घर की इज्जत – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

एक दिन जिस बेटी निशा के कारण घर की इज्जत नीलाम हो चुकी थी,पूरे समाज में थू-थू हो रही थी, आज उसी बेटी को बेस्ट उद्यमी महिला का पुरस्कार लेते देखकर  उसके परिवार का का सीना गर्व से चौड़ा हो उठा।

निशा आफिस से आकर कमरे में टेबल पर पड़ी हुई चिट्ठी देखकर पूछा बैठती है -“मां! ये चिट्ठी कहां से  और कब 

आई है?”

मां रसोई से ही कहती हैं -“आज ही दोपहर में आईं हैं। देख लो कहां से आई है! मैं चाय लेकर आती हूं।”

चिट्ठी खोलकर पढ़ते ही निशा के होंठों पर मुस्कराहट आ जाती है।चाय पीते हुए निशा मां को पुरस्कार के बारे में बताती है। सुनकर खुशी से मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक  उठते हैं।

कुछ दिनों पहले निशा को उसकी चैरिटी संस्था के अच्छे कामों के लिए पुरस्कृत किया गया था और अब उसे बेस्ट उद्यमी के लिए नमित किया गया है। निशा हाथों में चिट्ठी पकड़े हुए  अतीत में खो जाती है।वर्त्तमान में निशा परित्यक्ता की छवि छोड़कर ज़िन्दगी में दूसरों के लिए मिसाल बन चुकी है।

नासमझी में निशा ने घर से भागकर अभय के साथ शादी कर ली थी।शादी के छः महीने में ही उसके सामने अभय की  हकीकत खुल गई।एक दिन निशा रात में पति अभय का बेसब्री से इंतजार कर रही थी ।अभय को  घर आने में  काफी देरी हो रही थी।नई जगह में निशा किसी को नहीं जानती थी।वह बेचैनी में अपने कमरे में चहलकदमी कर रही थी।अभय का फोन भी बंद आ रहा था। घबड़ाहट में उसने इधर-उधर देखा,तभी उसकी नज़र एक कागज पर पड़ी।अभय की लिखावट देखकर निशा ने उसे पढ़ना शुरू किया –

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प्रिय निशा

मैं उम्र के इस नाजुक दौर में बहक गया था और पढ़ाई और परिवार को छोड़कर भावनाओं में बहकर तुम्हारे साथ प्यार और शादी कर बैठा।अब मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो चुका है।इन छः महीनों में मैं रोजी-रोटी की जद्दोजहद से परेशान हो गया हूं। मैं सदा के लिए माता-पिता के पास लौट रहा हूं। फिर से पढ़ाई शुरू कर अपना भविष्य सवारुंगा,तुम भी अपने घर वापस लौट जाओ।”

 अभय।

चिट्ठी पढ़ते ही निशा अवाक्  रह गई।उसका चेहरा भावहीन और सपाट हो उठा।वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो उठी।उसे उस समय पिता की कही  बातें   याद आ रहीं थीं, जिन्होंने  एक बार उसे समझाते हुए कहा था -“बेटी! ज़िन्दगी  में कोई भी निर्णय सोच-समझकर लेना।भावावेश में आकर लिया गया निर्णय झूठ की नींव की तरह पक्की नहीं होती।उस पर बने महल कच्चे ही होते हैं।जब जिन्दगी की सच्चाई सामने आती है, तो पलभर में सपनों के महल भरभराकर गिर पड़ते हैं।”

पिता की बात याद कर निशा का मन जोर-जोर से चीखना चाहता था, लेकिन अभय तो जा चुका था,अब यहां उसकी चीख सुननेवाला था ही कौन? अब किसे वह अपने दिल की फरियाद सुनाएं?उसकी आंखों से लगातार जार-जार आंसू बह रहे थे। कुछ समय बाद रोते-रोते धीरे-धीरे उसके आंसू सूख चुके थे। आंसू भी  बेवफा पति की भांति साथ छोड़ चुके थे।वह पत्थर की मूर्त्ति की भांति सवालों के मकड़जाल में उलझी हुई थी। सवालों का बवंडर उसके मन-मस्तिष्क को  हिलोर रहा था।खुद से ही निशा सवाल-जबाव कर रही थी। 

” शादी का फैसला दोनों का था, फिर तुमने छोड़ने का फैसला अकेले कैसे कर लिया?”

