घूंघट के पट खोल – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

जब से नए पड़ोसी आए थे लोगों की जिंदगी में झांकने की मेरी दिलचस्पी को जैसे नए पंख लग गए थे।वैसे तो कुल पांच जने थे उनके घर में लेकिन चार कहना ज्यादा उचित होगा क्योंकि घर की लक्ष्मी  मतलब उनके घर की बहू लक्ष्मी अदिति  हमेशा अदृश्य अवस्था में ही रहती थी।नहीं नहीं नई नवेली नहीं थी वह।करीब दो वर्ष तो हो ही चुके थे उसके विवाह के लेकिन जब मेरी उससे मुलाकात हुई उस वक्त भी वह इतनी लजीली और संकुचित सी थी मानो कल ही ब्याह कर आई हो।

मेरे छोटे पुत्र अनय का जन्मदिन था तो मैंने अपने नए पड़ोसियों को भी निमंत्रित करने की सोची और पहुंच गई उनके घर।दोपहर को गई थी मै उनके घर ताकि घर की महिलाएं थोड़ी फुर्सत में भी मिल जाएं और पुरुषों के ना रहने से अबाधित वार्तालाप हेतु सुलभ हो सकें।निमंत्रण के बहाने उनके घर के सभी लोगों से परिचय सा हो जाएगा।आखिर पड़ोसी है सारी जानकारी तो रखनी ही चाहिए।

उनके घर का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था थोड़ा उढ़का हुआ सा था मानो थोड़ी देर पहले ही कोई घर के बाहर गया हो।मैने दरवाजे पर हल्की दस्तक दी वह खुल गया और भीतर वाले कमरे से जो बैठक से एक कमरा छोड़ कर अंदर की तरफ़ था दबी दबी लेकिन झिड़की वाली आवाजें सुनाई देने लगीं।

अनजान नए पड़ोसी का घर ।मेरे कान तो मानो सारी दीवारें भेद कर उन आती हुई आवाजों का सिरा पकड़ने की पारंपरिक जासूसी प्रवृत्ति में दत्तचित से हो गए।

….देख बाहर का दरवाजा खुला छोड़ आई होगी लापरवाही की भी हद होती है दिमाग रहता कहां है तेरा….अचानक तेज स्वर के साथ ही अदिति का आगमन हो गया जो अचानक मुझे सामने देख सकपका गई।अपनी नम आंखों को छुपाते हुए उसने जल्दी से सिर घुमा लिया और साडी का पल्लू सिर पर व्यवस्थित करते हुए अंदर भाग गई।

बहुत अजीब लगा मुझे।कैसी असभ्य है।ना अगवाई ना कोई नमस्ते ना बैठने के लिए कहा ।मेरे अंदर व्यग्रता हिलोरे ले ही रही थी कि घर की मालकिन अर्थात् अदिति की सासू  उमा जी आ गई।

अरे आइए आइए नमस्ते बैठिए ना खड़ी क्यों हैं। बहू भी अजीब है आपको बिना कुछ कहे बिठाए अन्दर भाग गई।क्या बताऊं अपनी इस बहू से मै तंग आ गई हूं।देखिए ना अभी मेरा बेटा जिसकी मार्केट में शॉप है वापिस घर आया था अपना टिफिन लेने।अदिति देना ही भूल गई मै इसे यही समझा रही थी और फिर देखिए बाहर का दरवाजा खुला छोड़ आई बैठक में व्यवस्थित रखे कीमती सोफे पर मुझे बिठाते हुए वह स्वयं बगल वाली कुर्सी पर बैठ गईं थीं।

बहुत बड़ा बैठक कक्ष नहीं था।लेकिन सोफे के साथ पड़े दीवान और खूबसूरत कॉर्नर टेबल सहित वह बहुत व्यवस्थित और मोहक अनुभूति दे रहा था।पूरे बैठक में सबसे आकर्षक वस्तु जो मुझे लगी वह थी फ्रंट दीवाल पर लगी बड़ी सी पेंटिंग जो इतनी खूबसूरत थी कि मेरी नजर उसके रंगविन्यास में उलझ कर पेंटिंग में बनी दो महिलाओं को देखती रह गईं थीं।पेंटिंग में एक महिला हरे भरे खूबसूरत बगीचे में उत्फुल्लित बैठी प्रकृति को निहार रही थी और दूसरी महिला सूखे निर्जन ठूंठ वृक्ष वाले क्षेत्र में खाली आंखों से शून्य को निहारती खड़ी थी।दोनों महिलाओं के मनोदशा का बखूबी चित्रण उनके केश वस्त्र रंग विन्यास द्वारा बेहद उम्दा तरीके से उकेरा गया था जो मुझे मंत्रमुग्ध कर गया था हालांकि मुझे पेंटिंग की कला का ए बी सी डी भी नहीं मालूम था।

बहू पानी ला रही है या अभी कुआं खोदने लगी है…. तल्ख स्वर में आदेश देती उमा जी फिर मुझे देखने लगीं।

बहुत सुंदर पेंटिंग है सच में।कहां से खरीदा है आपने इसे मैने तुरंत पूछा ।

खरीदना क्या है।ये तो इसी ने बनाई थी मुझे तो सुहाई नहीं देता ये सब वह बहू की तरफ उपेक्षित दृष्टि डालते हुए बोल पड़ी जो पानी के गिलास की ट्रे लिए खड़ी थी।

इसने यानी तुमने बनाई है मैं अदिति की तरफ देख हतप्रभ थी।

पल्लू ठीक कर ….तभी सासू जी की तीखी आवाज से मेरी ओर देखती अदिति के हाथ कांप गए थे।

आओ यहां मेरे पास बैठो मैंने सासू जी की तीखी दृष्टि  दरकिनार करते हुए अपने पास उसे बिठाते हुए कहा।

बहुत झिझकते हुए वह सहमी हुई सी बैठ तो गई लेकिन सासूजी की आग्नेय नेत्रों की तपिश मुझे भी महसूस हो रही थी।

क्या तुमने पेंटिंग सीखी है ।किससे सीखी है। कितना सधा हुआ हाथ है तुम्हारा तुम तो बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हो जादू है तुम्हारे हाथों में तो बेहतरीन बनाई है तुमने मेरी धाराप्रवाह तारीफ से वह बहुत खुश हो गई लेकिन सासू जी की तरफ देख कर सिर नीचे झुका लिया।

मधु जी आप इसकी झूठी तारीफ करके ज्यादा सर पर मत चढ़ाइए वैसे ही इसका दिमाग ठिकाने पर नहीं रहता है उमा जी तिरस्कृत स्वर में बोल उठीं।

लेकिन ये पेंटिंग सच में अद्भुत है मै झूठी तारीफ नहीं कर रही हूं मैने जोर देकर कहा।

जा तू चाय बना कर ले आ ।आखिर मधु जी पहली बार हमारे घर आई हैं उमा जी किसी भी तरह अदिति को वहां बैठने नहीं देना चाह रहीं थीं।

नहीं नहीं चाय तो आज बिल्कुल नहीं पियूंगी।लंच करके आई हूं।बेटे का जन्मदिन है कल इसीलिए आप सभी को निमंत्रण देने आई हूं।इसी बहाने आप लोगों से मुलाकात भी करनी थी।वैसे भी जब से आप लोग यहां आए हैं बाहर दिखाई ही नहीं पड़ते मैने हंसते हुए कहा तो उमा जी भी हंसने लगीं।

जब से यहां आए हैं घर जमाने में सामान जमाने में जुटे रहे उसी में मेरी तबियत भी कुछ खराब हो गई कहते कहते उन्होंने अदिति को पल्लू सिर पर ठीक करने का इशारा भी कर दिया था।

तो फिर आप सभी कल मेरेघर जरूर आइए अदिति भूलना नहीं मैने नीचा सिर किए बैठी अदिति को टोका तो वह बिना कुछ बोले उमा जी की तरफ देखने लग गई।

हां हां हम दोनों तो जरूर ही आयेंगे ।आखिर आपके बेटे का जन्मदिन है और आप खुद निमंत्रण देने आई हैं उमा जी ने आश्वस्त स्वर में कहा।

आप दोनों नहीं आप सब को आना है इसी बहाने पूरी कालोनी वालों से आपका परिचय हो जाएगा कहते हुए  मैं घर वापिस आ गई।

आते समय मेरे अंदर खामोश अदिति की झुकी गर्दन के साथ ही उसका प्रतिभाशाली लेकिन सहमा व्यक्तित्व और दीवाल पर टंगी बोलती सी वह पेंटिंग हलचल मचाते रहे।मुझे पूरी आशंका थी कि अदिति कल मेरे घर नहीं आएगी।

दूसरे दिन शाम को मेरी आशंका  निर्मूल साबित करते हुए उमा जी का पूरा परिवार मेरे घर आया।अदिति भी साथ आई लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मेरे पति और दूसरे मेहमानों को देखते ही उमा जी के इशारे पर तुरंत ही उसने नाक तक पल्लू खींच कर घूंघट ले लिया।सभी असहज हो गए मै जल्दी से अदिति को अन्दर ले आई।

उमा जी हर पल अदिति के साथ यूं चिपकी रहीं मानो उनके हटते ही  कोई इसे खा जाएगा।और ना ही उसका घूंघट उन्होंने हटाने दिया।

अदिति से बात करने की हर किसी की तरह मेरी भी हर कोशिश की जड़ खोदने को वह तत्पर रहीं।

अदिति के चेहरे पर ओढ़ा हुआ वह घूंघट मुझे उसके प्रत्येक आचरण में दृष्टिगोचर हो रहा था।उसके बैठने में भी घूंघट था कि वह कैसे बैठे सिकुड़ कर या तन कर।किसी से बात करने में भी घूंघट ही था किससे कैसी बात करनी है पूरा मुंह खोल कर करनी है मुस्कुरा कर करनी है गंभीर होकर करनी है कितनी देर करनी है सब पर उमा जी की वर्जनाओं का घूंघट था।यहां तक कि खाना खाते समय भी यही घूंघट टंगा रहा।उमा जी कठोरता से इस घूंघट के लिए चौकस थीं और अदिति कठोरता से आज्ञा पालन को चौकस थी।

जाते समय अदिति चुपके से मेरे पास आई और मेरे हाथों में चुपचाप कुछ थमा कर किसी को बताइएगा नहीं इस बारे में कहती फुर्ती से उमा जी के साथ चली गई।

सबके जाने के बाद मैने वह खूबसूरत लिफाफा जो अदिति के हाथों का बना हुआ ही प्रतीत हो रहा था ,खोला तो उसमें दो कार्ड्स थे।एक मेरे बेटे के लिए था जिसमें उसने उसके नाम अनय के हर अक्षर को रेखांकित करते हुए सुंदर रंग विन्यास किया था।और दूसरा मेरे लिए थैंक यू कार्ड था जो उसकी पेंटिंग की तारीफ करने उसे समझने के लिए दिया जा रहा था।

दोनों ही कार्ड्स की खूबसूरती चित्रलिखित करने वाली थी।मेरे पति और मेरा बेटा और मैं हम तीनों दंग थे देख कर।

हुनर इतना पर घूंघट में।हुनर सरे आम तिरस्कृत किया जा रहा था यह कटु सत्य मुझे आकुल कर रहा था।आज के जमाने में इतना घूंघट करने और करवाने वाले भी पाए जाते हैं देख कर और सोच कर इसके कारण और समाधान के लिए मेरा नारी हृदय व्याकुल हो उठा।

दूसरे ही दिन जन्मदिन वाला केक लेकर मै उनके घर दोपहर में फिर पहुंच गई।

इस बार दरवाजा अच्छी तरह बंद था।फिर भी मेरे जासूस कानों ने अंदर से आती तल्ख आवाजों को सुन ही लिया था।

डोर बेल दबाते ही दरवाजा खुला।सामने उमा जी थीं मुझे देख चकित हो गईं फिर प्रेम से बिठाया।

कल अदिति ने केक अच्छे से नहीं खाया था इसलिए मैं ले आई हूं कहां है अदिति उसे बुला दीजिए मैंने अन्दर की तरफ निगाह फेंकते हुए कहा।

उसकी तबियत ठीक नहीं है उमा जी का जवाब मुझे शुद्ध टालने वाला लगा।

कल का खाना खाने से तो बीमार नहीं हो गई मैंने हंसते हुए माहौल हल्का करने की कोशिश की।

अरे नहीं नहीं ऐसा नहीं है अभी बुलाती हूं ।अदिति यहां आओ देखो मधु जी आई हैं सुनते ही अंदर से तेज चलने की आवाज आई और सामने अदिति खड़ी हो गई।

