Moral Stories in Hindi : “हमारी बहू तो ‘गृहलक्ष्मी’ है, जिसने पूरे परिवार को एकसूत्र में बांध रखा है। मैं अपनी दवाई भूल भी जाऊँ लेकिन मेरी बहू , मुझे दवाई देना कभी नहीं भूलती। मेरे लिए समय पर नाश्ते खाने का पूरा ख्याल रखती है। परिवार में छोटे बड़े सभी को पूरा महत्व देती है।
घर में सुख शांति हो तो घर में हमेशा ईश्वर का निवास रहता है और ऐसा परिवार ही दिन दूनी- रात चौगुनी तरक्की करता है, लक्ष्मी जी भी उसी घर में ठहरती हैं इसलिए ही तो स्त्री को ‘गृहलक्ष्मी’ कहा जाता है। “- श्रीनिवास (पायल के ससुर) ने, अपनी पत्नी सुमित्रा से कहा।
” ऊं…हह, आप और आपकी बहू एकदूसरे की तारीफ करते रहो। ये आपकी बहू पायल जो भी करती है, ये तो इसका फर्ज़ है और हमारे एहसान हैं जो इसे बिना किसी दहेज के अपने घर ले आये। हमारे हीरे जैसे लड़के के लिए ये तो एक कांच का टुकड़ा मात्र है।
अरे! कौन करता इस साधारण सी दिखने वाली और साधारण से परिवार की लड़की से शादी? वो तो मुझे ही इस पर दया आ गयी और अपने होनहार और सुंदर लड़के के लिए इसे ले आयी कि इसका और इसके परिवार का कुछ बोझ हल्का हो जायेगा। “- सुमित्रा ने मुंह बनाते हुए कहा
” बस करो! सुमित्रा!! ये क्यों भूल जाती हो कि हमारी भी एक बेटी है और उसकी ससुराल वाले भी उसे गृहलक्ष्मी समझते हैं और पूरा प्यार व सम्मान देते हैं हमें भी किसी की बेटी को उसी तरह मान सम्मान और प्यार देना चाहिए जैसा कि हम अपनी बेटी के लिए चाहते हैं
और उसे मिलता भी है। मैं भी दुनिया देखता हूँ और जानता हूँ कि जब आजकल की लड़कियां आते ही घर तोड़ने की बात करती हैं वहीं हमारी बहू पायल सबको एकजुट रखती है। “- श्रीनिवास जी ने समझाया।
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” चाहे तुम जो भी कहो मैं तो अबकी बार छोटे बेटे के लिए साक्षात लक्ष्मी लाऊंगी जो रूप रंग और पैसों से धनी हो। “- सुमित्रा ने बेझिझक होकर, पायल को सुनाते हुए, अपने पति से कहा।
” सुमित्रा, जो दिल आये वो करना लेकिन याद रखना किसी को इज़्ज़त दोगे तभी तुम्हें भी इज्ज़त मिलेगी। अपना मान- सम्मान अपने ही हाथों में होता है “- श्रीनिवास ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
लेकिन सुमित्रा जी के लिए तो ये सब बातें बेकार थीं उनके लिए तो बहू का अर्थ लक्ष्मी अर्थात मोटा दहेज था। उन्होंने अपने छोटे बेटे की शादी एक अमीर परिवार में खूब सारे दहेज के साथ की।
नयी बहू और पैसों की चमक ने सुमित्रा को अंधा कर दिया। वो अपनी बड़ी बहू पायल से जितनी नफरत करती उतना ही अधिक अपनी छोटी बहू रजनी से स्नेह करती लेकिन ये प्यार बस दहेज की रकम के कारण ही था।
रजनी भी अपनी सास की आदत पहचान रही थी लेकिन सास सेर थी तो बहू भी सवा सेर थी। वो भी झूठा ही आदर सत्कार करती। श्रीनिवास जी भी सब समझते लेकिन कुछ कहते नहीं। अपनी पत्नी से सिर्फ इतना ही कहते कि दोनों बहुओं को बराबर का प्यार दो क्योंकि तुम सास रूप में दोनों की माँ हो और माता पिता को सभी बच्चों से बराबर का प्यार करना चाहिए।
समय बीतता गया। श्रीनिवास जी की तबियत बिगड़ी और उनकी मृत्यु हो गई।
सुमित्रा और रजनी ने पायल को बात बात पर नीचा दिखाना शुरू कर दिया। पायल के पति ने भी मां को कई बार समझाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और धीरे धीरे गृह कलह बढ़ती गयी। पायल जितना बात संभालती उतना ही उसी पर ज़ुल्म बढ़ते जाते। अन्ततः वही हुआ जो शायद सुमित्रा और रजनी चाहते थे पायल और उसका पति दोनों अलग हो गये।
अब रजनी समझ चुकी थी कि उसे अपनी सास से थोड़े से दिखावे का प्यार और करना है फिर उनकी सम्पत्ति अपने नाम करवा लेगी और अपने पिता द्वारा दिया दहेज ब्याज सहित वसूल लेगी। रजनी ने वैसा ही किया और सुमित्रा जी ने अपनी वसीयत सिर्फ रजनी के नाम कर दी। फिर क्या….? बस रजनी ने अपने तेवर दिखा दिये।
क्योंकि सुमित्रा ने अपने बेटे- बेटी सभी से दूरी बना ली थी छोटे बेटे को अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहना पड़ता इसलिए उन पर हो रहे अत्याचारों की भनक भी किसी को न लगती। सुमित्रा जी अपने ही घर में कैद होकर दाने दाने के लिए मोहताज हो गयीं।
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बड़ी मुश्किल से पायल को फोन पर सूचना दे सकीं और पायल भी बिना एक पल गंवाये ,सत्कार सहित उन्हें अपने घर ले आयी। प्रवेश द्वार पर उनकी आरती और स्वागत की थाली लिए पायल उन्हें अपने घर में प्रवेश करा रही थी तब सुमित्रा जी ने कहा, ” बहू ये स्वागत सत्कार तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए क्योंकि वास्तव में तुम ही गृहलक्ष्मी हो। “
सुमित्रा जी अपने पति श्रीनिवास जी को याद करके भावुक हो रहीं थी ।
ऋतु रानी
स्वरचित कहानी