गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर – रत्ना साहू

सौम्या! हां सौम्या नाम था उसका| लंबी छरहरी एकदम गोरी-चिट्टी कमर तक सिल्की बाल तीखे नैन नक्श जो कोई एक बार उसे देखता, देखता ही रह जाता।

लेकिन उसका बस नाम ही सौम्या था बाकि बोली और स्वभाव में जरा भी सौम्यता नहीं थी। तीन भाई बहनों में सबसे छोटी थी पिता बड़े बिजनेसमैन थे कुल मिला जुला कर काफी सुखी संपन्न परिवार से थी। अपनी सुंदरता और अमीर होने का उसे थोड़ा घमंड भी था। बस उसे बचपन से ही काले रंग से सख्त नफरत थी। इस पर दोनों भाई उसे हमेशा चिढ़ाते कि तेरे लिए काला पति ही ढूंढ कर लाऊंगा और वह रोते हुए भागकर मां को शिकायत करने जाती ।

मां कहती, काला हो कोई बात नहीं लेकिन दामाद बिजनेस वाला नहीं हो नौकरी वाला हो जो काम के साथ अपने परिवार को भी समय दे। देखो तुम्हारे पापा इतने बड़े बिजनेसमैन हैं दिनभर व्यस्त रहते हैं उनके पास हमारे साथ बिताने को समय ही नहीं है। ना तो कभी रविवार होता है ना ही कोई होली दिवाली हर दिन काम और सिर्फ काम, तब सौम्या पैर पटक कर रोने लगती।

इस तरह हंसते-खेलते समय कब पंख लगाकर लगाकर उड़ गया पता ही नहीं चला दोनों भाई उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने पापा के साथ बिजनेस में लग गए।

सौम्या स्कूली शिक्षा पूरी कर कॉलेज की पढ़ाई बड़े शहर में जाकर करने की ठानी।

पिताजी ने कहा, “बेटा अपने शहर में भी तो अच्छे कॉलेज हैं दोनों भाई ने तो यहीं से पढ़ाई की है तुम भी यहीं से कर लो अपने शहर में भी रहोगी और हम सबके साथ भी।”

लेकिन सौम्या ने जिद पकड़ ली और सबको उसकी बात माननी पड़ी।

बडे़ शहर के बड़े के कॉलेज में सौम्या का एडमिशन हुआ और हॉस्टल में रहने की व्यवस्था। जब वह जाने लगी तो पापा ने कहा, “बेटा तुझे बड़े शहर सिर्फ पढ़ने के लिए भेज रहा हूं रहना तुमको इधर ही है।

” जी पापा समझ गई ।”

पढ़ाई पूरी करने में अभी 1 साल बाकी ही था कि पिता और भाइयों ने मिलकर सौम्या के लिए लड़का ढूंढने लगे। लड़का सरकारी नौकरी वाला और गोरा भी हो।

उधर सौम्या की जिंदगी में एक लड़का आ चुका था ‘विहान’, वह भी  शहर के बड़े बिजनेसमैन का इकलौता बेटा था दिखने में बहुत हैंडसम 6 फुट लंबा गोरा-चिट्टा, चौड़ी छाती, सिक्स पैक एब्स निकला हुआ। लड़कियां देखती तो देखती रह जाती। वह जब पहली बार कॉलेज आया तो सौम्या के साथ और कितनी लड़कियां दिल हार बैठी, पर विहान दिल हारा सौम्या पर। अब वह अक्सर उसी के साथ घूमती कभी पार्क तो कभी कॉफी शॉप, साथ जीने मरने की कसमें खाने लगे।


काफी प्रयासों के बाद भी जब मन मुताबिक लड़का नहीं मिला तो सौम्या के पापा अशोक जी ने अपने पुराने मित्र दीन दयाल बाबू के बेटे विजय को पसंद कर लिया।

