घर में शांति होनी चाहिए । – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

“नीलेश तुम सुबह खाने का डिब्बा घर पर ही भुल गये, अब मै कितना याद रखूं? खाना बनाकर देती हूं, वही काफी है, घर देखूं, बच्चे देखूं, या तुम्हें देखूं, मेरी तो जिन्दगी ही चकरघिन्नी हो गई है, पता नहीं मैंने तुमसे शादी ही क्यों की ? मेरी तो जिन्दगी ही नरक हो गई है, स्नेहा नीलेश के घर आते ही उस पर बरस गई।

नीलेश दो घंटे ट्रेफिक में कार चलाकर आया था, वो खुद ही चिड़चिड़ा हो रहा था, उस पर स्नेहा के तानें सुनकर उसका दिमाग और भी गरम हो गया, ‘ सुबह का गया पति रात को थका -हारा घर आया है, एक गिलास पानी का तो पूछा नहीं और आते ही बातों और तानों की बरसात करने लगी “।

तुम इकलौती नहीं हो दुनिया में, जो खाना बनाती हो, घर-परिवार बच्चे को संभालती हो, तुम जैसी कई पत्नियां रोज अपना फर्ज निभाती है, पर तुम्हारी तरह कोई गिनाती नहीं है,  तुम तो केवल खाना ही बनाती हो, बाकी की पत्नियां तो कमाकर भी लाती है, ये तानें सुनने के लिए मै घर नहीं आता हूं, दो बोल प्यार के तो बोल नहीं सकती तो चुप ही रहा करो, और वो गुस्से में अपने कमरे में चला गया।

स्नेहा ने टेबल पर खाना लगा दिया, लेकिन आज नीलेश कमरे से बाहर नहीं आया और जब वो कमरे में पहुंची तो वो सो चुका था, स्नेहा ने भी गुस्से में खाना नहीं खाया और करवट बदलकर सो गई, जब से उसने नौकरी छोड़ी है, तब से वो चिड़चिड़ी हो गई है, उसे घर में रहने की आदत नहीं है, और इतना घर संभालना आता भी नहीं था, लेकिन शादी के बाद जब जिम्मेदारियां सिर पर आती है तो इंसान सब सीख जाता है।

सुबह उठकर वो अपनी उसी दिनचर्या में लग गई, बच्चों का टिफिन बना दिया और नीलेश का टिफिन उसकी कार की चाबी के पास ही रख दिया, ताकि वो टिफिन भुले नहीं। नीलेश उससे बिना बोले ही ऑफिस चला गया। दोनों बच्चे भी मुंह लटकाकर बस में बैठकर स्कूल चले गये।

 भारती जी रोज ही घर में ये तमाशा देखती थी, बेटे-बहू की अनबन से घर में अशांति का माहौल बना रहता था, कुछ कहती तो उल्टा स्नेहा उनसे लड़ पड़ती थी कि आप अपने बेटे को समझाइये, सारा दोष बस  बहू में ही नजर आता है, इसके बाद उन्होंने कहना ही छोड़ दिया और नीलेश को कुछ कहती तो नीलेश उन्हें आंखें दिखाता था, कमाऊ पूत जो था, और उनकी जीविका उस पर ही निर्भर थी।

भारती जी मौन रहने लगी थी पर दोनों  पोते-पोती अब उदास से रहने लगे थे, वो ना खुलकर नीलेश से बात करते थे, और ना ही स्नेहा से। घर में हर समय रहने वाली अशांति में बच्चों की खिलखिलाहट कहीं खो सी गई थी, जब बच्चों का परीक्षा परिणाम आया तो उसमें भी उनके अच्छे अंक नहीं आये थे।

स्नेहा और नीलेश बच्चों का परीक्षा परिणाम देखकर चिंतित हो गये, ‘आखिर किस चीज की कमी है घर में, इतना बड़ा घर है, इतने महंगे स्कूल में पढ़ते हो, कमरे में एसी है, ट्यूशन लगा रखी है,  तुम दोनों के पास लैपटॉप है, अपना मोबाइल है, घर में वाई-फाई की सुविधा है, घर का कोई काम तुम दोनों को नहीं करना पड़ता है, फिर भी ये हाल है, हमने तुम दोनों को हर वो चीज दी है, जो आजकल के बच्चों को चाहिए।’

तभी स्नेहा बोली,  “अंक तो कम आयेंगे ही, तुम बच्चों पर जरा सा भी ध्यान नहीं देते हो, तुम्हें बच्चों की पढ़ाई और अन्य गतिविधियों के बारे में कुछ पता भी है, अपने सुबह ऑफिस चले जाते हो, और रात को मोबाइल चलाने लगते हो, कभी बच्चों के पास बैठकर उनसे प्यार से बात भी करते हो?

