देख-देख संध्या ….वो हैं क्या हमारे होने वाले जीजा जी….
धत्….. नहीं रे ….!
तू अपने होने वाले पति को पहचानती भी है ना ठीक से…. फोटो तो देखी है ना…? कॉलेज में फ्री पीरियड या ब्रेक के समय गार्डन में टहलते वक्त सहेलियां हमेशा छेड़ा करती थीं…!
मेरे शहर से मात्र 28 किलोमीटर की दूरी पर कोयलांचल क्षेत्र में मेरी शादी तय हुई …हमारे कॉलेज में कोयलांचल क्षेत्र (मेरे ससुराल ) की लड़कियां भी पढ़ने आती थी , उनमें से कुछ मेरी भी पहचान वाली थी ।
अब संध्या हमारी भाभी बनने वाली है , उनके इन बातों ने मेरी भी सहेलियों को बता दिया था , एक सहेली दीपा तो बिल्कुल मेरे ससुराल के बगल वाले घर में ही रहती थी…।
हालांकि , मुझे भी कहीं ना कहीं अनजाने में ही इंतजार रहता था…. एकदम मस्त बिंदास और युवा उम्र शायद होने वाले पति से मिलने की बेताबी बढ़ाते थे …अब तो शादी भी लग गई थी , कितना अच्छा मौका था मिलने जुलने का….लेकिन पतिदेव की तरफ से कभी कोई संदेश या मिलने की उत्सुकता नहीं दिखाई दी… कभी-कभी लगता कैसे खडूस पति मिल रहे हैं , शादी करना भी चाहते हैं या नहीं ….हालांकि उनके बारे में मैंने इतना सुन रखा था , काफी शर्मीले और संकोची है और एकदम आज्ञाकारी पुत्र ….पर मुझे तो इतना आज्ञाकारी और इस प्रकार के क्वालिटी वाले पति तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए थे…… मुझे तो इस मामले में थोड़े चंचल , शैतान जो छुप-छुप कर , बहाने बनाकर , मौका निकाल कर मुझसे मिलने आए , ऐसा पति चाहिए था…।
आखिर शादी लग गई है….अब घर वालों को भी हमारे मिलने में कोई परेशानी या आपत्ति नहीं होगी ….इस बहुमूल्य समय को गंवाना मुझे बहुत अखर रहा था….. सच बताऊं मुझे तो उनसे मिलने की कल्पना से ही गुदगुदी होने लगती थी…।
समय बीतता गया ….6 मई को शादी थी , 26 अप्रैल को मेरा आखिरी पेपर था…. मैंने कुछ सहेलियों को आखिरी पेपर वाले दिन ही शादी का कार्ड दे दिया था ….ससुराल पक्ष की एक सहेली ने उस दिन मजाक में कहा था ….चल ना संध्या हमारे साथ ….ये क्या 6 मई तक के लिए रुकी है और हम सब सहेलियां हंस पड़े थे…।
मन ही मन मैंने सोच लिया था… एक बार इनसे मिलने दो ,जरूर पूछूंगी …कभी मिलने का मन नहीं हुआ क्या ..? मुझे सास ससुर जी ने ही देखकर पसंद किया था ,इन्होंने तो शादी से पहले मुझे देखा तक नहीं था और ना ही मैंने इन्हें देखा था…। हमने तो एक दूसरे की सिर्फ फोटो ही देखी थी…।
शादी के बाद कथा की रस्म के वक्त मैंने पहली बार इन्हें देखा… मन ही मन ऐसा लगा जैसे ….शहर के सबसे सुंदर लड़के से मेरी शादी हुई है …सच में पहली नजर में ही बहुत प्यारे लगे थे…. लेकिन कहीं ना कहीं मुझे ऐसा लगा मैं तो ज्यादा सुंदर नहीं हूं , शायद अनजाने में ही हीन भावना से ग्रसित होने लगी थी…।
क्यों जी , इतना पास होते हुए भी आपको कभी मिलने की इच्छा नहीं हुई …एक दिन मैंने पूछा …बस हंस कर , कुछ बातें बनाकर टाल गए…. लेकिन मेरा ये पूछना हमेशा ही जारी रहा….
एक दिन फिर मैंने पूछा …सच-सच बताइए ना ..आप शादी से पहले मुझसे मिलने मुझे देखने क्यों नहीं आए थे …आप शादी तो करना चाहते थे ना…।
वो बड़े धैर्य से मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोले ….” मुझे मेरी माँ पर पूरा विश्वास है , और उनकी पसंद मेरी पसंद से काफी मिलती है और मैं गर्व करता हूं कि माँ ने मुझे निराश नहीं किया , सच में तुम बहुत अच्छी हो ” ये सुनकर दिल में एक बार फिर से गुदगुदी होने लगी थी…।
( स्वरचित )
संध्या त्रिपाठी