“क्या हुआ तुम्हारे दिखाएं हुए सपने और प्यार का?”

“क्यों मुझे बहकाकर मेरी ज़िन्दगी बर्बाद की?”इस तरह के सवाल उसे बार-बार परेशान कर रहें थे। फिर निशा को होश आता है कि वह सवाल किससे कर रही है? जबाव देने वाला ही विश्वासघात कर जा चुका था।

उसकी मां के खाने की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हो उठी।

मां पूछती है -“निशा!किस सोच में गुम हो?”

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निशा – मां!कुछ नहीं।कल मुझे बेस्ट उद्यमी का पुरस्कार मिलेगा,आप अच्छे से तैयार होकर चलना।”

मां -“बेटी! मैं वहां जाकर क्या करुंगी?”

निशा मां के गले लगकर कहती हैं -“मां!आपको तो पता है कि मैं आपके वगैर कोई पुरस्कार नहीं लेती!”

मां मुस्कराते हुए गर्दन हिलाती है।

दोनों मां बेटी खाना खाती है।निशा मां से पूछती है -“मां!भैया को भी इस अवसर पर दिल्ली आने कह दूं?”

मां -“कह दो। तुम्हें खुश देखकर उसे भी अच्छा लगेगा।”

खाना खाने के बाद बिस्तर पर लेटते ही एक बार फिर से उसकी नज़रों के सामने उसके अतीत के पन्ने फड़फड़ा उठे।अभय की बेवफाई से उसका स्वाभिमान आहत होकर आंसुओं के रुप में बूंद-बूंद पिघल चुका था।मन में अंतहीन वेदना थी।उसकी नासमझी का यह परिणाम हो सकता है,

यह उसकी समझ से परे था। परिवार की इज्जत तो चली ही गई और उसकी जिंदगी भी बर्बाद हो गई। माता -पिता और परिवार ने उसे मृत मान लिया था।संकट की घड़ी में उसे कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। आत्महत्या करने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी।इस विपदा की घड़ी में उसे मां का स्नेह भरा आंचल ही सहारा के रुप में दिख रहा था। मुसीबत में बस खून के रिश्ते ही याद आते हैं, क्योंकि एकमात्र यही एक रिश्ता ऐसा है, जिसमें थोड़ी -सी नर्माहट बची रहती है।बाकी के रिश्तों में तो थोड़ी -सी भी तकलीफ़ हुई,बस रिश्ता खत्म!”

निशा ने  उस समय बेचैनी में बिस्तर से उठकर आसमान पर नजर डाली।उसकी जिंदगी की भांति उस दिन भी चांद आसमान से गायब होकर रात के अंधेरे आगोश में समा चुका था।निशा बार-बार निढ़ाल होकर बिस्तर पर लेट जाती थी।अभय के साथ बिताए पल उसे भुलाएं नहीं भूलते थे।अभय  और निशा एक ही कालेज में पढ़ते थे।अभय के पिता शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी थे।निशा के पिता का अपना छोटा -सा व्यवसाय था। बड़ा भाई रमण बाहर इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।वह माता-पिता की दुलारी थी।पिता उसे बहुत प्यार करते थे, परन्तु उन्हें अपना मान-सम्मान और इज्जत बहुत प्यारी थी।

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निशा और अभय  के मन में कालेज के आरंभ में ही प्यार के अंकुर फूट चुके थे।निशा अभय की रईसोंवाली जीवनशैली से काफी प्रभावित थी,तो अभय उसके रुप-सौन्दर्य से। दोनों ने दो साल तक अपने प्यार को जमाने से छुपाया, परन्तु सच ही कहा गया है कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते।  उनके प्यार की भनक  कालेज और परिवार में लग चुकी थी। उसके पिता को अपनी बेटी पर भरोसा था। उन्होंने उसे जमाने की ऊंच-नीच समझाई। दोनों के माता-पिता उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को समझाते।

