आलोक जी गुस्से से लाल हो रहे थे ।उनकी इकलौती बेटी आखिर इतना कुछ बोलने की हिम्मत कैसे कर सकती है कि उसे ऋषि पसंद है!
आज सुबह जब उन्होंने अपने बेटी को अपनी पत्नी के साथ बातचीत करते हुए सुन लिया था।
आयुषी को एक दो बार उन्होंने ऋषि के साथ देख लिया था।
ऋषि उनके जान पहचान के दोस्त का ही बेटा था मगर यह दोस्ती उन्हें पसंद नहीं थी। उनकी बेटी किसी लड़के के साथ कैसे किसी कैफे में जा सकती है या फिर आइसक्रीम पार्लर में!उन्होंने अपनी पत्नी से इस बाबत पूछने के लिए कहा था।
मानसी ने आयुषी से पूछताछ किया तो आयुषी ने बड़े ही शांति से जवाब दिया था “मां मुझे ऋषि पसंद है और इसमें हरज ही क्या है?
हम दोनों ने तय कर लिया है ।हम अपने पेरेंट्स पर बोझ नहीं बनेंगे और न ही उन्हें शर्मिंदा करेंगे। वह मैनेजमेंट कर रहा है और मैं जर्नलिज्म।जब हम दोनों जॉब करने लगेंगे तभी एक दूसरे को प्रपोज करेंगे और अपने पेरेंट्स से परमिशन भी लेंगे।”
मानसी ने उसे डांटते हुए कहा था “आयुषी हमारे प्यार दुलार का यह नतीजा है कि तुम हद से आगे बढ़ गई हो।
हमारे परिवार में यह सब चलन नहीं है।यहां अपने से कोई प्रेम विवाह नहीं कर सकता। पढ़ाई लिखाई का मतलब यह नहीं कि तुम अपनी मर्जी से अपना दूल्हा भी चुन लो।
पापा सुन लेंगे ना तो बहुत ज्यादा गुस्सा करेंगे और भूल जाओ यह प्यार वार! जहां पापा ठीक करेंगे वही तुम्हारी शादी होगी। घर की इज्जत ऐसे हवा में मत उछालो।”
“अरे मां आप किस सदी में जी रही हैं ।ऐसा कुछ भी नहीं होता। आज न्यू जनरेशन है हमें अपने जिंदगी जीने का अधिकार तो है ना।”
“नहीं बेटा तुम बात समझने की कोशिश करो!” मानसी ने उसे समझाने की कोशिश की तो पलट कर आयुषी ने कहा “मां आपने देखा बड़े पापा मिंकी दीदी के शादी में कितनी परेशान हो गए थे ।कितनी सुंदर है मिंकी दी,पढ़ी-लिखी एम ए पास।मगर बड़े पापा की जिद थी ना कि नौकरी करने नहीं देंगे।
और फिर कितनी किचकिच हुई थी ना उनकी शादी में और कितने खर्च करने पड़े थे।
बड़े पापा का।60 70 लाख का बजट बन गया था और उस पर भी यह जरूरी तो नहीं कि वह खुश होंगी !”
“कैसे खुश नहीं है? तुम्हें लगता है कि वह खुश नहीं है! बेटा बात वो नहीं है। घर की इज्जत,मान मर्यादा का ख्याल सबको रखना चाहिए ।शादी ब्याह में तो खर्च होते हैं।”
“ मगर मां पापा के पास इतने पैसे तो है नहीं और नहीं मुझे पसंद आएगा कि पापा लड़के वालों के सामने हाथ फैलाएं और कहें “मेरी बेटी से शादी कर लो!
मैं यह सब नहीं होने दूंगी। मुझे ये सब पसंद नहीं !”
“मगर बेटा, बात समझने की कोशिश करो!”मानसी अंतिम हथियार फेंकते हुए बोली।
“अरे मां आप बेकार का टेंशन ले रहीं है। अभी 2 साल और बचा हुआ है हमारी पढ़ाई। उसके बाद ही हम तय करेंगे ना !”आयुषी वहां से चली गई।
मानसी निरुत्तर हो गई।
आयुषी की तर्कसंगत बात सुनकर भी आलोक जी का गुस्सा भड़क गया। उन्हें लगा” आखिर उनकी बेटी ऐसा कैसे सोच सकती है।”
बेटी की बात सुनकर उनके गुस्से का ठिकाना नहीं था ।उनके मिडिल क्लास सोच और पिता होने का इगो आड़े आ रहा था।
अभी 6 महीने पहले ही नीचे उनके भाई की बेटी मिंकी की शादी हुई थी ।पढ़ी-लिखी मिंकी के लिए बड़े भैया कई सालों से लड़का ढूंढ रहे थे मगर कोई ढंग का लड़का ही नहीं मिल रहा था।कहीं लड़का नहीं जंचता तो कहीं दहेज का बजट।
आखिर कार घर की इज्जत पर बात उठने लगी थी।
“ जवान लड़की कब तक घर में बैठाकर रखोगे !रिश्तेदार और आस पड़ोस के लोग उंगली उठाने लगे थे कि
कहीं ऊंचनीच हो जाए उसे पहले लेनदेन करके शादी कर लो ।
मजबूरी में एक बहुत ही साधारण लड़के से मुंह मांगे दहेज पर शादी करनी पड़ी ।
यह सही था ,आयुषी सही बोल रही थी कि उसकी शादी में बड़ा ही जल्लत हुआ था।लड़के वालों का मुंह बंद ही नहीं हो रहा था लेकिन शादी हो गई। सब ठीक हो गया।
अपने पति को गुस्से में देखकर मानसी घबरा गई।
उसने डरते हुए कहा “देखिए जी, लड़की जवान हो रही है।इतनी सख्ती ठीक नहीं। मैं आराम से उससे बात करती हूं।
वैसे भी उसने दो साल मांगा है ना तो हो सकता है कि इन दो सालों में उसका दिमाग खुद ही बदल जाए। आप प्लीज गुस्सा मत कीजिए नहीं तो आपका बीपी बढ़ जाएगा।”
“बीपी,,, हुंह एक तो लड़की पालना नहीं आता है तुम्हें उसपर मेरा ही बीपी ठीक करने में लगी हुई हो।कल को हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी तब सब कुछ करते ही रहना!”
“अरे ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप प्लीज शांत हो जाइए।”
आलोक जी थोड़ी देर बड़बड़ करते रहे फिर अपने कमरे में चले गए।
घर में एक शीत युद्ध का माहौल बन गया था। अब आयुषी से वह कम ही बात करते थे।
देखते-देखते साल गुजर गया। एक दिन आलोक जी के बड़े भैया फोन पर रोने लगे। “आलोक देखो ना क्या हो गया! इतना पैसा खर्च करने के बाद भी एक खोटा सिक्का गले मढ़ गया।अब उसे मिंकी पसंद नहीं। अब वह कह रहा है कि तलाक लेगा और अपनी पसंद से शादी करेगा।
यह क्या कह रहे हैं भैया?”
“हां आलोक देखो ना यह क्या हो गया! अब तो घर की इज्जत मिट्टी में ही मिल गई।तुम छुट्टी लेकर एक हफ्ते के लिए आ जाओ। यहां हम सब मिलकर फैसला करते हैं कि हमें क्या करना है।”
“ठीक है भैया, मैं आज ही निकल जाता हूं।”
आनन-फानन में उन्होंने ऑफिस से छुट्टी लेकर उसी रात तत्काल लोकल ट्रेन में बैठकर अपने बड़े भाई के यहां जल्दी चले गए।
वहां रोना धोना मचा हुआ था।बड़ी भाभी और बड़े भैया रोते हुए कहने लगे “कोई इज्जत नहीं,ना हो कोई इमोशन, ना अपना सम्मान ना दूसरे का। घर की इज्जत मिट्टी में मिल गई।”
मिंकी भी रोते हुए कह रही थी “बड़े पापा उसका चक्कर खुद किसी के साथ चल रहा था। वह तो अपनी मम्मी पापा के दबाव में मुझसे शादी कर लिया था।हर बात पर मीन मेख निकाला करता था। हर बात पर डांट डपट करता रहता।
आखिरकार उसने मुझसे कह दिया कि उसे कोई और पसंद है। अब वहां रहने का क्या फायदा?”वह रो पड़ी।
आलोक जी की आंखों में आंसू आ गए। “अब क्या किया जा सकता है ना घर के न घाट के !”बड़े भैया रोते हुए बोल रहे थे,अब कुछ भी नहीं बचा,सबकुछ खत्म हो गया।”
“मिंकी को अपने पैरों पर ही खड़े होने का मौका ही देना चाहिए भैया।अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगी तो अपना दुख भूला पाएगी।”आलोक जी ने बड़े भाई को समझाते हुए कहा।
“हम कहीं के भी नहीं रहे अब! दुनिया को क्या बताएंगे दुनिया हम ही पर थूकेगी!”
“थूकने दीजिए भाभी, हम दुनिया के लिए अपनी इज्जत मिट्टी में तो नहीं मिलाएंगे ना! बिटिया तो हमारी है। हमें तो उसके भविष्य के बारे में सोचना होगा।”
आलोक जी की आंखें खुल चुकी थी।अब वह सोच रहे थे कि घर लौट कर ऋषि से मुलाकात करेंगे और आयुषी और ऋषि दोनों की शादी पर मुहर लगा देंगे।
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सीमा प्रियदर्शनी सहाय ✍️
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# घर की इज्जत
साप्ताहिक विषय घर की इज्जत के लिए मेरी रचना।
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय के लिए