घर प्यारा पर माँ नहीं.. – रश्मि प्रकाश

रात के लगभग दो बजे अचानक से माँ के कमरे से रोने की आवाज़ सुन निशिता और रितेश भाग कर उनके कमरे में आ गए ।

“ क्या हुआ माँ रो क्यों रही हो?” बेटे रितेश ने पूछा 

“ वोऽऽऽ वोऽऽऽ ।” फोन की तरफ़ इशारा करते हुए सुमिता जी कुछ बोल ना पाई

बेटे ने फ़ोन उठाया तो देखा मामा का फ़ोन आया हुआ था जो अब तक कट चुका था….. निशिता सास को पानी पिलाने लगी … रोते रोतेउनकी हिचकियाँ बँध रही थी 

“ माँ क्या बोला छोटे मामा ने बताओ तो सही?” रितेश ने पूछा 

“ बेटा माँ को सब कष्टों से मुक्ति मिल गई ।” कह कर सुमिता जी और ज़ोर से रोने लगी 

“ अच्छा हुआ ना माँ….. नानी जी कितनी तकलीफ़ में थी…।” निशिता ने समझाते हुए कहा 

“ हाँ बहू समझ रही हूँ पर माँ का ऐसे जाना….समझ नहीं आ रहा ।” सुमिता जी ने कहा 

“ बेटा सच सच बोलना जब तुम काम से उस शहर गए थे मेरे कहने पर नानी को देखने भी गए वो क्या कह रही थी… ठीक तो थी ना..।” सुमिता जी अचानक रितेश से पूछी 

“ माँ झूठ नहीं बोलूँगा… नानी मेरी तरफ़ देख कर कह रही थी बाबू हमरा यहाँ से ले चला….हिया रहब तो मर जाइब… पर आप तो जानती ही हो हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे।” रितेश ने कहा 




“ अब तो वहाँ जाना पड़ेगा ना…. माँ के अंतिम दर्शन करने।” कुछ सोचते हुए सुमिता जी ने कहा 

“ हाँ माँ चलता हूँ लेकर पर एक वादा कीजिए… आप पुरानी कोई बात वहाँ नहीं करेंगी…. जो हुआ सब भूल कर वहाँ जाएगी…. नानीका अंतिम संस्कार होते हम आ जाएँगे वहाँ रूकने का कोई मतलब भी नहीं है ।” रितेश ने कहा 

“ हाँ बेटा समझ रही हूँ…कितनी देर में निकलना होगा?” कह सुमिता जी उठ कर जाने के लिए तैयार होने लगी 

“ बस हाथ मुँह धोकर निकलते हैं ।” रितेश ने कहा 

तीन घंटे का सफ़र सुमिता जी को ज़िन्दगी के कई साल पहले के उस कटु पल को याद करवाने के लिए काफी था।

दो भाइयों की बहन सुमिता जी के

 पिताजी के देहान्त के बाद उनकी माँ की ज़िन्दगी दुर्भर हो जाएगी वो कभी सोची ही नहीं थी.. पिताजी रिटायरमेंट “ पर माँ मुझे क्यों दे रही हो…. तुम ही रखो।” सुमिता जी ने इंकार करते हुए कहा 

“ बेटी बात मान मुझे तनिक भरोसा नहीं अपनी इन औलाद पर वैसे भी तेरे बाबूजी जब घर बनवा रहे थे वो महसूस कर रहे थे बड़े के मनमें खोट है…आखिरी समय में ये भी कहे कि बेटे पर नहीं पर बेटी पर भरोसा रखना वो तुम्हें कष्ट ना होने देंगी ।” धीरे-धीरे उनकी माँ नेकहा (डर था कही बेटा बहू ना सुन ले)

सुमिता जी माँ के कहने पर पेपर ले तो आई पर अपने बेटे बहू किसी से कुछ नहीं कहा जानती थी वो भी मना ही करते।

फिर महीने भर बाद ही उनकी माँ ऐसी गिरी की कमर की हड्डी टूट गई…. चूँकि सुमिता जी भी उसी शहर के एक कोने में रहती थी तो खबर मिलते माँ को देखने पहुँच गई ।




पास के अस्पताल में ऑपरेशन के लिए कह दिया अब सवाल पैसे पर अटक गया… भाई ने कहा सरकारी में करवाने से कम खर्च होगा

माँ की कराह सुन सुमिता जी भाई को बोली,“ माँ मेरी भी है मैं भी मदद करूँगी चल कर प्राइवेट में भर्ती करवा देते है… ।” 

दूसरे शहर से शाम तक छोटा भाई भी आ गया…. और दोनों ने सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया 

ऑपरेशन के बाद भी सुमिता जी की माँ बिस्तर से उठ ना सकी सब कुछ बिस्तर पर ही होने लगा…. छोटी बहू तो देखने तक ना आई बड़ीने इस लालच में थोड़ा किया भी कि क्या पता माँ घर के काग़ज़ात उन्हें दे दें ।

पन्द्रह-बीस दिन अस्पताल में आना जाना करना पड़ा एक दिन सुमिता जी की माँ ने अस्पताल से छुट्टी वाले दिन कहा,“ बेटी मुझे यहाँ से अपने साथ ले चल।”