एक दिन अभय ने पूरे आत्मविश्वास से उसे समझाते हुए कहा था -“निशा! मुझे पता है कि मेरे पिता तुमसे मेरी शादी के लिए हर्गिज नहीं मानेंगे। मैं तुमसे बेइंतहा मुहब्बत करता हूं।अगर तुम मुझे नहीं मिली,तो मैं मर जाऊंगा।”

अभय की इन्हीं चिकनी-चुपडी बातों में आकर एक दिन निशा  अभय के साथ भाग खड़ी हुई।

उसके पिता की इज्जत सरेआम नीलाम हो गई। परिवार ने उसे मृत मानकर उससे सदा के साथ रिश्ता तोड़ लिया।

दोनों ने भागकर दूसरे शहर में मंदिर में जाकर शादी कर ली। शुरुआती दिनों में उनके लिए हर दिन होली और हर रात दीवाली थी। दोनों दिन -रात एक-दूसरे के प्यार में खोए रहें, परन्तु कुछ समय बाद जैसे -जैसे उनके पास से पैसे खत्म हो रहे थे, वैसे-वैसे उनके प्यार की खुमारी उतरने लगी।

रोमांस कल्पना के सुनहरे संसार से उतरकर जल्द ही हकीकत की धरातल पर आ चुका था। दोनों इतने पढ़े-लिखे भी नहीं थे कि कोई अच्छी नौकरी मिलती।अब अभय रोजी-रोटी की जुगाड़ में परेशान रहने लगा। हारकर एक दिन अभय ने मदद के लिए अपने पिता को फोन किया। उसके पिता ने कहा -” बेटा!मेरी बस एक ही शर्त्त है कि तुम उस लड़की को छोड़कर सदा के लिए घर आ जाओ, आगे की पढ़ाई कर अपना भविष्य संवारो।मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है,लौट आओ बेटा!”

पिता की बातें सुनकर अभय घर लौटने को बेताब हो उठा।अब अभय निशा से हर बात पर लड़ने लगा, फिर भी निशा को उसपर भरोसा था।अभय की चिट्ठी ने उसके भरोसे को तार-तार कर दिया अगली सुबह बिस्तर पर से उठने पर भी उसकी आंखों के आगे अंधेरा ही नजर आ रहा था। किसी तरह लड़खड़ाते हुए कदमों से वह बिस्तर पकड़कर बैठ गई। फिर से उसकी आंखों से सावन-भादो की झड़ी उमड़ पड़ी। उसके हृदय में आशंकाओं का समंदर हिलोरें ले रहा था।तूफानी लहरें रह-रहकर दिल की दीवारों से टकराकर लहू-लुहान किए दे रहा था।

एक दिन वह होशो-हवास खोकर माता-पिता के पास पहुंच गई।उस समय तो माता- पिता ने उसे देखकर मुंह मोड़ लिया। उसने भी तो अभय के साथ भागकर उनके मान-सम्मान और उनकी इज्जत पर कालिख पोत दी थी। उसे देखकर माता को  दया आ गई। सचमुच माता को धरित्री कहा गया है, जिसने सब कुछ जानते हुए भी गरल को चुपचाप पीना सीखा है। निशा की मां ने सबकुछ भूलकर उसे अपने आंचल की छांव में समेट लिया। धीरे-धीरे उसके प्रति पिता का भी पाषाण हृदय पिघलने लगा।

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निशा की जिंदगी में ऐसी परिस्थिति आ खड़ी हुई थी कि प्यार में धोखा खाने के बाद उसका खुद पर से विश्वास उठ गया था। उसे देखकर लोग तरह -तरह की बातें बनातें।उनकी बातों और व्यंग्य -वाणों से उसका कलेजा छलनी हो उठता।समाज की रुसवाई और जगहंसाई उसका अंतर्मन  दहला-सा उठता। यूं तो माता-पिता की मदद से निशा सबकुछ भूल जाना चाहती थी, परन्तु मन अतीत की कड़वाहट से क्षुब्ध हो उठता। उसके मन में बार-बार ख्याल उठते -“कैसे ढोऊंगी  इस उद्देश्यहीन जीवन का भार?”

अपनी मनोव्यथा वह स्वयं ही नहीं समझ पाती।जितना सोचती उतना ही उलझती जाती स्वयं के भ्रमजाल में।

निशा की मां बेटी की अन्त:पीड़ा को महसूस करती।उसे अतीत की पीड़ा से बाहर निकालने की कोशिश करती। ज़िन्दगी से तंग आकर एक दिन निशा ने आत्महत्या की भी कोशिश की। माता-पिता की सजगता ने उसे बचा लिया।बेटी की पीड़ा से मर्माहत पिता ने उसे सांत्वना देते हुए कहा -” बेटी!जीवन बहुत कीमती है। कोई भी मुसीबत ज़िन्दगी से बड़ी नहीं हो सकती।

जानती हो,जो जान दे देते हैं, उनके पीछे छूटे लोगों का दिल कितना दुखता है? आत्महत्या के बारे में सोचना भी गुनाह है। ज़िन्दगी तो ईश्वर की देन है। उसे हम कैसे खत्म कर सकते हैं?लाख मुसीबत ही सही, ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत और प्यारी है।जीवन एक बहता हुआ दरिया है,इसे बहने दो।तुम फिर से अपनी पढ़ाई पूरी कर ज़िन्दगी को नया आयाम दो। अपने जीवन में कभी भी ठहराव नहीं आने दो।”

पिता की बातों से निशा में धीरे-धीरे आत्मबल आने लगा था। उसने एक बार फिर से पढ़ाई शुरू कर दी।समय बहुत बड़ा बलवान होता है। बड़े से बड़े जख्मों को आखिर भर ही देता है। माता-पिता के प्यार की नर्माहट से निशा के दिल के ज़ख्म सूखने लगे ं।अभय उसकी जिंदगी का काला अध्याय था, जो उसकी जिंदगी के उजाले में विलीन हो चुका था।

उसके सीने में फंसा हुआ अतीत धीरे-धीरे विस्मृति के गर्त में छुपने लगा था।उसकी सूनी बेरंग ज़िन्दगी में खुशियों के रंग भरने लगें। आत्मविश्वास का सूरज बांहें फैलाए उसे थाम रहा था। ज़िन्दगी में आए इस खुबसूरत पड़ाव से वह खुद अचंभित थी।उसकी शिथिल पड़ी ज़िन्दगी में हलचल होने लगी। पढ़ाई पूरी करने के पश्चात उसने पिता के छोटे से व्यवसाय की बागडोर अपने हाथों में ले ली।

निशा के माता-पिता उसकी तरक्की से खुश थे।एक बार फिर उन्होंने निशा की शादी की बात चलाई, परन्तु निशा ने इंकार कर दिया।अब उसकी जिंदगी का मकसद बदल चुका था। उसने एक तरफ अपने पिता के छोटे से व्यवसाय को अपनी कर्मठता के बल पर बुलंदियों पर पहुंचाया ,दूसरी तरफ लाचार,बेबस, ठुकराई हुई महिलाओं के लिए अपनी चैरिटी संस्था खोली।आज उसका कर्म-क्षेत्र काफी विस्तृत हो चुका है।उसे एक बात का ही अफसोस है कि उसके पिता उसकी कामयाबी नहीं देख पाएं। सोचते-सोचते उसकी आंखों के कोर बरबस गीले हो उठे। मां की आवाज से उसकी आंखें खुल गईं।

निशा की जिंदगी से पुरानी यादों के धुंधले बादल पूरी तरह छंट चुके थे। वर्त्तमान में उम्मीद की किरणों ने एक बार फिर से उसके मन रुपी धरा को रोशन कर दिया।वह अगले दिन  आत्मविश्वास से भरपूर परिवार के इज्जत का मान-सम्मान बढ़ाते हुए मां और भाई के साथ पुरस्कार लेने हेतु चल पड़ी।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा । स्वरचित।

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