दीनदयाल बाबू  बहुत ही सज्जन और नेकदिल इंसान हैं। पिछले महीने ही हेडमास्टर से रिटायर हुए हैं। एक बेटा और बेटी है बेटी की शादी हो चुकी है। बेटा कुछ महीने पहले ही कॉलेज में लेक्चरर बने हैं। पत्नी गरीब और अनाथ बच्चों को पढ़ाती है। कुल मिलाकर ठीक-ठाक परिवार है। समस्या बस एक ही थी विजय देखने में सांवला था।

मां, बस इसी बात के लिए डर रही थी कि कहीं सौम्या मना न कर दे इस रिश्ते से।

वही हुआ जिसका डर था सौम्या जब पढ़ाई पूरी करके आई तो मां ने उसको इस रिश्ते के बारे में बताया पर सौम्या ने साफ मना कर दिया और अपनी पसंद विहान के बारे में सारी सारी बातें बता दी।

सख़्त स्वभाव के अशोक बाबू को जब यह बात पता चली तो उन्होंने उस रिश्ते से साफ मना कर दिया और सौम्या को भी उस लड़के से बात करने को मना कर दिया।

सौम्या बहुत रोई पर उसकी एक न चली उसके दोनों भाइयों ने बहुत समझाया मां ने भी समझाया तब जाकर वह विजय से शादी के लिए तैयार हुई।

फेरे लेते समय सौम्या मन ही मन सोच रही थी इस काले कलूटे ने क्या किस्मत पाई है जो मुझ जैसी सुंदर पत्नी मिल गई और एक मेरी किस्मत जो इतना अच्छा लड़का विहान जो मेरा होते-होते रह गया। पर तुम ज्यादा खुश मत हो बेटा तबाह हो जाएगी जिंदगी तुम्हारी मेरे साथ। मैं, तुम्हारी कभी नहीं बनूंगी।

शादी के बाद वह ससुराल में किसी से ढंग से बात नहीं करती थी। रात को कमरे में भी अकेले जोर से दरवाजा बंद करके सो गई मन में सोचने लगी तू कितना भी दरवाजा खटखटाये मैं तो खोलूंगी नहीं।

कुछ दिनों तक यूं ही चलता रहा वह समय से पहले ही जाकर अपने कमरे का दरवाजा बंद करके सो जाती।

बहू का यह रवैया देखकर विजय की मां ने अपने पति से कहा कि शायद हमारे बेटे बहू के बीच में सब ठीक नहीं है। तब दीनदयाल बाबू कहते अरे! यह अरेंज मैरिज है। एक दूसरे को समझने में समय लगेगा। आप चिंता ना करें जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।

कुछ दिन बाद सौम्या फिर से अपने कॉलेज गई कुछ कागजात लाने के लिए। विजय ने कहा, “मैं चलूं साथ में?”

सौम्या ने अनमने ढंग से बोला, “नहीं, मैं अपने भाई के साथ जा रही हूं।”

कॉलेज जाकर उसे विहान मिला। उसे देखते ही  लिपट गई और रोने लगी विहान ने उसे दूर झटकते हुए कहा, “चल हट झूठी तू मुझे बिना बताए शादी कर ली।”


“नहीं मैं झूठी नहीं हूं! वो पिताजी ने मना कर दिया। इसीलिए मुझे पीछे हटना पड़ा इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।”

“नहीं तुम झूठी हो! तुम अभी भी झूठ बोल रही हो चले जाओ यहां से।” और बुरा भला कहने लगा।

तभी उसके भाई ने दो खींच कर मारा विहान को। झूठी ये है या फिर तुम?

“भैया, आपने उसे क्यों मारा यह झूठा नहीं है।”

“तुम्हें यकीन नहीं हो रहा है तो मैं तुम्हें दिखाता हूं सबूत इसके झूठे होने का।”

फिर उसने एक वीडियो दिखाया जिसमें विहान को एक लड़का पूछता है कि अरे! सौम्या की शादी हो रही है तुम्हें पता है? फिर विहान बोल रहा है कि हां मुझे पता है।

लेकिन तुम उससे शादी करने वाले हो ना?

