घर की रोशनी – बालेश्वर गुप्ता : hindi short story with moral

hindi short story with moral : समझ नही आता, नीलू क्या करूँ?तुम्हारे बिन अपनी कल्पना करना भी मेरे लिये सम्भव नही।

      अपने से ही बात करता अंशु बड़बड़ाता ही जा रहा था।नीलू की दोनो किडनी वास्तव में खराब हो चुकी थी।डायलिसिस पर जिंदा थी।किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र मार्ग शेष रह गया था।अंशु अपने टेस्ट करा चुका था,उसकी किडनी के प्रत्यारोपण को डॉक्टर ने मना कर दिया था।किसी अन्य की किडनी प्राप्त करने के लिये समय और 15-20लाख रुपयो की आवश्यकता थी,और दोनो ही उनके पास नही थे।बेबसी में व्यक्ति करे भी तो क्या करे।

      अभी तीन वर्ष पूर्व ही अंशु और नीलू की शादी हुई थी,अंशु के पास ही माँ रहती थी,पिता थे नही।साधारण परिवेश का उनका परिवार था,ये तो अच्छा हुआ कि अंशु की जॉब लग गयी थी,अन्यथा खाने के भी लाले पड़ जाते। शादी के 1वर्ष बाद ही गुड़िया उनके जीवन मे आ गयी थी,इससे अंशु की माँ  को तो मानो जीवन रेखा ही मिल गयी थी।घर मे रौनक छा गयी थी।प्यारी सी बेटी को पा सब खुशी से फूले नही समाते।

          किशोरी लाल जी जल निगम में क्लर्क थे,सिद्धांत वादी थे,रिश्वत न लेने का प्रण था,आजीवन इस प्रण को उन्होंने निभाया भी।अपने वेतन से उनका गुजारा ठीक ठाक हो जाता था।बस अपना खुद का मकान न बना पाने का मलाल जरूर उन्हें रहा।प्राणनाथ उनके एकमात्र घनिष्ठ मित्र थे।दोनो आपस मे अपने दुख सुख की बात खुलकर कर लेते थे।प्राणनाथ जी के बिटिया थी नाम रखा था नीलू तो किशोरी लाल जी ने अपने एकलौते पुत्र का नाम रखा अंशु।

अपनी हैसियत के मुताबिक दोनो ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलायी। नीलू और अंशु दोनो ने प्रारम्भ से ही एक ही विद्यालय में शिक्षा पायी।दोनो परिवारों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना होने के कारण नीलू और अंशु बचपन से ही एक दूसरे को जानते थे,साथ ही खेले थे फिर साथ ही पढ़ने भी लगे।कब एक दूसरे के मन मे प्रेम का बीज अंकुरित हो गया पता भी नही चला।दोनो की कोशिश रहती कि अधिक से अधिक समय साथ ही रहे।

        दोनो में लगाव था,क्या यह प्रेम है यह दोनो को ज्ञात ही नही था,बस उन्हें लगता कि एक दूसरे के बिना नही रह सकते।लेकिन किशोरी लाल और प्राणनाथ ने इस निष्छल प्रेम को समझा, दोनो अंतरंग मित्र तो थे ही सो अब दोनो ने ही अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने की योजना तैयार कर ली।

          शुभ मुहर्त में नीलू और अंशु की शादी सम्पन्न हो गयी।दोनो बेहद खुश थे,आखिर बचपन के मुसाफिरों को मंजिल मिल गयी थी।शादी को एक वर्ष ही हुआ था कि इधर गुड़िया के रूप में एक सदस्य का पदापर्ण हुआ तो कुछ ही दिनों बाद दिल के दौरे से राम किशोर जी चल बसे।

       सामान्य होने पर धीरे धीरे जीवन पटरी पर आ गया।रामकिशोर जी के निधन के कारण उनके स्थान पर अंशु को नौकरी दे दी गयी,इससे घर खर्च चलाने में कोई दिक्कत नही आयी।

      इधर नीलू बीमार रहने लगी थी।समस्त बॉडी चेक अप कराने पर डॉक्टर ने रिपोर्ट देख बता दिया कि नीलू की दोनो किडनी खराब हो गयी है।कुछ समय तक डायलिसिस पर नीलू को रखा गया।अब स्थिति ये थी कि एक किडनी मिले तो नीलू की जान बचे।अंशु की किडनी के लिये मना कर दिया गया।एक पहाड़ सी समस्या सामने थी जिसका निदान अंशु को सूझ ही नही रहा था।

         इतने में ही माँ की आवाज आयी,बेटा मैं जानती हूं तू क्या सोच रहा है,घर मे मेरी बच्ची नीलू पर इतना बड़ा संकट आ गया और तुमने बताया भी नही।बूढ़ी हूँ,पर माँ भी तो हूँ।मेरी कितनी जिंदगी बाकी है बेटा, चल रे अपनी बहू को मैं दूंगी किडनी।अवाक सा अंशु मां का मुँह ताकता रह गया।इतनी बड़ी बात मां ऐसे ही कह गयी।उन शब्दों में कितना प्यार भरा पड़ा था वो आज ही जान पड़ा।माँ की जिद और नीलू की हालत देखते हुए,माँ का प्रस्ताव मान किडनी प्रत्यारोपित कर दी गयी। नीलू के माता पिता दक्षिण भारत की यात्रा  पर गये हुए थे,इस कारण उन्हें सूचना नही दी गयी थी।जैसे ही वो आये और उन्हें नीलू के हॉस्पिटल में एडमिट होने का पता चला तो सीधे हॉस्पिटल आ गये।क्या हुआ मेरी नीलू को ,बदहवास सी नीलू की माँ रोये जा रही थी,अंशु ने जैसे ही बताना शुरू किया कि नीलू की दोनो किडनी खराब हो गयी हैं तो बीच मे ही चिल्लाकर बोली तो मैं दूंगी अपनी बच्ची को किडनी।

         उन्हें चुप करा कर बताया गया कि किडनी प्रत्यारोपित हो चुकी है नीलू बिल्कुल ठीक है, आप चिंता न करे,सब बात सुन नीलू की माँ ने दूसरे बिस्तर पर लेटी अंशु की मां के पैर पकड़ लिये।बहनजी आपने मेरी बच्ची की जान अपनी जान की बाजी लगा कर बचाई है,कितनी बड़ी है आप।

  अरे बहन नीलू तुम्हारी बेटी है तो मेरे घर की रोशनी भी तो है, बताओ कैसे अपने घर मे अंधेरा होने देती।दोनो की बाते सुन नीलू की आंखो से खुशी हर्ष और गर्व से अभिभूत हो आंसू बह रहे थे,आखिर वो अपने सामने दो दो माँ का प्यार अपने लिये देख रही थी।

    बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

   मौलिक एवं अप्रकाशित।

#ममता

  

  

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