आज कल्पना अपनी स्कूल की दोस्त बानी से बारह वर्ष उपरांत मिल रही थी । उसका इंतज़ार करते करते कल्पना को अपने पुराने दिन याद आ गए । कैसे हम स्कूल में शैतानियां किया करते थे और बानी उसे आकर हर बार मुसीबत से बचा लिया करती थी । कभी वो बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे ,पर जैसे-जैसे वो बड़े हुए और बारहवीं पास कर ली ।
उसके बाद उन्होंने अलग-अलग दिशा चुनी । जिसके तहत वो एक दूसरे से अलग हो गए और जीवन की कश्मकश में एक दूसरे से मिलना झुलना, बाते करना सब बंद हो गया ।
कुछ सालो बाद बानी को अच्छी नौकरी मिल गयी और मेरी शादी हो गयी । शादी के एक साल बाद बाज़ार में जब बानी की मम्मी मिली तो वो मुझे पहचान गयी और अपने घर चलने को कहा -“मैंने बहुत मना किया पर वो मानी नहीं “।
जैसे ही” मैं उनके घर गयी तो देखती ही रह गयी मैं पहले भी उनके घर आ चुकी थी पर तब में और अब में बहुत फर्क आ गया था” । उनका घर आज के समय अनुसार हर चीज़ से सुसज्जित अच्छा लग रहा था । तभी बानी की मम्मी चाय लेकर आयी और पीते-पीते बातों का पिटारा खोल लिया । जिसमें वह बस अपनी ही बड़ाई किए जा रही थी।
बेटा ! तुमने शादी बहुत जल्दी कर ली ! मुझे लगा तुम नौकरी कर रही होगी । बस आंटी पापा जी को अच्छा परिवार मिला और शादी हो गयी । प्रवीण और इनका परिवार भी सब अच्छा है , किसी बात की कोई कमी नही हैं ।
फिर भी बेटा तुमने शादी करने में जल्दी कर दी , पहले कोई जॉब कर लेती थोड़ा कमा लेती । ख़ैर मैं तो बीना की तरक़्क़ी से खुश हूँ !! आज वो विदेश में हैं और जब लड़की ज़्यादा कमाने वाली मिले तो कौन शादी नहीं करना चाहेगा ! बस वो कल्पना के आगे अपनी शान शौक़त और बेटी की कमाई का गुण गान करे जा रही थी ।
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लेकिन समय ने करवट ली और एक दिन बीना ने उसे फ़ोन किया। उससे बात कर मुझे हैरानी हो रही थी कि आज उसे मेरी याद कैसे आ गयी ??हमने मिलने का प्रोग्राम बनाया और आज वो दिन आ ही गया ,जब हम दोनो सहेली एक दूसरे से मिलेंगी ।
मैं बहुत खुश थी पर घबराई हुई भी थी कि कही उसमें भी घमंड हुआ तो …… जब मैं ऐसा सोच रही थी । तभी पीछे से कल्पू की आवाज़ आयी ,मैं जान गयी कि ये बानी ही हैं क्योंकि वोही मुझे इस नाम से बुलाती थी । वो भाग के आयी और मुझे गले लगा लिया ।
कैसी है कल्पू …… मैं ठीक हूँ !
तुम बताओ कैसी हो?? …… मैं भी बढ़िया हूँ
कितने साल हो गए और कभी मिल ही नही पाए ??
“बस यार बाहर रही और जब थोड़े दिन के लिए आती तो समय का पता ही नहीं चलता कब बीत जाता था “।
तुम सुनाओ ! कैसी चल रही है ??कितने बच्चे है ?
दो बच्चे है ! सब बढ़िया हैं …..
तुमने शादी कर ली !
नही यार अभी तक सिंगल हूँ !! कोई मिला ही नही ,जो मुझे झेलें ! मज़ाक़िया अन्दाज़ में बोली ..
क्यों क्या हुआ ???
पहले तो तीन साल न्यूयॉर्क रही फिर ,सिंगापुर बस इधर-उधर काम की वजह से मैं ये सोच ही नही पायी । मेरे लिए घर वालों ने भी रिश्ते देखें पर कोई उनकी मयार पे खरा नही उतरा ।
”मेरे घरवालों को भी लड़का मेरे जितना नही तो ,मेरे से ज़्यादा कमाने वाला चाहिए था”। बस कहीं बात बनी ही नहीं । मेरी छोड़ो तुम बढ़िया हो यार जल्दी शादी कर ली और बच्चे भी लाइफ़ एक दम सेट हैं ।
ये सब देख मुझे बानी की चिंता हो गयी बताओ इतनी अच्छी लड़की और अभी तक कोई लाइफ़ पार्टनर नही मिला??? पर मैं इस बात से खुश थी कि उसमें किसी बात का कोई घमंड नहीं था ।
वो आज भी वैसी ही थी जब हम साथ पढ़ा करते थे । वोही चुलबुलापन ,बातें करने का अन्दाज़ ,वोही अपनायत कुछ भी नहीं बदला ।
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आज मैं उससे मिल कर खुश हूँ ऐसा लग रहा था मानो हम हमेशा मिलते रहते हो । जाते हुए उसने मेरे बच्चों के लिए चॉकलेट दी और कहा उन्हें दे देना कभी खुद ही खा जाओं ! मैं भी मुस्कुरा कर बोली दे दूँगी ! अब मैं चॉकलेट नहीं खाती । जो भी हो बीना आज भी आम है कोई घमंड नहीं बस अब मैं यही दुआ करती हूँ कि उसे भी कोई अच्छा लाइफ़ पार्टनर मिल जाए और वो सारी ख़ुशियाँ मिलें जिनकी वो हक़दार हैं ।
#घमंड
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति