घूघंट में चांद – बालेश्वर गुप्ता  : Moral stories in hindi

   राम राम कैसा जमाना आ गया है,ना लाज ना शर्म।छी-किसी से भी शर्म नही।

      फ्लैट की बॉलकोनी में बैठे बैठे कमला बड़बड़ा रही थी।उनका  बड़बड़ाना सुन पास में ही बैठी उनकी रिश्ते की बहन बिमला बोली कमला क्या हुआ,क्या हो गया है जमाने को?

       री,देख इस पार्क में ये लड़की लड़के के हाथ को पकड़े कैसे बेशर्मो की तरह बैठी है।इतने सारे लोग पार्क में घूम रहे हैं, पर इन्हें कोई संकोच नही।बिमला हमारे जमाने मे तो हम बिना घूंघट कही आ जा भी नही सकते थे,शादी से पहले भी कही जाना होता था तो साथ मे भाई या बाबूजी जाते थे। तुझे याद है ना?

         लगभग 70 वर्ष की कमला  अपने बेटे आशीष और बहू मोहिनी के साथ इस फ्लेट में रहती थी।फ्लैट के टॉवर के साथ ही नगर निगम का पार्क सटा था।बॉलकोनी में बैठकर पार्क की छटा साफ दिखायी देती,इसी कारण वहां मन भी खूब लगता था।कमला के पति का तीन वर्ष पूर्व ही निधन हो चुका था।अपने चार वर्षीय पोते के साथ कमला अधिकतर बॉलकोनी में ही बैठी रहती थी।दो दिन पहले ही उसकी दूर के रिश्ते की बहन जो उसकी सहेली जैसी थी, बिमला उसके पास एक सप्ताह भर रहने को आयी थी।आज वे दोनो ही बॉलकोनी में एक साथ बैठी थी।पार्क में एक नवयुवक और नवयुवती को एक साथ देख कमला को बुरा लग रहा था,क्योकि स्पष्ट था कि वह लड़का और लड़की अविवाहित थे।

       कमला जब मात्र 17-18 वर्ष की ही थी तो घर पर उसकी मां ने बताया कि कमला तेरा रिश्ता तय कर दिया गया है,बृजेश एक जमीदार घराने का बेटा है,तू खूब खुश रहेगी।माँ तब तक रोज ही कुछ न कुछ समझाती रही जब तक कमला का विवाह बृजेश से नही हो गया।माँ की सीख रहती बिटिया बड़ा घराना है, मान मर्यादा में रहना,सिर से पल्लू नही हटना चाहिये,बड़ो से घूंघट निकालना न भूलना,बड़ो के रोज पावँ छूना, सबका कहा मानना, आदि आदि।कमला ने ठीक वैसे ही किया जैसे जैसे माँ ने बताया था।माँ की सीख गजब की रही,सब कमला की तारीफ करते सिवाय सासु मां के,कमला भी सबकी जरूरतें पूरी करती।देखा जाये तो पूरा घर कमला पर ही आश्रित हो गया था।पूरे दिन मशीन की तरह कमला सबके काम बिना आलस्य, करती।इसी बीच कमला की गोद मे आशीष आ गया।अब तो कमला की जिम्मेदारी और बढ़ गयी थी।सुंदर गोल मटोल आशीष को देख कमला की सारी थकान वैसे ही दूर हो जाती।सारे घर का काम करती कमला रात में ही सो पाती थक हार कर।अपनी सास से कभी दो शब्द सहानुभूति के या प्रशंसा के कमला ने कभी नही सुने,वह तो हमेशा यही समझती आयी कि शादी के बाद ऐसा ही हर लड़की के साथ होता होगा।यही कारण था कि उसे कभी किसी पर क्रोध आया ही नही,अपने पर भी नही।

     एक दिन काम अधिक था,बदहवास सी कमला के सिर से पल्लू कब सरक गया उसे पता ही नही चला,पर उसकी सास की गिद्ध दृष्टि से यह महान अपराध छिप नही पाया।सास बोली अपने समय मे हमने भी खूब काम किया है पर बहू क्या मजाल जो सिर से पल्ला जरा भी खिसका हो।सास का व्यंग सुनकर कमला को होश आया और जल्दी से सिर को पल्लू से ढक लिया।पति के साथ भी अकेले जाना कमला को याद नही।

