घर-परिवार – पूजा मनोज अग्रवाल

विवाह के बाद कुछ खट्टे मीठे अनुभवों से जीवन की नई पारी की शुरुआत हो रही थी । अंतर्जातीय विवाह के चलते सब रीति -रिवाज  , परम्पराएं सब मायके से बिल्कुल भिन्न थी , इसलिये सबसे सामंजस्य बिठाने में भी मुझे थोड़ी परेशानी का अनुभव हो रहा था । खैर , सोना भी आग मे तप कर ही शुद्ध बनता है ,,, सो मै भी घर परिवार के इन छोटे- मोटे संघर्षों में  एक कुशल गृहिणी बनने की प्रक्रिया से गुजर रही थी ।

घर मे कभी कोई भी बात हो, पर पतिदेव कभी मेरे पक्ष में ना बोलते ,,,,या यूँ कहिये कि वो किसी भी तरीके की बहस बाजी में पड़ने के विरुद्ध थे । उनका मानना था , कि  घरेलू मामलों  मे घर के आदमियों को अपना अनावश्यक हस्तक्षेप नही करना चाहिये। इसलिये इन्होंने घरेलू विवादों मे ना बोलने का फैसला कर लिया था  ।

ससुराल मे मेरे पतिदेव से दो साल छोटे मेरे एक देवर भी हैं  । वो सदा हंसने – हंसाने वाले मस्तमोला किस्म के इंसान है  , रोते हुए को भी हंसा देने की कला मे माहिर । हम दोनो की उम्र मे  करीब दो वर्ष का ही अंतर है । दरअसल मायके में मेरा भाई मुझसे करीब तेरह साल छोटा है , तो यहां ससुराल में आकर मुझे देवर के रूप में एक बराबर का सा भाई मिल गया था ।

कुछ समय बाद देवर जी का विवाह भी हो गया  , देवरानी के आ जाने से मुझे एक घर के कामों में मददगार और दिन भर का साथ देने वाली एक सहेली मिल गई थी । बराबर की उम्र थी तो जल्दी ही हम दोनों अच्छी सहेलियां बन गई । हम दोनों के रिश्ते बहुत मधुर थे , हम साथ -साथ खाती – पीती , हंसती -मुस्कुराती । इसी प्रकार जीवन धीमी गति से आगे बढ़ने लगा ।  इस बीच हम दोनों के दो-दो प्यारे बच्चे भी इस दुनिया में आ गए थे । अब ये दोनो भाई और हम दोनो देवरानी -जेठानी  का खाना -पीना , फिल्म देखना , बच्चों को साथ लेकर रेस्तौरेंंट जाना , सब एक साथ होने लगा ।

कुछ दिन बाद पतिदेव की नया घर लेने की इच्छा हुई , तो उन्होंने यह फैसला किया की अब एक की बजाय दो घर लेंंगे ।  परिवार में कोई भी कलह या वाद-विवाद भी ना था , तो पतिदेव का यह अजीब सा फैसला हम देवरानी -जेठानी का मन खिन्न कर गया था । देवर जी और सास- ससुर भी इस फैसले से नाखुश थे ।


मेरे पतिदेव घर मे बड़े हैं , तो उनका घर मे ऐसा रुतबा है कि घर के सभी सदस्य हर काम मे पतिदेव की आज्ञा व रजामंदी जरूर लेते है । परिवार के किसी सदस्य ने इनके फैसले पर कभी उंगली ना उठाई थी ,,,,। पर इस बार बात कुछ और थी , यह फैसला किसी को भी मंजूर नहीं था ।

देवर जी पहली बार अपने बड़े भाई के फैसले से असंतुष्ट थे परंतु बड़े भईया के विरुद्ध बोलने की आदत नही थी ,,,,तो कुछ कह भी ना सके थे ।बच्चों से लगाव और परिवार बिखरने की बात से देवर जी उदास रहा करते । 

कुछ दिन बाद पति देव को घर की ड़ील फाइनल करने के लिये जाना था । देवर जी के आज तेवर कुछ बदले- बदले से नजर आ रहे थे ,,, शायद वे आज बगावत के मूड मे थे । दोनो भाई सुबह नाश्ते की टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे ,,,,, तभी देवर जी ने हिम्मत कर इनसे कहा ” देखो भईया,,,  मैं बिल्कुल अपने घर – परिवार से अलग रहने वाला नहीं हूं ,,, अगर आप दो अलग घर लेंगे ,,,,,तो ना तो मैं खुद इस घर से कहीं जाऊंगा और ना ही किसी बच्चे को इस घर से जाने दूंगा ,,,, घर की डील फाइनल करने से पहले आप मेरे इस फैसले पर अवश्य ही विचार कर लेना ”  ।

देवर जी के यह शब्द सुनकर मेरे पतिदेव जोर से ठहाका लगा कर हँसे और बोले ,” अरे भाई दीपक , तुम्हें क्या लगता है , इस भरे पूरे हंसते- खेलते परिवार को मैं अलग करने का पाप करूंगा ,, मैं तो सिर्फ तुम सब लोगों के विचार जानना चाह रहा था,,,। पतिदेव की बात सुनकर सबके फीके पड़े  चेहरो पर चमक लौट आई थी ।

इस घटना के कुछ महीने बाद हमारा पूरा परिवार  नये घर मे शिफ्ट हो गया । इस बात को भी सात साल हो चले हैं , हम सब हंसी खुशी अब भी उसी घर में रह रहे हैं । आज भी मेरे पति देव और देवर जी के बीच कोई जमीन जायदाद, धन- सम्पत्ति और कारोबार को लेकर कोई झगड़ा या तनाव की स्थिति नहीं है ,,,। देवर जी हमेशा मुझे माँ जैसा आदर , मान – सम्मान देते रहे है , और देवरानी तहे दिल से मुझे अपनी  बडी बहन समान मानती है ।

मैं बहुत खुश हूं कि मुझे देवर के रूप मे एक भाई मिला है और देवरानी के रूप मे एक सखी ,,,,इन दोनो से ही मै और मेरे पति का एक दिल का सा रिश्ता जुड़ा हुआ है,,,, हर पल भगवान से यह प्रार्थना है, कि हम चारों का यह खूबसूरत रिश्ता हमेशा महकता रहे ।

#दिल_का_रिश्ता 

 

स्वरचित मौलिक 

 

पूजा मनोज अग्रवाल

 

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