मैं प्लस टू पास कर ली हूं मां…. आज आप अपने वादे के अनुसार अपनी जिंदगी की कहानी और सारे राज मुझे बताएंगी. परी मेरे गले में बाहें डाल कर बोली.
अभिशप्त जिंदगी श्रापित शहर और घुटन भरा घर का माहौल…. परी के जनम के साथ हीं मैने ये वादा अपने आप से किया था, जो मेरे साथ हुआ तुम्हारे साथ कभी नहीं होगा.…. तुम्हे मै इस माहौल से दूर रखूंगी… ससुराल में बहु की कोई जगह हीं नहीं है… तुम्हारे जनम के बाद मैने जाना बेटी और बेटा में बहुत भेदभाव होता है… मैने तो अपमानित होना अपनी किस्मत मान लिया था…. पर तुम्हारे साथ तुम्हारी दादी तुम्हारे पिता और दादा का व्यवहार मेरी आत्मा को छलनी कर गया… तुम्हारे रंग रूप का मजाक उड़ाना, जब भी तेरी मालिश करती कोई न कोई काम बता तुम्हारी दादी मुझे उलझा देती.. हुं नाम रखा है परी दिखने में है बंदरी और सब का समवेत ठहाका गूंज उठा… मेरे कानों में जैसे किसी ने गर्म पिघला सीसा उड़ेल दिया हो.…तुम भूख से रोने लगती मैं दौड़ती तुझे दूध पिलाने के लिए पर तेरी दादी चिल्लाने लगती कैसी राक्षसनी पैदा की हो, हमेशा इसे भूख हीं लगी रहती है..
तुम तीन साल की हो गई. मैने स्कूल में डालने के लिए तुम्हारी दादी और तुम्हारे पिता से मिन्नतें करती पर तेरी दादी ने कहा अब छोरा जनो वरना मुन्ने का दूसरा ब्याह करवा दूंगी.. और इसको पढ़ाने की कोई जरूरत नहीं करना तो इसे दूसरे घर में जाकर चाकरी हीं है… घर के काम सीखेगी और चिट्ठी लिखने लायक तू हीं पढ़ा देना… ज्यादा सर ना चढ़ा.. वरना कहीं बसेगी नही जीवन भर मेरे मुन्ने के कलेजे पर मूंग दलेगी… मेरी आंखें भर आई.. दिल चाक चाक हो गया…
औरमैं तुझे लेकर अपने मामा मामी के पास गई पनाह मांगने.. क्योंकि मैं अनाथ थी.. बचपन में हीं एक दुर्घटना में मां बाबूजी गुजर गए थे… मामा ने तरस खाकर पाला पोसा… मामी घर का सारा काम करवाती… उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे और मैं सारे काम कर सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती… मामी का आदेश था बचे हुए काम लंच टाइम में आकर खत्म कर दो वरना कल स्कूल नही जाने दूंगी… सहेलियां हल्दी पीसने से पीले हुए हाथ देखती तो हंसती तू मसाला पिसती है…
और मामी ने हीं मेरा रिश्ता कम उम्र में हीं आनन फानन में तय कर दिया… क्योंकि उन्हें बहु नही फूल टाइम के लिए नौकरानी चाहिए थी जो बिना किसी अधिकार के चुपचाप सब सहन करती रहे..
और जब मामी ने मुझे तेरे साथ दरवाजे पर देखा तो बोली फिर अपनी मनहूस सूरत लेकर आ गई….. एक सप्ताह बीतते बीतते रहना दुभर कर दिया… फिर तुझे लेकर मैं अपनी सहेली के पास जो कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी थी उसके पास गई.…. उसने रहने की छत दी.. मैं दो तीन घरों में खाना बनाने लगी… तू स्कूल जाने लगी… तुझे सात साल की उम्र में मेरी सहेली नैनीताल के एक अच्छे स्कूल में डाल दिया… और मै धीरे धीरे टिफिन बनाने लगी… जी तोड़ मेहनत कर के तेरी फीस भेजती… मेरे खाने का स्वाद लोगों के जुबान पर चढ़ गया है.. अब मेरा खुद का घर है.. शहर में मेरी पहचान है… तुझे मैने इसलिए ये सब नही बताया कि तेरे ऊपर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा… तुझे कहीं और से पता चल हीं गया… अब बताओ परी मैने कोई गलत काम किया है . परी ने दोनो हाथों से मेरा चेहरा पकड़ कर मेरी आंखों में देखते हुए कहा मुझे आप पर गर्व है मां… दुनिया की बेस्ट मां हैं आप.. मेरे संघर्ष का इतना सुखद परिणाम!! परी ने कहा मां मैने भी प्लस टू में अपने डिस्ट्रिक्ट में टॉप की हूं और आगे भी मैं अपने करियर के सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंचने की कोशिश करूंगी क्योंकि मैं आप जैसी विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष कर अपना मुकाम हासिल करने वाली मां की बेटी हूं…
हां मैं ये बात गर्व से कहती हूं मेरी मां टिफिन बना कर लोगों को भेजती है जो अपने परिवार से दूर बैंक में कॉलेज में रेलवे में जॉब कर रहे हैं… जिन्हे घर की दाल रोटी खाने की आदत है… बहुत से स्टूडेंट भी हैं जो कमजोर आर्थिक स्थिति वाले हैं, वो मेरी मां के पास आते हैं टिफिन लेने.. काम बढ़ने पर अब मां ने स्टाफ भी रख लिया है. मेरी मां इन लोगों के लिए अन्नपूर्णा हैं.
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Veena singh
ममस्पर्शी
मर्मस्पर्शी