शालिनी अपनी सहेली निशा के बुटीक में बड़े शौक से तरह तरह की लेस वाली फ्रॉकों को देख रही थी।
सहेली पूछ बैठी,
“ये लड़कियों की फ्रॉकों को इतने ध्यान से क्यों देख रही हो? तुम क्या करोगी…तुम्हारे तो दोनों बेटे ही हैं…बिटिया तो है नहीं”
उसकी आँखों में पानी भर आया। उनको छुपाने का प्रयास करती हुई वो बोली,”मैं भी कितनी बदनसीब हूँ। ईश्वर ने मुझे इस अनोखे सुख से वंचित कर रखा है”
उसकी सहेली हैरानी से उसे देख रही थी..उसे समझ में नहीं आ रहा था…क्या समझे और क्या कहे…कुछ देर की चुप्पी के बाद हिम्मत जुटा कर बोली,”अरे तुम तो रो रही हो। तुम तो दो दो प्यारे प्यारे बेटों की गौरवशालिनी माँ हो। फिर ये अवसाद क्यों”
वो उस गुलाबी फ्रॉक पर हाथ फेरते हुए धीरे से बोली,”जब मैं छोटी थी, मुझे ऐसी ही रंगबिरंगी फ्रॉकों का बहुत शौक था…विशेषरूप से ऐसी गुलाबी रंग वाली फ्रॉक तो मन में समाई थी पर हम चार चार बहनें तो घोर उपेक्षा की शिकार थी। चाचाजी के बेटे का ही आदर सम्मान होता था। ऐसे में मैं हमेशा अपनी बेटी का ख्वाब देखा करती थी और उस परी को अपने सपनों वाली गुलाबी फ्रॉक में सजा देखती। रंग बिंरगे हेयर बैंड और उतने ही रंगबिरंगे रिबन लगे देखती थी पर ये सपना भी कहाँ पूरा हो सका”
निशा अपनी दुखी सहेली की पीठ सहलाते हुए आश्चर्य से बोली,”पर तुम्हारे दोनों बेटे कितने बढ़िया हैं, ऐसे में तुम क्यों परेशान हो। उनकी बहुओं को बेटी की तरह प्यार करना और अपना सपना पूरा करना”
वो बरबस ही मुस्कुरा दी,”मैं अपनी पोती को ऐसी गुलाबी फ्रॉक जरूर पहनाऊँगी।”
नीरजा कृष्णा
पटना