         समय का पहिया घूमता गया।आशीष बड़ा होता गया,सास भी नही रही,परिवार सीमित हो गया था,अब घर मे आशीष,वह और आशीष के पिता बृजेश ही रह गये थे।आशीष की शिक्षा पूर्ण होने पर संयोगवश उसकी नौकरी अपने ही कस्बे की शुगर फैक्टरी में लग गयी।इससे लाभ ये हुआ कमला और बृजेश अकेले नही पड़े,उनका बेटा उनके पास ही रहा।अब आशीष के रिश्ते आने शुरू हो गये थे।कमला भी आशीष की शादी चाहती थी,उसे बहू देखने की उत्कंठा थी।आखिर उन्हें मोहिनी बहू रूप में भा गयी।रिश्ता तय हो गया,शुभ मुहूर्त देख बृजेश और कमला ने अपने बेटे आशीष की शादी मोहिनी से कर दी।मोहिनी वास्तव में रूप में और व्ययहार दोनों में मोहिनी थी।कुछ समय मे ही उसने घर संभाल लिया।

     एक दिन कमला धक से रह गयी जब आशीष बोला मां आज रात की शो में मैं मोहिनी के साथ पिक्चर देखने जायेंगे।कमला के लिये यह अप्रत्याशित था,फिर वह यह भी ना समझ पायी कि आशीष उससे सिनेमा जाने की अनुमति मांग रहा है या सूचना भर दे रहा है।असमंजस में कमला कुछ भी ना कह सकी।आशीष बोला मां दरवाजा बंद कर लेना एक चाबी लेकर जा रहे है इसलिये सो जाना, हम अपने आप दरवाजा खोल लेंगे।कमला चुप ही रही।रात में कमला ने अपने पति बृजेश से कहा कि कभी हम और आप ऐसे गये है जैसे ये आशीष और मोहिनी गये हैं।बृजेश जोर से हंस कर बोले अरे अब जमाना बदल गया है कमला,तुम भी बदल जाओ।

    अनमनी सी कमला करवट बदल कर सो गयी। वैसे मोहिनी किसी भी जिम्मेदारी से बचती नही थी।गर्भवती होने पर भी वह भरसक अधिकतर समय कमला के साथ ही बिताती।और एक दिन मोहिनी ने उन्हें पोते का सुख भी दे ही दिया।कमला और बृजेश को तो खिलौना मिल गया था।पर एक  रात्रि में बृजेश जी को दिल का दौरा पड़ गया हॉस्पिटल लेकर गये पर उनके प्राणपखेरू उड़ चुके थे।

      कमला मन अब अपने घर से उचाट हो गया था।आशीष ने अपनी माँ के दर्द को समझ दूसरे शहर में नौकरी के प्रयास प्रारम्भ कर दिये।प्रयास रंग लाये और दूसरे शहर में आशीष को नौकरी मिल गयी।वहां एक फ्लैट किराये पर ले लिया और माँ पत्नी और अपने बच्चे को वही ले आया।फ्लैट में बॉलकोनी कमला को खूब पसंद आयी, वह पोते को ले अधिकतर वही बैठती।सामने पार्क की चहल पहल से कमला का मन लगा रहता।उस दिन अपनी दूर के रिश्ते की बहन के सामने वह पार्क में बैठे एक अविवाहित जोड़े की चुहलबाजी से भभक पड़ी।दबी अग्नि प्रज्वलित हो गयी।

       बिमला सुलझे विचारों की महिला थी,वह वस्तुस्थिति समझ गयी।फिर उसने कहा कमला तुम भी कहाँ अपने जमाने मे ही घूम रही हो,बिल्कुल भी नही बदली।अरे बहना हमारे समय मे और आज के समय मे अंतर आ गया है।पगली आज लड़कियां घर से निकल लड़को से भी आगे हर क्षेत्र में दौड़ रही हैं।वे समझदार हैं, अपना भला बुरा खुद सोच सकने की सामर्थ्य उनमें है।दुर्घटना तो सब जगह हो सकती है,उससे घबरा कर कोई सड़क पर चलना थोड़े ही छोड़ देता है।कमला अपनी सोच बदल नया जमाना है तो इसी तरह सोचना शुरू कर दे तो सुखी रहेगी,अन्यथा ऐसे ही घुट घुट कर मर जायेगी।

       आज कमला के सामने नये और पुराने जमाने की नई व्याख्या  थी,जो उसे किसी ने बताई ही नही थी।आवरण तो हट गया था,पर स्वीकार्यता में समय लगेगा,यह बिमला समझ गयी थी,सो उसने निश्चय कर लिया था कि वह कमला का संकोच समाप्त करके ही जायेगी।

बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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