ये सुनकर नीलेश फिर से बौखला गया, ‘ हां, मेरे पास तो समय नहीं है, पर तुम तो दिनभर घर पर रहती हो, तुम तो ध्यान देती, तुमने ध्यान क्यों नहीं दिया, आज अपना आराम छोड़कर बच्चों के साथ जरा सी मेहनत करती तो आज इतने कम अंक नहीं आते, घर कामवाली लगा रखी है, फिर भी बच्चों को संभाल नहीं पाई।’

नीलेश, ‘ तुम ज्यादा ही बोल रहे हो, घर पर झाडूपौछे, बर्तन के अलावा और भी काम होते हैं, तुम क्या समझते हो ये घर ऐसे ही चल रहा है, तुम्हें क्या पता सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सौ काम होते हैं, वो मै ही संभालती हूं, और बच्चों के भविष्य और अच्छी जिंदगी के लिए मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, इससे ज्यादा मै और क्या कर सकती थी “

“नौकरी छोड़कर कोई अहसान नहीं किया है……’

नीलेश फिर चिल्लाता है।

बस इसी चीज की कमी है, इसलिए मेरे अंक कम आये है और पिंकी के भी, बड़े बेटे वंश के बोलते ही नीलेश और स्नेहा उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हैं।

इस घर में हर चीज है बस प्यार, विश्वास और शांति की कमी है। सुबह से लेकर रात तक अशांति का ही माहौल रहता है, इस घर में कोई चैन की सांस नहीं ले सकता है, पढ़ाई करना तो दूर की बात है।’

तभी पिंकी भी बोलती है, ‘ हां, भैया ठीक कह रहे हैं, आप दोनों को पता है, मै शाम को टयूशन से घर में देर से क्यों आती हूं? क्योंकि मेरी इस घर में आने की रहने की इच्छा ही नहीं होती है, तो पढ़ने की इच्छा कैसे होगी?’ घर आते ही बस आप दोनों के झगडे चलते रहते हैं, आप दोनों में से कोई किसी को सुनने के लिए, समझने के लिए तैयार नहीं हो, बस हर वक्त लड़ने के लिए जरूर तैयार रहते हो। आप दोनों के आपसी झगड़े के कारण हम दोनों और दादी बहुत ही परेशान से रहते हैं, लेकिन आपको तो एक-दूसरे को नीचा दिखाना है, दिन-रात लड़ना -झगड़ना है, बात का बतंगड़ बनाना है।”

“घर में शांति होनी जरूरी है, बाकी पढ़ाई तो हम किताबों से भी कर लेंगे, जब घर में सुख-शांति ही नहीं है तो पढ़ाई में मन कैसे लगेगा?’

दोनों बच्चों की बात सुनकर नीलेश और स्नेहा हैरान रह गये, और कभी बच्चों का तो कभी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, और फिर बच्चे गलत तो नहीं बोल रहे थे, बच्चों के आगे वो कुछ और नहीं कह पाये, तभी भारती जी बोलती है, ‘ मै तुम दोनों को जो समझाना चाहती थी, वो बच्चों ने बोल दिया, तुम दोनों ने मेरी बात तो कभी नहीं मानी, पर बच्चों की बात पर तो ध्यान दो, तुम दोनों इसी तरह लड़ते-झगड़ते रहोगे तो घर में हमेशा अशांति बनी रहेगी।

घर में सुख-सुविधाएं हो ना हो, घर बड़ा हो ना हो, उसमें सभी भौतिक सुविधाएं हो ना हो पर शांति का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि, जब भी बच्चे या हम बाहर से आते है तो घर में आने पर अच्छा लगना चाहिए। घर में सूकून मिलना चाहिए, शांति मिलनी चाहिए, जो सबसे जरूरी है।

नीलेश और स्नेहा ने भारती जी से माफी मांगी और बच्चों से वादा किया कि वो कम से कम झगड़ा करेंगे, और कभी कुछ बात हो भी जायेगी तो आपस में बंद कमरे में ही उसका निपटारा कर लेंगे, हम बच्चों के लिए अपने आपको बदलने की कोशिश करेंगे, ये सब अचानक से नहीं होगा, समय लगेगा, पर हम प्यार से साथ रहेंगे और हमारे घर में भी सुख-शांति होगी, बच्चों ने ये सुना तो आगे बढ़कर दोनों को गले लगा लिया और भारती जी मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

सर्वाधिकार सुरक्षित 

#अशांति

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