Moral Stories in Hindi : बेटा अब तो नौकरी भी करने लगा है…. कई अच्छे रिश्ते आ ही रहे हैं तो तू अब शादी के लिए तैयार हो जा…! ज्वाला जी ने बेटे अभिमन्यु से कहा…. हां मम्मी तो मैंने भी कहां मना किया है…??
मैं तो शादी के लिए तैयार हूं… बस मुझे नौकरी करने वाली पत्नी चाहिए …..और मम्मी नौकरी भी इसलिए नहीं कि मुझे उसकी आर्थिक सहयोग का लालच है….. बल्कि इसलिए कि वह भी… आत्मनिर्भर रहकर .. एक स्वाभिमानी बनकर अपने स्वयं के अस्तित्व की गरिमा रख सके … !! और घर में खाली बैठकर क्या करेगी खाली दिमाग शैतान का घर … हंसते हुए अभिमन्यु ने माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश की …। वरना मैं इतना तो कमा ही लेता हूं कि हमारा परिवार ठीक से चल जाए अभिमन्यु ने मम्मी से अपने मन की बात कह डाली….।
तेरी बात तो बिल्कुल सही है बेटा…. इतना पढ़ लिख कर आज के जमाने में कौन सी लड़की घर में बैठना चाहेगी… अच्छा है दोनों नौकरी करोगे… व्यस्त भी रहोगे और आर्थिक दृष्टि से भी सबल बनोगे…। पर….. कहते कहते रुक गई ज्वाला जी …..क्या मम्मी बोलिए ना आप रुक क्यों गईं… अभिमन्यु ने मां के मन की बात जाननी चाही…।
देख अभिमन्यु तू शादी के लिए तैयार है…. हामी तो तुने भर दी है …पर वास्तव में क्या तू तैयार है…? इतनी सब जिम्मेदारियां लेने को …? मैं नहीं चाहती बेटा शादी के बाद रोज-रोज का किचकिच और तू तू मैं मैं …. तुम दोनों के बीच हो…. बहू भी नौकरी पेशा वाली होगी …शाम को ऑफिस से आने के बाद उसका भी तो मन करेगा कोई एक कप चाय बना कर दे ….यदि तू बिल्कुल स्वयं के समान बहू की जिम्मेदारियों को भी समझेगा …तभी सुखमय दांपत्य जीवन बिता पाएगा…।
देखो बेटा यदि तुम नौकरी पेशा वाली पत्नी चाहते हो…..तो तुम्हें भी अपनी आदतों में सुधार करना होगा ….अभी मैं हूं तो चल जा रहा है तुम्हें बैठे-बैठे नाश्ता खाना तब समय पर मिल जाता है…. तुम सिर्फ समय से ऑफिस जाना आना करते हो…! इसके अलावा घर का कोई काम नहीं करते …पर शादी के बाद तुम पति पत्नी दोनों नौकरी वाले रहोगे ….तो तुम्हें भी घर संभालने… खाना बनाने… कपड़े धोने …जैसे काम आना चाहिए …ताकि तुम दोनों मिलकर घर और बाहर दोनों जगह अच्छी तरह तालमेल बैठा सको…! और रोज के किचकिच से बच सको…।
अब जैसे तुम बाहर काम करोगे वैसे बहू भी बाहर काम करेगी तो फिर घर के काम भी दोनों को मिलकर ही करना पड़ेगा… इसके लिए तुम्हें भी खाना बनाना सीखना चाहिए…।
“अब वह दिन गए जब माताएं अपनी बेटियों से कहती थी कि… शादी होने वाली है …खाना बनाना …घर गृहस्थी का काम सीख लो…. बल्कि आज तो माताएं बेटों से भी यही कह रही हैं “….!! जैसे मैं तुझे समझा रही हूं ज्वाला जी ने अपने मन की शंका बेटे के समक्ष रख ही दिया…।
हां मम्मी मैं समझ सकता हूं… आप ठीक कह रही हैं… मुझे खाना बनाना आता भी है… आपको तो पता ही है जब मैं पढ़ने के लिए बाहर था तो खुद ही खाना बनाता था….! वह तो अभी ना थोड़ा.. आपके राज में तो मैं भी राज कर लूं… हंसते हुए गंभीर माहौल को खुशनुमा बनाने की अभिमन्यु ने कोशिश की….।
मैं भले ही गृहिणी हूं… बाहर जाकर काम नहीं करती और तु मुझे बचपन से देखा है घर संभालते हुए.. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि बहू भी मेरे समान सारी जिम्मेदारियां अकेली निभाए….।
एक बात बताऊँ बेटा… कभी कभी मेरा भी मन बिल्कुल नहीं करता है खाना-वाना बनाने का…. एक ही काम करते करते ऊब जाती हूँ… पर इतनी विवशता होती है …कि करना ही पड़ता है ….और मैं नहीं चाहती हूं की यही विवशता मेरी बहू को भी हो….! कोई भी काम तेरा मेरा नहीं होना चाहिए… मिलजुल कर सारे काम का निपटारा हो जाना चाहिए…।
यह सच है साथियों… आज के परिवेश में लड़के और लड़कियों दोनों को हर काम आना चाहिए…. और आना ही नहीं …बल्कि मानसिकता भी ऐसी होनी चाहिए ….कि हमारी भी जिम्मेदारी है…. रसोई घर…. ना कि सिर्फ स्त्रियों की ….यह मानसिकता आज की आवश्यकता अनुसार बच्चों में हमें बचपन से ही डालनी होगी…! हमारी भी जिम्मेदारी है कि लड़के लड़की दोनों को समान रूप से काम की जिम्मेदारी सौंपे… ताकि वह बड़े होकर कामों में…” लिंगभेद ” ना कर सके …और मानसिक रूप से हर काम के लिए तैयार रहे…।
साथियों मेरे विचार कैसे लगे अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें…!
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
श्रीमती संध्या त्रिपाठी