सुमिता जी अपने बेटे बहू से बात कर उन्हें घर ले आई,महीने भर तक कोई बेटा पूछने ना आया, एक दिन बड़ा भाई आया और बोला,“ माँको ले जाने आए हैं….आप दिखाना क्या चाहती है हम माँ का ध्यान नहीं रख सकते।”

सुमिता जी कुछ ना बोली भाई के लिए चाय नाश्ते का बोलने गई जब लौट कर आई तो दरवाज़े पर ही सुनाई दिया,“ अरे कितनीज़िन्दगी है माँ तुम्हारी…. घर के मोह में पड़ी हो… काग़ज़ात दे दो क्यों ज़िद्द करती हो।” भाई कह रहा था 

“ काग़ज़ात मेरे पास नहीं है… ।” माँ डरते डरते बोली 

“ फिर दीदी को दे दी हो… इनको लेना क्या तुम्हारा घर…. अरे हम बेटे हैं उस पर हमारा हक है उनका नहीं समझी तुम ।” ग़ुस्से में भाई नेकहा




पता नहीं क्यों सुमिता जी गई और लाकर काग़ज़ात सामने रख दी ।

भाई माँ को लेकर चला गया…. जब ये बात छोटे भाई को पता चली तो वो सुमिता जी पर गर्म हो गया….. आप काग़ज़ात उसको कैसे देदी… माँ का था उसको देना चाहिए था…. आपको हम लोगों की परवाह क्यों होने लगी…. मैं अभी आकर माँ को यहाँ ले आता हूँ नहीं तोभैया उससे साइन करवा कर जान से मार देगा।”

सुमिता जी भाइयों का ये रूप देख दंग रह गई थी कुछ कहना चाही तो छोटे भाई ने साफ़ कह दिया ।“हमें आपसे कोई बात नहीं करनी… ।“

दूसरे दिन पता चला छोटा भाई माँ को लेने आया काग़ज़ात को लेकर खूब हंगामा हुआ पर बड़ा भाई भी ढीठ उसने ना देना था ना दिया…. तब छोटा भाई ये कहकर माँ को लें गया… यहाँ रहेंगी तो साइन करवा कर इसको मार दोगे तुम  लेकर जा रहा हूँ… साइन करवाने वहाँआना और हिस्सा बराबर का होगा ।” 

सुमिता जी की माँ जीते जी इस हिस्से के पक्ष में नहीं थी इसलिए वो मना करती रहती थी…. क्योंकि वो अपने सामने के घर में देख चुकीथी कि घर हथिया कर बेटा बहू ने बूढ़ी माँ को बाहर निकाल दिया था और वो रोते रोते दम तोड़ दी थी…. उनकी माँ को डर था मेरा हश्र भी कही वही ना हो …. घर मेरे नाम रहेगा तो कैसे भी कर के घर में तो रखेंगे ही।

उधर छोटे बेटे बहू ने उनका जीना मुहाल कर दिया…. हर दिन मरने के ताने देने लगे थे…. सुमिता जी की भाई से बात बंद थी ऐसे में माँ केलिए वो चिंतित रहती थी संजोग से एक दिन रितेश उस शहर गया तो नानी के पास से विडियो कॉल कर सुमिता जी की माँ से बात करवादिया था उनको देख कर सुमिता जी रो पड़ी थी लग रहा था अब माँ ज़िन्दगी से निराश हो चुकी है…. कह रही थी भगवान ऐसी औलाद ना देते तो कितना अच्छा होता ।”




“ माँ उतरो… ।” रितेश की आवाज़ सुन सुमिता जी यादों के भंवर से बाहर आ गई 

घर से रोने की आवाज़ें आ रही थी….सुमिता जी दौड़ कर भीतर भागी… माँ सूख कर काँटा हो चुकी थी लग रहा था बस हड्डियों का ढाँचा रखा है ।

उनका जी कर रहा था जोर जोर से बोले,“ माँ को मेरे पास ही रहने देते तो वो आज ज़िन्दा होती तुम दोनों ने अपने स्वार्थ के लिए माँ कोजीते जी ही मार दिया था बस वो साँसें ले रही थी ,मर तो उसी दिन गई थी जब घर के लिए तुम लोग उसकी बलि देने को तैयार थे।” परकह ना पाई 

अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी….. माँ हमेशा के लिए तकलीफ़ से मुक्त हो गई थी… अब घर के लिए दोनों संघर्ष करते रहे, सुमिता जी को अब उससे कोई मतलब नहीं था फ़िक्र थी तो बस माँ की जो अब चली गई थी….भाइयों से तो उनका नाता पहले ही ख़त्म हो चुकाथा ।

दोस्तों कहानी कोई कोरी कल्पना नहीं है एक सत्य है…अब सवाल उठता है जिस घर के लिए ये सब कुछ उन दोनों भाइयों ने किया उसका क्या हुआ…घर का आधा हिस्सा एक ने आधा दूसरे ने रख लिया …..झगड़े तो ख़त्म नहीं होते हाँ इसमें ज़िन्दगी ज़रूर ख़त्म हो जाती है… सुमिता जी की माँ बस यही चाहती थी दोनों भाई हिल मिल कर रहे घर तो उनका ही होता पर पहले से की उनकी ज़िद्द ने उनकी माँ की ज़िन्दगी ही ख़त्म कर दी।

आपके विचारों का स्वागत है…

#औलाद 

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

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