Moral stories in hindi : ‘सूर्या के बापू दो साल हो गए, अब सूर्या की हालत देखी नहीं जाती। कितनी दुबली हो गई है, अभी उम्र ही क्या है उसकी अकेले बैठे -बैठे बस रोती रहती है। दामादजी का असमय गुजरना उसे अन्दर से पूरी तरह तोड़ गया है।’ ‘सही कह रही हो सावित्री राजेश बाबू थे ही इतने अच्छे कभी अपने को इस घर का दामाद माना ही नहीं, बेटे की तरह हमारा ध्यान रखते थे। सूर्या का ससुराल भी इतना अच्छा है, सब उसे प्यार करते है।
समझ में नहीं आता क्या करें, इस बच्ची का जीवन कैसे बीतेगा। ससुराल वाले भी इसे अपने पास रखना चाहते हैं। मगर वहाँ हर चीज से राजेश बाबू की याद जुड़ी है उसे देखकर यह रोती रहती है। इसलिए उन्होंने इसे यहाँ छोड़ा ताकि इसका मन कुछ बहल जाए।’दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहै। फिर सावित्री जी ने कहा – ‘ सुनो मैं चाहती हूँ कि सूर्या की शादी कर दे। नया घर नया माहौल सारे घाव धीरे-धीरे भर जाऐंगे। वह फिर से नया जीवन जीएगी। ‘
सही कह रही है तू, मगर हमने अपनी बेटी का कन्यादान कर दिया है। अब वह सुदेश बाबू के घर की बहू है,उसके लिए क्या करना है और क्या नहीं, यह निर्णय लेने का अधिकार उनका है। हॉं, हम यह जरूर कर सकते हैं कि अपने दिल की बात उनसे कहैं फिर वे जो ठीक समझे करे। वैसे सुदेश बाबू बहुत समझदार हैं, मैं कल ही जाकर उनसे बात करता हूँ। तुम्हें भी साथ ले चलता मगर तुम्हारा सूर्या के पास रहना जरूरी है।
बहू भी मायके गई है ऐसे में तुम्हारा उसके पास रहना ही सही है।’ दूसरे दिन किशोर भाई सूर्या के ससुराल गए और उनसे अपने मन की बात कही, सुदेश बाबू ने कहा आपने मेरे मन की बात कह दी। आपको एक बात मेरी मानना पड़ेगी, इस बार सूर्या का कन्यादान हम करेंगे।
हम सब मिलकर सूर्या के लिए उपयुक्त घर वर की तलाश करते हैं। मुझसे भी उसका दु:ख देखा नहीं जाता। किशोर भाई ने घर आकर यह बात बताई तो सावित्री जी खुश हो गई। घर में इस तरह की बातें रोज होने लगी। जब सूर्या के कान में यह बात पड़ी तो उसने अपनी माँ से कहा -‘माँ मुझे ससुराल जाना है।’ ‘क्या बात है बेटा? क्या हमसे कुछ गलती हो गई?’ नहीं मॉं! बस मुझे अपने घर जाना है।’ ठीक है बेटा कल तुझे तेरे घर भेज देंगे।’
ससुराल में सब बहुत खुश हुए। एक दिन सुदेश बाबू ने सूर्या से अपने मन की बात की तो वह फफक कर रो पड़ी। बोली- ‘पापा आप जानते हैं ना वे मेरे कारण से हम सबको छोड़ कर चले गए, ना मैं उनको उस दिन जिद करके ऑफिस भेजती न वे हमें छोड़ कर जाते। यह एक ऐसा घाव है जो मुझे हमेशा परेशान करता है।’ सुदेश बाबू ने कहा – ‘तू अपने आप को दोषी मत समझ तूने तो उसके भले के लिए ऑफिस भेजा था।
तू उसकी उन्नति ही चाहती थी। यह घटना घटित होनी थी और हो गई तेरा कोई दोष नहीं है।’ उस दिन राजेश के ऑफिस में कोई मिटिंग थी और कम्पनी को अच्छे आर्डर मिलने वाले थे। राजेश ने मिटिंग में जाने के लिए बहुत तैयारी की थी, मगर उस दिन उसकी जाने की इच्छा नहीं थी। सूर्या ने उसे जबरजस्ती भेजा था। और उसी दिन उसका भयंकर एक्सिडेंट हुआ, और वह दुनियाँ छोड़ कर चला गया। सूर्या के दिल पर एक अमिट घाव छोड़ गया।
सुदेश बाबू ने समझाया- ‘बेटा जब शादी करके दूसरे घर जाएगी तो नया माहौल होगा, जीवनसाथी के साथ सुख से रहना। बेटा धीरे- धीरे समय हर घाव को भर देता है। हम सब तेरी खुशी चाहते हैं।’
सूर्या की ऑंखें ऑंसुओं से भरी थी, वह बोली- ‘पापा आप मेरी खुशी चाहते हैं तो मुझे अपने पास रहने दीजिये।मैं जानती हूँ मेरे जाने के बाद आप अकेले रह जाऐंगे। दीदी अपने ससुराल चली जाऐंगी। और ये…….। पापा मुझे उनके अधूरे कार्यों को पूरा करना है।आप मुझे आशीर्वाद दे कि मैं अपने पैरो पर खड़ी हो सकूँ।
आप दोनों की सेवा करना चाहती हूँ पापा। घाव भरेगा या नहीं ? नहीं जानती मगर इतना जानती हूँ,उस घाव के लिए मल्हम मुझे अपने घर पर ही मिलेगा।’ सुदेश बाबू ने सूर्या को दिल से आशीर्वाद दिया और चित्रा जी ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया उन्हें लगा जैसे उनका बेटा राजेश उनके आसपास ही कहीं है।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित