hindi stories with moral : वीना बिटिया मेरे साथ पुलाव की तैयारी करवाएगी पापा ने जैसे ही कहा
नहीं पापा मुझे एनी भैया से इंग्लिश पढ़ना है वीना ने मुस्कुराते हुए कहा तो अरुण भी उत्साह में आ गया अरे वाह वीना बहुत दमदार विचार है मुझे भी स्पोकन सुधरवाना है
सुनकर ही अनिमेष हंसने लगा पापा आप कोई चीटिंग नहीं करेंगे अकेले ही पुलाव बनाइए ये दोनों मेरे स्टूडेंट बनने वाले हैं और मां आप भी आइए आज पापा की सहायता नही करने दूंगा…..
…..मां चलिए आपको राम मंदिर घुमा लाता हूं मैं भी दर्शन कर लूंगा दो साल पहले गया था वरुण ने पीछे के आंगन से बैठक में आते हुए कहा ।
अरे नहीं वरुण आज रहने दे मंदिर … फिर अनिमेष और पापा दोनों की ओर देख कर कह उठीं “अच्छा ठीक है पर तू यहीं रुक एनी के साथ… सोहन चला जायेगा मेरे साथ आजा सोहन मां ने सोहन उर्फ अरुण को आवाज लगाते हुए कहा।मां उसे सोहन ही कहती थी लेकिन वरुण ने अपने छोटे भाई का नाम अपने नाम से मिलाते हुए वरुण का भाई अरुण ही होना चाहिए कहते हुए उसका नाम अरुण रख दिया था ।जब अरुण होने वाला था तब वरुण बहुत उत्तेजित था भगवान से प्रार्थना करता था मुझे एक छोटा भाई ही देना जो मेरे साथ क्रिकेट खेलेगा ..जबकि मां एक बेटी की प्रार्थना करती थीं।मां ने बेटी का नाम” सोना “भी सोच लिया था ! इसीलिए लड़का होने पर उसे भी सोना की जगह सोहन बुलाने लगी ।
नहीं वरुण भैया के साथ चले जाइए मां मुझे ये मंदिर वंदिर जाने का कोई मन नहीं है भैया कह तो रहे हैं दो साल पहले गए थे मैं तो अभी दो दिनों पहले ही आपको लेकर गया था….जाइए जाइए भैया ऐसा भक्त भगवान को कहां मिलेगा मैं क्यों अडंगा लगाऊं ऐसे भक्त की दर्शन की इच्छा में सोहन अर्थात वरुण ने तुरंत ही कहा और लपक कर वीना और अनिमेष के पीछे स्टडी कक्ष में जाने लगा था।
पूरा नास्तिक है तेरा भाई मंदिर ना जाने के बहाने ढूंढ ही लेता है मां अरुण को मीठी झिड़की लगाते हुए शिकायती लहजे में वरुण से कहने लगी थी।
भैया याद है ना आज गुप्त गोष्ठी है मां पापा के सोने के बाद वीना ने एकदम पास आकर फुसफुसाते हुए कहा तो वरुण ने हंसकर उसकी चोटी खींच दी और अनिमेष भी हंसकर कह उठा था “…हां हां याद है पापा के हाथ का पुलाव खाने के बाद…..!!
