गुड़ न्यूज़ – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

आधी रात बीत गई लेकिन लता की आँखों में नींद का नामों -निशान नहीं था..। कल क्या होगा यही सोच -सोच कर परेशान थी।

सुबह चार बजे बिस्तर से उठ, नहा -धो कर मंदिर में दिया जला हाथ जोड़ कर बैठी थी, आँखों बंद जरूर थी लेकिन आँखों से बहते आँसू उसकी खराब मनोदशा को व्यक्त कर रहे थे।

एक स्त्री के लिये अपना मुकाम पाना कितना मुश्किल होता है, अधूरी पढ़ाई संग जब ससुराल आई,उसने पति वैभव से अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने का आग्रह किया।

“अब आगे पढ़ कर कौन सा तुमको बैरिस्टर बनना है “सासू माँ ने तंज कसा।

“भाभी अब सीधे जज बनेंगी, चेहरे से तो माध्यमिक स्कूल की टीचर लगती है “छोटी ननद विभा ने उसके साधारण पहनावे पर कमेंट दिया। दोनों माँ -बेटी हँस दी, लता खून का घूंट पी कर रह गई।

 एक मध्यवर्गीय परिवार की बेटी को सपने देखने का हक़ है लेकिन पूरा करने का नहीं..। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही,माता -पिता सुयोग्य वर मिल जाने से,उसके हाथ पीले कर गंगा नहाने के मूड में थे। बिना लता से पूछे शादी तय कर दी गई, कुछ समय बाद विवाह भी हो गया

पढ़ाई पूरी ना कर पाने का मलाल लिये लता ससुराल तो आ गई, मौके की तलाश में थी, कब अपनी पढ़ाई की अनुमति ले, पढ़ाई पूरी कर ले..।

बड़ी कठिनाई और व्यंग बाणों को झेल कर उसे पढ़ाई की अनुमति मिली, लता ने इसे ही अपना सौभाग्य माना और पूरे मन से पढ़ाई कर स्नातक की डिग्री ले ली। उसकी पढ़ने की ललक देख पति ने आगे की पढ़ाई का फॉर्म भरवा दिया।

पढ़ाई पूरी कर लता ने एक डिग्री कॉलेज में इंटरव्यू दिया था,जिसका आज रिजल्ट आने वाला था, इसलिये लता परेशान थी,। एक और तनाव उस पर हावी था .. दो महीने से तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही थी, सब खाया -पिया उलट जाता …। आज डॉ. के पास भी जाना था…।

“लता यहाँ क्यों बैठी हो, जल्दी करो, डॉ. के पास हमें समय से पहुंचना है, फिर वही से मै ऑफिस के लिये निकल जाऊंगा ..”वैभव ने लता को मंदिर में बैठ देख कहा…।

जल्दी -जल्दी चाय -नाश्ता बना, सबका टिफ़िन तैयार कर लता डॉ. के पास जाने को रेडी हो रही थी, नजरें बार -बार दरवाजे पर जा रही थी,…।

हार कर लता पति के संग स्कूटर पर बैठ डॉ. के क्लिनिक चली गई…।

चेकअप के बाद डॉ. बोली “बधाई हो .. “गुड न्यूज़” है…”

वैभव का चेहरा खिल उठा पर लता का मुरझा गया…।समझ नहीं पाई खुश हो या रोये…।डॉ. के चैम्बर से बाहर निकल कर वैभव ने लता को बधाई दी….शादी के तीन साल हो चुके थे.., घर में सभी को नन्हे मेहमान आने का इंतजार था..।

“अब तो ऑफिस जाने का मन ही नहीं है, घर चल कर गुड न्यूज़ को सेलिब्रेट करते है “कह वैभव ने स्कूटर घर की तरफ मोड़ दिया…।

घर पहुंचते ही वैभव ने सबको गुड न्यूज़ की सूचना दे ही रहा था, दरवाजे की घंटी बज उठी,वैभव दरवाजे पर देखने गया….,”लो एक और “गुड न्यूज़…” कहता एक लिफाफा लता के हाथ में दे दिया..। लता का अपॉइंटमेंट लेटर था..। उसकी जिंदगी का पहला “जॉब ऑफर ..”.,जिसका लता सुबह से इंतजार कर रही थी…।

दूसरी गुड न्यूज़ पा कर भी लता का फिर सुबह वाला हाल था…। ये कैसा न्याय है,चिरप्रतीक्ष “गुड न्यूज़ “मिली पर ऐसे समय में जब उसके लिये फैसला करना कठिन था, कौन सी सेलिब्रेट करें….।

नन्हे मेहमान के आगमन की सूचना से घर में सभी लोग खुश थे, यहाँ तक की व्यंग बाण से भेदने वाली सासू माँ भी बहुत खुश थी…।”अपॉइंटमेंट लेटर की बात सुन बोली “कोई नौकरी नहीं करनी है, तुम्हे पढ़ने का शौक था, वो पूरा किया हमने तो अब तुम्हारा भी कर्तव्य है, हम सबकी चाहत पूरी करो..।

वैभव उसकी मनस्थिति समझ रहे थे…,हाथ पकड़ कमरे में ले आये “मेरी तरफ से तुम निर्णय लेने को स्वतंत्र हो,.. इसमें दो राय नहीं कि एक गुड न्यूज़ तुम्हे छोड़नी पड़ेगी …, निर्णय तुम्हारा है तुम क्या चुनती हो….”।

वैभव की बात सुन लता ने निर्णय ले लिया, अपनी खुशी के लिये बाकी की खुशियों को छीनने का उसे कोई अधिकार नहीं है, जहाँ तक उसका प्रश्न है, उसके लिये दोनों ही महत्वपूर्ण है…।

पिछली रात परिणाम के तनाव से सो नहीं पाई, और आज खुशियों को चुनने के जंग में नींद नहीं आ रही थी..।

सुबह के सूरज के निकलते ही, मातृत्व… कैरियर पर भारी पड़ गया, निर्णय हो गया…। वैभव के गले लग लता खूब रोई…., भड़ास निकल जाने के बाद लता का चेहरा बारिश के बाद निकली धूप की तरह चमक गया…।

वैभव ने अगर उसे बाध्य किया होता तो शायद लता इतनी आसानी से निर्णय ना ले पाती, लेकिन वैभव की उदारता ने उसे अदृश्य बंधन में बांध उदार कर दिया……,और लता ने मातृत्व चुन कैरियर को दरकिनार कर दिया…।भले ही उसके लिये निर्णय कठिन था लेकिन एक बड़े मनमुटाव के आगाज़ को उसने खत्म कर दिया।

नौ महीने के इंतजार के बाद जुड़वा बच्चों की किलकारी ने उसके घर आंगन को खुशियों से भर दिया।

ठीक चार साल बाद लता ने फिर पास के स्कूल को ज्वाइन कर लिया, जिससे शाम को बच्चों को पूरा समय दे सके… इस बाऱ उसे सबका सहयोग मिल गया,।

 दोस्तों कई बार जिंदगी ऐसे दो राहे पर आ खड़ी होती, जब निर्णय लेना कठिन हो जाता…, विशेषकर स्त्रियों के साथ…। कैरियर चुनती है तो पारिवारिक जीवन उथल -पुथल हो जाता..। हाँ घर वालों का सहयोग हो तो वे अपने कैरियर और घर दोनों में चार -चाँद लगा देती..। पर प्रश्न है सहयोग मिले तब ना…..।

                     —संगीता त्रिपाठी 

#मनमुटाव

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