आओ अदिति लो ये केक तुम्हारे लिए।तुम्हे पसंद है ना मैने उसकी तरफ देखते हुए केक दे दिया।

मैं तुम्हारी इस पेंटिंग के बारे में चर्चा करना चाहती थी इसकी थीम के बारे में इसके मैसेज के बारे में  क्यों और कब बनाई थी तुमने यह मैने जाती हुई अदिति को रोकते हुए पूछना चाहा।

वह जैसे सहम गई।भीरू नजरों से उसने उमा जी की तरफ देखा । एकाएक जोर से बोल पड़ी आप मेरी पेंटिंग के बारे में कुछ नहीं कहिए मुझे कोई चर्चा नहीं करनी।ये जो इसमें दूसरी वाली महिला है ना ठूंठ के पास जो खड़ी है बस मैं वही हूं कहती वह भीतर भाग गई।

उमा जी सकते में आ गईं।

मधु जी मै शर्मिंदा हूं।आप मुझे जल्लाद समझ रही होंगी जो अपनी बहू पर इतना जुल्म कर रही है।असल में इस पेंटिंग में बहुत से राज हैं।ये पेंटिंग इसी ने बनाई है लेकिन शादी के पहले।एक पेंटिंग बनाओ प्रतियोगिता होनी थी ।जिसके लिए इसके पापा ने हरी भरी उत्फुल्लित महिला वाली थीम इसे बताई थी।इसके पिता भी बहुत अच्छे चित्रकार थे और अदिति पर उन्हें पूरा भरोसा था कि वह उनकी इस विरासत को जिम्मेदारी से संभालेगी।इस प्रतियोगिता को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। बहुत तनाव में रहने लगे थे।प्रतियोगिता के दो दिनों पहले अत्यधिक तनाव की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।अदिति तो दुख के मारे पागल हो गई थी।रोते रोते इसके आंसू सूख गए थे।तब इसकी मां ने इसे हिम्मत बंधाई और पिता का स्वप्न पेंटिंग प्रतियोगिता जीतना उनकी आखिरी इच्छा मानते हुए पूरा करने का संकल्प याद दिलाया कि तभी उनकी आत्मा को शांति मिलेगी ये बार बार दोहराया तब अदिति ने नए सिरे से जो पेंटिंग बनाई उसमें पिता की बताई थीम के साथ अपनी मनोदशा के अनुरूप उसका विरोधी प्रतिरूप भी पेंट कर दिया।

प्रतियोगिता में अदिति ही प्रथम आई थी।

लेकिन यह उसकी अंतिम पेंटिंग थी।इसके बाद इसने कोई भी पेंटिंग नहीं बनाई।मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो गई।पेंटिंग और पेंटिंग प्रतियोगिता के कारण ही मेरे पिता जी छोड़ कर चले गए यह विचार इतना जड़ जमाया कि पेटिंग करने से डरने लगी।इसकी मां ने इसकी ऐसी अवस्था देख इसकी शादी कर दी।मुझे और मेरे बेटे किसी को भी इसकी ऐसी अवस्था के बारे में भनक तक नहीं लगने दी।शादी के बाद धीरे धीरे जब ये राज हम पर उजागर हुआ तब तक तो चिड़िया उड़ चुकी थी । हमने इसकी मां से शिकायत की।तब जाकर उन्होंने ये सारी छिपी हुई बातें हमें बताई।

मेरी तकदीर फूटी है ।अब इसे क्या कहूं क्या करूं।कोई काम ढंग से नहीं कर पाती मेरा बेटा कुछ भी नहीं कहता।अपनी किस्मत पर दुखी होता है चुपचाप।कई बार इसे खुद का होश नहीं रहता है।इसीलिए मैं इसके साथ हमेशा साए की तरह रहती हूँ ।हर बात पर टोका टाकी करती हूं।इसे भी डांट फटकार कर रखती हूं ताकि यह डर कर रहे चुपचाप रहे कोई बखेड़ा खड़ा ना करे।कई बार बात करते करते या दूसरी को देख कर अजीब से मुंह नाक सिकोड़ने लगती है इसीलिए बाहर कही भी जाने पर घूंघट करवा देती हूं ताकि शक्ल ही ना दिखेपिता की मृत्यु का सदमा यह बर्दाश्त नहीं कर पाई है।मुझे तो इसकी हालत देखते हुए डर है कि कुछ समय बाद इसे पागलखाने ना भेजना पड़ जाए…