फिर वह बोलता है, “मैं कब उससे शादी करने लगा वह तो बस एक टाइमपास था एंटरटेनमेंट के लिए। कहां मैं बड़े शहर का बड़े बिजनेसमैन का बेटा और वह एक छोटे शहर की बहनजी टाइप लड़की। हां वह सुंदर थी तो दिल को भा गई। शादी तो अपने पिता के अनुसार करूंगा अपना कोई स्टेटस है कि नहीं।”

सुनते ही सौम्या के पैरों तले जमीन खिसक गई ।मारने के लिए थप्पड़ उठाया पर उसके भाई ने रोक लिया और बोला,

तुम्हारे कहने पर पिताजी और मैं इससे मिलने आया था। पापा की अनुभवी नजरें पहचान गई उन्हें यह लड़का कुछ ठीक नहीं लगा। उन्होंने ही मुझे यह सुझाव दिया कि किसी को भेजकर जरा पता करो इसके मन में सौम्या के लिए क्या है? तब मैं  कॉलेज के एक स्टूडेंट को भेजा था इसके पास। बांकी सब तुम्हारे सामने है।

फिर उसने न्यूज़ पेपर दिखाया जिसमें उसकी सास का इंटरव्यू छपा था। जिसमें लिखा था की अनाथ बच्चों को पढ़ाना मेरे बेटे का आईडिया था। उसने ही बोला कि हमें कुछ समाज के लिए भी करना है।

अब बोलो बहन, जो समाज के लिए इतना कर सकता है वह अपने परिवार के लिए कितना करेगा।

सौम्या की आंख से झर झर आंसू बहने लगे भाई से माफी मांगने लगी।

वहां से वह सीधा अपने ससुराल गई और रात में अच्छे सी दुल्हन के जैसे तैयार हुई अपना कमरा सजाया फिर विजय के पास गई । देखा वह गाना गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर गोरा रंग एक दिन में…!


सुनते हुए कुछ लिख रहा था।

सौम्या ने कहा, “सारा गुमान ढह गया कोई गुमान नहीं है अब इस गोरे रंग पर!”

विजय सकपका गया, बोला “अरे आप यहां कुछ काम था?”

“कुछ नहीं बहुत काम है। इतनी सुंदर बीवी सज धज के खड़ी है और आप लिखने में व्यस्त हैं जरा मुझे भी निहारिए।”

“अरे मैं इस चांद को निहारने के लिए तो कब से चकोर बनकर बैठा हूं, पर क्या करूं चांद भी रूठ गया है अपनी चांदनी बिखेरना ही नहीं चाहता मुझ पर शायद मैं काला हूं इसलिए।”

सौम्या ने हाथ जोड़ते हुए कहा मुझे माफ कर दीजिए मैं आपको पहचानने में देर कर दी।आप काले जरूर हैं पर दिलवाले हैं और मुझे पता है कि आप मुझे बहुत प्यार करने वाले हैं ।आई लव यू आज से यह चांद और इसकी चांदनी सिर्फ और सिर्फ आपकी है।”

विजय ने सौम्या को बाहों में भर लिया। सौम्या छोड़ते हुए बोली, “अब मुझे अपने गोद में उठा कर कमरे में चलोगे या चांद का दीदार यही करते रहोगे रात भर।”

विजय हंसते हुए सौम्या को गोद में उठाकर कमरे की ओर चल पड़ा।

अगली सुबह वह नहा धोकर मंदिर में दिया जलाई फिर सास और ससुर के लिए चाय बनाकर देने गई। सास ससुर देखकर बहुत खुश हुए। सौम्या ने दोनों के पैर छुए। सास ने कहा, “सदा खुश रहो!”

“सौम्या बोली कुछ और भी बोलिए ना मां जी ।”

“और क्या बोलूं?”

वही जो हर सास अपनी बहु को आशीर्वाद देती हैं।

“अच्छा समझ गई, खूब खुश रहो सदा सुहागन रहो दूधो नहाओ पूतो फलो”।

दोनों सास बहू गले मिलकर खूब हंसने लगी।

#अहंकार 

लेखिका : रत्ना साहू 

 

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