पापा ने पूरी मेहनत लगा कर बेहद उम्दा पुलाव बनाया था अनिमेष की बात मानते हुए अकेले ही किचेन का पूरा मोर्चा संभाल लिया था किसी को किचन में घुसने ही नही दिया था और खुद ही डाइनिंग टेबल पर बेहतरीन तरीके से सबको सर्व भी कर रहे थे ।
पापा आज तो आपने बिलकुल होटल जैसा पुलाव बनाया है वीना की बालसुलभ प्रशंसा सुन सब हंसने लगे ।
अरे मेरी बहन होटल जैसा नहीं …होटल वाले तो इसका एक प्रतिशत भी नही बना सकते यह पुलाव तो बिलकुल मेरे पापा जैसा ही बना है एकदम नरम खिला खिला सबको रुचिकर लगने वाला सबके साथ मिलकर एक नवीन स्वाद रचने वाला इसमें पापा के हाथों का स्नेह मिला हुआ है …वरुण ने बेहद प्यार से कहा तो पापा की आंखें भीग गईं ।
वास्तव में वारु तुमने मेरे भी दिल की बात कह दी पापा के हाथों में भी वैसा ही जादू है जैसा मां के हाथों में है अनिमेष तो चम्मच छोड़कर हाथ से खाने लगा था और साथ में यह टमाटर पुदीने की लाल हरी चटनी तो आहा स्वाद को बढ़ाती जा रही है।
अरे यह जादू भी तेरी मां ने ही सिखाया है मुझे… भला मेरे रूखे हाथों में कैसा जादू वादू पापा ने पुलाव की प्लेट मां की तरफ बढ़ाई मां का हाथ थाम मां की तरफ मुस्कुरा के देखते हुए कहा तो एक पल को मां के चेहरे पर लाज की मुस्कान तिर आई थी।
अनिमेष मां की सलज्ज मुस्कान देख मंत्रमुग्ध हो गया था चेहरे का यह रंग उसने आजतक अपनी मॉम के चेहरे पर कभी नहीं देखा था… कितना प्यार भरा वातावरण है इस घर का वह मुग्ध हो उठा था।
वास्तव में मां पापा का अभी इस उम्र में भी यह बढ़ता हुआ आपसी प्यार विश्वास और समझ ही भारतीय परिवारों की नीव होते है ठोस आधारशिला होते है जो परिवार को बिखरने से रोकते हैं परिवार का यह दुलार और स्नेह भरा माहौल ही बच्चों को सुदृढ़ बनाता है ,सही राह दिखाने सही परवरिश में संस्कार निर्माण में सहायक होता है….यह उसकी समझ में आ गया था।
पुलाव बनाने में भले ही पापा को समय लगा था परंतु उसे खा कर खत्म करने में सभी को बिलकुल समय नहीं लगा था।
पापा प्लीज ये पुलाव एक बार फिर बनाइएगा आप अनिमेष ने उंगलियां चाटते हुए कहा तो पापा प्रफुल्लित हो गए” अरे बेटा तू कहेगा तो मैं तो रोज बना दूं ..मेरी इतनी तारीफ भी रोज हो जायेगी इसी बहाने वैसे तो तेरी मां के सामने कभी मेरी तारीफ का मौका ही नही आ पाता पापा ने खुल कर हंसते हुए कहा तो मां अरुण के साथ सारी प्लेट उठाकर किचन में चली गईं थीं।
पापा अब आप बैठिए मैं और मां किचन और बर्तन कर लेंगे अरुण ने किचन के अंदर आते हुए पापा को वापिस बैठक में ले जाते हुए कहा तो अनिमेष भी वहीं आ गया हां मां आप भी जाइए पापा के पास बैठिए मैं अरुण की हेल्प करवा देता हूं और मां के लाख इंकार के बाद भी उन्हें भी किचन से बाहर कर दिया था।
आज पहली बार अरुण के साथ बातें करते हुए मिल कर काम करना अनिमेष को बहुत ही सुखद अनुभूति दे रहा था वास्तव में साथ मिलकर एक दूसरे का ख्याल करते हुए हंसी खुशी से किया कोई भी कार्य उबाऊ नही लगता।
भैया जल्दी करिए मां पापा तोसोने भी चले गए हैं वीना ने एक बार फिर आकर दोनों को गुप्त गोष्ठी की याद दिलाई।
पूरी तरह से मां पापा के सो जाने का इत्मीनान कर लेने के बाद स्टडी रूम जो अब बेड रूम में बदल चुका था उसका दरवाजा अंदर से बंद कर लिया गया था…पूरे फर्श में गद्दे और साफ सफेद चादरें भी मानो चारों की गोष्ठी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
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घर की मिठास (अंतिम भाग) – लतिका श्रीवास्तव: hindi stories with moral
लतिका श्रीवास्तव