Moral Stories in Hindi :
“माली काका…!” सुजाता जी की आवाज पर रामदीन पास आते हुए कहा
“जी मालकिन !”
“आज अपने पैसे ले लेना।”
ठीक है मालकिन यह कहकर रामदीन अपना काम करने लगा।
“जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ।आज शाम तक मुझे घर बिल्कुल परफेक्ट मिल जाना चाहिए ।”
“जी मालकिन!” घर में रंग रोगन का काम चल रहा था। सभी को इंस्ट्रक्शन देते हुए सुजाता जी इधर से उधर घूम रही थी। शाम घर बिल्कुल साफ सुथरा चमकने लगा।
” मालकिन मेरे पैसे?”रामदीन के कहने पर सुजाता जी ने कहा
“हां हां यह लो..!”
रामदीन पैसा गिनते हुए देखा, रुपये ज्यादा थे।
वह डरते हुए बोला “मालकिन यह तो ज्यादा है?”
“हां हां दीपावली आ रही है ना तो आपके बच्चों और परिवार को भी तो खिलौने और कपड़ों की जरूरत होगी। उसी से मैं दिवाली के बक्शीस पहले ही दे दी हूं।”
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रामदीन की आंखों में आंसू आ गए। उसने भरे गले से कहा
“बहुत-बहुत धन्यवाद मालकिन!” वह खुश होकर चला गया।
रामदीन को खुश देखकर और घर और बगीचे को साफ सुथरा, चमकता हुआ देखकर सुजाता जी मुस्कुरा उठी।
आखिर वह इस घर की गृहलक्ष्मी थीं।
” अच्छा हुआ दीपावली से एक हफ्ते पहले ही मैं रंग रोगन करवा लिया। मेरा डिसीजन बहुत अच्छा था।” उन्होंने मन ही मन कहा।
” कल से इसे सजाने का काम शुरू करना होगा। उसके बाद मिठाईयां,नमकीन बनाना होगा, दिवाली के गिफ्ट्स खरीदने होंगे।
दसियों काम है…समय से निपटा जाए तो दीवाली अच्छी मनेगी।” वह मन ही मन बोली।
दूसरे दिन से वह घर के कामों से निवृत होने के बाद मार्केट की चक्कर लगा लिया करती।
कभी दरी, कभी कुशन,सोफाकवर, कभी चादर, बच्चों के कपड़े, लेनदेन के कपड़े बहुत सारे काम थे…।
” सुजाता, कुछ ज्यादा ही व्यस्तता बढ़ रही है तुम्हारी, फिर से जोड़ों का दर्द बढ जाएगा। “पति दीपेश के कहने पर सुजाता जी बोलीं
“अब क्या करूं, त्योहार आ रहे हैं तो करना ही पड़ेगा और कौन करेगा?
इस बार तो दीपाली भी आएगी, दामाद जी भी आएंगे। दीवाली यहीं मनाएंगे तो उनके लिए भी तो सारे प्रबंध करने पड़ेंगे ना।”
” हां वह तो है ।दीपेश जी ने कहा, और हमारी यह छोटी महारानी… यह जो दिन भर घर में पड़ी रहती है मोबाइल में रमी रहती है!”
“जाने दीजिए ना जी, वह अभी फ्री हो पाई है। अभी तो उसके इम्तिहान खत्म हुए हैं।”सुजाता जी अपनी छोटी बेटी संयुक्ता का बीचबचाव करते हुए बोलीं।
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” हां पर अब उसके बारे में भी तो सोचना पड़ेगा। हमारी दीपाली ग्रेजुएशन से पहले ही पूरा खाना बना लेती थी। वह थी तो तुम्हें कितना आराम था।”
” हां वह तो है ।वह बेचारी दिनभर मेरे पीछे-पीछे घुमा करती थी। अब जाने दीजिए।बच्ची है…!” यह कहकर सुजाता जी ने अपनी छोटी बेटी संयुक्ता को बचाने की कोशिश की।
दूसरे दिन सुबह नाश्ता बनाकर डायनिंग टेबल पर रखकर संयुक्ता को बुलाया।
“आ रही हूं मम्मी!”संयुक्ता ने कहा फिर सुजाता अपने आप में व्यस्त हो गई।
काफी देर बाद वह किसी काम से संयुक्ता के कमरे में गई। उन्होंने देखा संयुक्ता मोबाइल पर व्यस्त है।
उन्होंने दो-तीन बार उसे आवाज देकर नाश्ता के लिए बुलाया था फिर से उन्होंने कहा संयुक्ता जल्दी से ब्रश कर कर नाश्ता कर लो, 10:00 बज गए हैं।”
” हां मम्मी कर लेती हूं!”
” मुझे लगता है दीपेश जी बिल्कुल ठीक कर रहे थे। मुझे संयुक्त पर ध्यान देने की जरूरत है। आखिर इस भी दूसरे घर जाना है।” सुजाता जी मन ही मन बोलीं।
दोपहर के खाने के समय उन्होंने शांति से संयुक्ता से कहा
“संयुक्ता, तुम्हारे दीदी जीजा जी आ रहे हैं अच्छा होगा कि तुम थोड़ी रसोई में मेरी मदद करने की कोशिश करो।थोड़ा समय निकालो।”
” पर मां, मुझे तो कुछ आता ही नहीं है?” संयुक्त ने बेफिक्री से कहा ।
“कोई बात नहीं, किसी को कुछ नहीं आता। मुझे भी नहीं आता था। मैं हूं ना तुम्हें सीखाने के लिए।
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बस तुम्हें रसोई में रहना पड़ेगा। अब कुछ दिन बचे हुए हैं। थोड़ी नमकीन और मिठाइयां बनाकर रख दूंगी ताकि त्योहार के समय मुझे परेशानी ना हो।”सुजाता जी ने कहा।
“ठीक है ममा !”
कुछ एक दिन मेहनत करने के बाद संयुक्ता अब रसोई में आने लगी थी सब्जियां काटने में अपनी ममा की मदद करती। कभी आटा गूंथने में।
नमकीन, मठरी, बालूशाही और नीमकी बनाने में भी संयुक्ता ने सुजाता जी की भरपूर मदद की थी।
देखते-देखते दीवाली की सारी तैयारी हो चुकी थी।
नए-नए वॉल हैंगिंग, फूलों के वेणियां, मनी प्लांट और इनडोर प्लांट्स के नए-नए पौधे ड्राइंग रूम से लेकर बालकोनी तक सज गए थे ।
संयुक्ता ने सुंदर-सुंदर रंगोलिया बना लिया था।
दीवाली की सुबह ही दीपाली और उसके पति रजनीश घर पर आए ।सभी के मुंह से वाह-वाह निकलने लगा।
” क्या बात है घर तो बिल्कुल फिल्मी लग रहा है!”
” सब मेरी गृहलक्ष्मी का कमाल है।” दीपेश जी मुस्कुराते हुए बोले ।
“जीजू यह लो मठरी के साथ चटनी खाओ। यह मैंने बनाया है।”
” सच में !…रजनीश जी ने मठरी खाते हुए कहा…यह तो बहुत ही टेस्टी है…!!टू टेस्टी…!”
दीपाली ने भी कहा
” यम्मी,…!!!,पर मुझे यकीन नहीं हो रहा संजू कि यह तूने बनाया है?”
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“नहीं नहीं इसी ने बनाया है। अब यह रसोई में भी आने लगी है। मेरे साथ काम में मदद भी करने लगी है। मुझे थोड़ा आराम हो गया बिल्कुल तुम्हारी ही कॉपी है।”सुजाता जी ने कहा।
संयुक्ता अपनी तारीफ सुनकर मुस्कुरा दी।
” यह लो, तुम लोगों के लिए नए कपड़े और ज्वेलरी।
तुम लोग अच्छे से तैयार हो जाना। मिठाइयां नमकीन बने हुए हैं जो मन में आए वह खा लेना।
मैं और तुम्हारे पापा, हम लोग पूजा में बैठेंगे। अब तुम लोग मजे करना।
आज रात हमारी पूजा है पहले लक्ष्मी पूजा और फिर काली पूजा जो मध्य रात्रि तक चलेगी।”
शाम होने पर सुजाता जी ने अपनी दोनों बेटियों और दामाद से कहा।
“पर मां, इतनी सारी पूजा?” संयुक्ता ने कहा तो सुजाता जी बोलीं
“अरे बेटी, अभी तो लक्ष्मी जी के साथ भगवान धन्वंतरि और कुबेर जी की भी पूजा करेंगे ताकि इस घर में धन के साथ आरोग्य भी बरसे। उसके बाद मध्य रात्रि में काली मां की आराधना करनी जरूरी है जिससे हमारा भव बंधन कटे और हम संसार चक्र से मुक्त हों।
तुमलोग पटाखे और फूलझड़ियां जलाओ। महराजिन खाना बना देगी।जब भूख लगे तो
आराम से खा लेना।”
सुजाता जी मुस्कुरा रही थीं। उनकी दोनों बेटियां उनकी तरफ बहुत ही कृतज्ञता से देख रही थी।
” हमें भी अपनी मां की तरह ही गृहलक्ष्मी बनना है। उनसे यह सीखना है कि घर को घर कैसे बनाया जाता है।”सुजाता जी की दोनों बेटियां यह सोच रहीं थीं।
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
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