शाम को अपने दोस्त के घर से आने के बाद से ही मेरा बेटा कुछ उदास-उदास सा लग रहा था। उसकी आँखो को देखकर लग रहा था कि वह मुझसे कुछ कहना चाह रहा है पर कह नहीं पा रहा। रात के खाने तक उसकी चुप्पी मुझे खलने लगी। वह किशोरावस्था में था अतः मुझे लगा
कि शायद कुछ ऐसी बात है जो वह मुझसे कहना चाहता है पर हिचकिचा रहा है। खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में जाकर पढ़ने लगा। सोने से पहले मैं उसे दूध देने के लिए गई और वहीं बैठकर उसकी कॉपी को उलट-पलट कर देखने लगी और उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूछने लगी।
उसने कहा कि सब सही चल रहा है। तब मैने पूछा “तो फिर किस बात की चिंता है तुझे?” इस पर उसने कहा “ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे किसी बात की चिंता नहीं है।” मेरे बार-बार पूछने पर उसने मुझसे एक सवाल कर दिया जिसका मैं सही जबाब नहीं दें सकती थी इसलिए जो झूठ हम उससे बोलते आ रहे थे
वही बोल दिया। अब आप सभी यह सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या सवाल होगा जिसका जवाब हम पति – पत्नी उसे देना नहीं चाहते है। उसने पूछा कि क्या पापा सही में अनाथ है? इस पर मैंने कहा ” हाँ, तुम्हें तो यह पता ही है पर आज तुम इसे क्यों पूछ रहे हो?” और मैंने भी एक सवाल कर दिया। “ क्या अनाथ होना तुम्हारे या तुम्हारे दोस्तों की नज़र में गलत बात है?
” मुझे लगा कि शायद उसके किसी दोस्त ने उसके पापा के अनाथ होने पर उसकी हँसी उड़ाई होगी जिसके कारण वह उदास है। उसने कहा कि ऐसी बात नहीं है, अनाथ होना गलत नहीं है पर अनाथ नहीं होते हुए खुद को अनाथ कहना और अपने माता-पिता से सम्पर्क नहीं रखना तो गलत बात है।
मैंने कहा “ हाँ वह तो गलत है पर तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि हम गलत कह रहे है?” मेरे यह कहते ही उसने कहा कि आज वह जिस दोस्त के घर गया था वहाँ उसे एक दादाजी मिले जो उसके दोस्त के दादाजी के मित्र थे। मेरे बेटे ने मुझे सब कुछ समझाते हुए कहा कि वे मेरे दादाजी है और आप और पापा उन्हें छोड़कर चले आए है
इस कहानी को भी पढ़ें:
साथ में सभी को उनके नहीं होने की बात भी कहते है। “ माँ क्या उनकी बात सच है? मेरे दादा -दादी है? माँ बोलो ना यदि यह गलत है तो उन्होंने मुझसे ऐसा क्यों कहा?” उसने आश्चर्य व जिज्ञासा के साथ मुझसे कहा “ वह दादाजी यह बताते-बताते रोने लगे। उन्होंने कहा कि मेरी दादी हमें याद करके रात-दिन रोती रहती है। यदि यह सच है
तो हम अपने घर क्यों नहीं जाते है?” अब मैं अपने बच्चे को यह कैसे बताती कि तुम्हारे पापा के तो मम्मी-पापा है परन्तु तुम्हारे दादा-दादी नहीं है। हमने तुम्हें गोद लिया है और इसी कारण घर छोड़ कर आना पड़ा, परन्तु सिर्फ एक यही कारण नहीं था। यह कारण तो बताया भी जा सकता था परन्तु दूसरा कारण तो बच्चों को बता भी नहीं सकते थे और बच्चा उसे समझने की उम्र में भी नहीं था।
मैं सोच रही थी कि लोग कितनी सफाई से अपनी गलती छुपा लेते है और ” घर टूटने का सारा दोष बेटे और बहु पर लगा देते है ” आज याद आ रहा है मेरे ससुर जी का वह गंदा फैसला जो सोचने पर भी शर्मिंदगी होती है, करने की तो सोची भी नहीं जा सकती परंतु कितनी आसानी से उन्होंने मेरी सास के माध्यम से मुझे वह करने को कह दिया। जब से मेरे ससुर जी को यह पता चला था
कि मेरे पति पिता नहीं बन सकते है तब से ही वे बहुत परेशान थे क्योंकि मेरे पति एकलौते बेटे थे। इसी परेशानी में उन्होंने यह फैसला किया कि मुझे अपने चचेरे देवर से अनैतिक तरीके से एक बच्चा पैदा करना चाहिए। उन्हें लगता था कि बच्चा खानदान का ही तो रहेगा और घर की बात घर मे ही रह जाएगी। बेटे की कमी किसी को पता भी नहीं चलेगी।
हमने बार-बार अनाथ बच्चा गोद लेने की बात कही परन्तु उन्हें खानदान के बच्चे के साथ अपने बेटे की कमी को भी समाज से छुपाने की ज़िद का त्याग नहीं करना था।
चाहे कुछ भी हो वे अपनी ज़िद पर अड़े थे। यह बात जब मेरे पति को पता चली तो वे बहुत ही गुस्सा हुए और कहा कि जो पिता मेरी पत्नी के लिए ऐसा सोच सकता है उसके घर मे रहना सही नहीं है क्योंकि हो सकता है कि मेरी ग़ैरमौजूदगी में मेरी पत्नी के साथ वे ज़ोर-जबरदस्ती भी करे। ऐसा सोचकर हमने घर का त्याग कर दिया
और एक बच्चे को गोद लेकर अपनी गृहस्थी अलग बसा ली। लेकिन बेटे की बात सुनकर लगा की शायद पापा को अपनी गलती का एहसास हो गया है। उन्हें समझ आ गया है कि पोते की चाह में उन्होंने बेटे को भी खो दिया। मेरे बेटे ने फिर सवाल किया “ माँ जबाब क्यों नहीं दें रही हो? ” मैंने कहा “ हाँ बेटा कभी-कभी बड़ो से भी गलती हो जाती है।
कल हम पापा से इस बारे में बात करेंगे और फिर घर चलेंगे।” आज की परिस्थिति के अनुसार मुझे यही सही लगा क्योंकि अपने ससुर की गलती की सजा मैं अपनी सास व बेटे को नहीं दें सकती। आखिर दादी-पोता को एक दूसरे से मिलने का अधिकार है।
लेखिका : लतिका पल्लवी