तरह दहल जाता किंतु उसने मन में विश्वास को बनाए रखा और पति की अनुपस्थिति में घर की हर जिम्मेदारी को पूरी तरह संभाला जिससे कि वह निश्चिंत होकर सीमा पर अपनी ड्यूटी कर सके।
सुवीर इस बीच तीन चार बार छुट्टी पर आए। सुनीता को अपने समय का सदुपयोग करते देख उन्हें बहुत खुशी हुई। सुनीता का B.Ed पूरा हो चुका था। कुछ दिनों बाद सुवीर का तबादला दूसरी जगह हो गया। जहां पर वह अपने परिवार को ले जा सकते थे। सुनीता के तो खुशी से पैर ही जमीन पर नहीं पङ रहे थे। आज उसकी लंबी तपस्या पूरी हुई। जब सुवीर उसे लेने आए तो उसने सास ससुर से भी चलने का आग्रह किया पर उसकी सास ने कहा कि तुमने इतने समय अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह निभाई हैं।अब कुछ समय आराम से अपनी गृहस्थी सँवारो। हम बीच-बीच में आते रहेंगे। सुनीता सुवीर के साथ आ गई। कुछ समय बाद उसे वहां पर छोटे बच्चों के स्कूल में नौकरी भी मिल गई। सुनीता बहुत खुश थी। साथ ही वह अपने सास-ससुर की दिल से आभारी थी जिन्होंने उसके मन को समझा और आगे पढ़ने के लिए उसे प्रेरित किया। वह जानती थी कि पति के साथ यह सुखद समय उसे दो वर्षों के लिए मिला है जिसके बाद उन्हें वापस किसी दुर्गम जगह में जाना होगा। इसीलिए वह इन दो सालों के हर एक पल को भरपूर जीना चाहती थी और इन खूबसूरत यादों को अपने मन में कैद कर लेना चाहती थी।
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प्रिय पाठकों,
एक सैनिक के जीवन से ज्यादा संघर्षपूर्ण और दुरुह होता है एक सैनिक पत्नी का जीवन। जहां एक और उनके मन में हमेशा अपने पति की सुरक्षा को लेकर चिंता रहती है। वहीं दूसरी ओर वह उसकी अनुपस्थिति में बच्चों, सास ससुर और पूरे घर की दोहरी जिम्मेदारी उठाती हैं । उन्हें अपने बच्चों के माता और पिता का दोहरा किरदार निभाना पङता है। देश की रक्षा में यदि एक फौजी तत्पर रहता है क्योंकि उसके पीछे हमेशा चट्टान की तरह अडिग विश्वास लिए एक वीर पत्नी होती है। और यदि पति शहीद हो जाए तो वह वीरांगना इस सम्मान को गर्व से संजोए हुए अकेले ही निकल पड़ती है एक अनवरत् संघर्ष यात्रा पर। इनके संयम और साहस को नमन जिन्हें यदि हम एक गुमनाम योद्धा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
यह रचना पूर्ण रूप से मौलिक एवं स्वरचित है। आशा करती हूं प्रिय पाठक इसे पढ़कर पसंद करेंगे। आपके सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
धन्यवाद
तृप्ति उप्रेती