माथे पर हाथ मार कर उमा जी चुप सी बैठ गईं थीं लेकिन मेरे भीतर तो कोलाहल मच गया था।वेदना और सहानुभूति की उत्ताल तरंगें प्रवाहित होने लगीं थीं।कल अदिति द्वारा बना कर लाए खूबसूरत कार्ड आंखों के सामने कौंधने लगे थे।

नहीं उमा जी पागलखाने जाएं आपके दुश्मन..आपका उसके प्रति यह तिरस्कार पूर्ण रवैया ही वह दुश्मन है।मेरे पास अदिति को ठीक करने का एक तरीका है अगर आप सहमत हों और समर्थन दें मैने उनके पास सोफे पर बैठते हुए कहा।

मैं किसी डॉक्टर के पास उसे लेकर नहीं जाऊंगी उमा जी चिढ़कर  बोल उठीं।

नहीं डॉक्टर के पास बिल्कुल नहीं जाएंगे।हम तो शॉप चल रहे हैं पेंटिंग का सामान खरीदने मैने कहा तो वह चिहुंक उठीं।

पेटिंग का सामान खरीदने। नहीं नहीं पेंटिंग से तो इसे दूर रखना है।इसके पिता की स्मृतियां सजीव हो उठती है इसके मन में और यह और भी बेसुध हो जाएगी उमा जी तत्क्षण विरोध कर बैठी।

नहीं उमा जी जिस चीज से आप लोग और ये खुद दूर भाग रही है डर रही है वही तो इसकी बीमारी का इलाज है जब यह पेटिंग फिर से करेगी तभी इसका दिमाग व्यवस्थित होगा।इसके पिता की विरासत इसे बुलाती रहती है। हूक बन कर इसे विगलित कर जाती है।

उस पर आपकी ये ढेरों वर्जनाएं इसकी प्रतिभा पर घूंघट लगा डाका डालते हैं यही घूंघट तो हटाना है ।इसकी आंतरिक सच्ची स्वाभाविक अभिव्यक्ति पर पड़ चुका घूंघट दुबारा पेटिंग करने से ही हटेगा और तभी असली वास्तविक अदिति बाहर आ पाएगी।पिता की मृत्यु का कारण पेटिंग प्रतियोगिता थी पेंटिंग्स थी यह जमा हुआ डर इसकी आत्मा का घूंघट बन चुका है जो समय रहते नहीं हटाया गया तो कभी नहीं हट पाएगा मेरी बातें उमा जी को एकदम सटीक लग रहीं थीं और इसीलिए वह मेरे साथ सामान खरीदने शीघ्रता से चल पड़ीं।

नए कैनवास ढेरों उजले खिलते हुए चटक नए नए रंग अनेकों आकार प्रकार के नए नए ब्रश देख कर पहले तो अदिति सहम गई और उमा जी की तरफ डर कर देखने लगी।लेकिन जब उमा जी ने हंसकर उसे सारा सामान अपने हाथों से दिया और पेंटिंग करने को प्रेरित किया तब वह किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो गई उछलने लगी।शाम को हम सामान लेकर आए थे ।

उस पूरी रात अदिति ब्रश थामे पेटिंग करती रही सुबह जब हम उसके कमरे में गए तब लंबे अरसे के बाद वह नींद में बेसुध मिली और दीवाल से लगी उसकी नई बनाई पेटिंग रखी थी जिसे देख हम बेसुध हो गए।वह थी अद्भुत पेटिंग  जिसमें उसके पिता का बहुत मनोयोग से अदिति को पेटिंग करना सिखाना दिखाया गया था अद्भुत रंग संयोजन अद्भुत चेहरे की अभिव्यक्त लकीरें मानो एक एक भाव सजीव हो गया था।

 

उमा जी आश्चर्य चकित थीं और मैं पूर्ण निश्चिंत।अब अदिति के चेहरे से ही नहीं व्यवहार से ही नहीं वरन उसकी मृतप्राय आत्मा के ऊपर से भी  घूंघट के पट खुल चुके थे….!

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव

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