सुबह सुबह रसोई में जाकर चाय चढ़ाई ही थी की डोर बेल बज गई।
इस वक्त कौन आया होगा सोचती हुई अरुणा जी ने गेट खोला ।
“”अरे शुचि तुम ?
और अचानक?”
शुचि( अरुणा जी की बेटी )
शुचि मम्मी से लिपट लिपट कर रोने लगी।
एक बार को तो अरुणा जी को कुछ समझ ही नहीं आया।
अभी छः महीने पहले ही तो शुचि की शादी की थी।
परिवार भी सुलझा हुआ है।
और पवित्र तो बहुत ही अच्छा इंसान है।
फिर ये सब अचानक “
मन में अनगिनत विचारधरायें अपना घोंसला बनाने को तैयार बैठी थीं।
शुचि बोली ” मम्मी मैं अब वहां कभी नहीं जाऊंगी।”
ok ok तुम धीरज रखो ।
चलो बैठो मैं पानी लेकर आती हु।
फिर चाय पियेंगे और बात करेंगे।
अरुणा जी ने शुचि को पानी पिलाया और साथ ही चाय में भी दूध,शक्कर, पत्ती और डाल आई थीं।
शुचि को पानी पिलाया और बोलीं ” चाय में उकाली आए
जितने फ्रेश हो आओ फिर आराम से बात कर लेंगे “
शुचि फ्रेश होने गई इतने में अरुणा जी ने पवित्र को फोन
लगाने लगीं।
देखा तो वाट्सअप पर पवित्र का मैसेज था ” शुचि पहुंच जाए तो प्लीज इतला कर दीजिएगा।”
अरुणा जी ने फोन करना उचित नहीं समझा और ” पहुंच गई “मैसेज सेंड कर दिया।
शुचि के आते ही उसे चाय पिलाई।
फिर प्यार से बालों को सहलाती हुई बोली ” अब बताओ
क्या हुआ”?
शुचि फिर सिसकियां लेनी शुरू कर दी।
अरुणा जी बोली ” देखो बेटा जब मैं इस घर में शादी होकर आई थी ना।?
तब भी छोटी छोटी बातो को लेकर तुम्हारे पापा और मुझ में नॉक झोंक हो जाती थी।
कभी कभी दादी मुझे कह देती थी” अरे ये तो मर्द है कुछ भी बोल देता है पर तुम्हे तो समझदारी रखनी चाहिए ना।
थोड़ी देर चुप रहा करो अपने आप ठंडा हो जाएंगा।”
शुचि बीच में ही बोल पड़ी ” नहीं मम्मी मम्मी जी ऐसे नहीं हैं वो तो जब भी कोई बात होती है मेरा ही पक्ष लेते हैं।
उल्टा पवित्र को डॉट देती है।”
अरुणा जी एक बात तो कन्फर्म हो गई मैटर सास बहू का तो नहीं है।
फिर बोलीं ” हुं तो पवित्र ने कुछ कह दिया होगा ससुर जी तो कुछ बोलते नहीं हैं।”
सूची ने अपना सर पकड़ा और नीचे झुक गईं फिर बोलीं
” नहीं मम्मी पवित्र ने कहा तो कुछ नहीं पर “?
पर ? मम्मी ने फिर प्रश्न दाग दिया।
सूची बोली ” आपको याद है मैने आपको परसों फोन किया था।”
मेरी पीएचडी की डेट आ गई है।”
हा ,याद है।
तो ?
अरुणा जी ने सहमति जताई।
मम्मी उसी दिन मेरी तबियत खराब हो गई थी पवित्र और मै डॉक्टर के पास गए तो उन्होंने जांच करके बताया मेरे गर्भ में एक नन्हा अंकुर पनप रहा है।
शुचि के बोलते ही अरुणा जी के चेहरे पर चमक आ गई।
अरे तो ये तो खुशी की बात है।
शुचि चिल्लाई ” काहें की खुशी
मेरी पीएचडी का क्या होगा?”
वहा पवित्र मम्मी जी ,पापा जी सोनाली ( ननद ) ये भी
खुश होकर नाचने लगे।”
पवित्र की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं है।”
अरुणा जी बीच में ही बोली ” ये तो खुशी की ही बात है”
पर मम्मी ये तो बाद में भी हो सकता है
मेरी पीएचडी?
मम्मी बोलीं ” बस इतनी सी बात ?”
बेटा आजकल स्त्रियां कमजोर नहीं बने रहना चाहतीं।
तुम्हे पीएचडी करने से कोई रोक तो नहीं रहा।
नौ महीने तो तुम मेहनत कर सकती हो
रेस्ट के लिए दो तीन महीने बहुत हैं।
फिर पढ़ाई शुरू कर दो।
न्यूज पेपर में पढ़ती नहीं हो?
डिलेवरी के दूसरे तीसरे दिन बाद ही लड़कियां एग्जाम हॉल में एग्जाम देने पहुंच जाती हैं।
वो भी तो हौसला हिम्मत रखती है।
फिर उसी अकॉर्डिंग उनको सुविधा दे दी जाती है।
फिर तुम्हारा मैटर अलग है।
बेटा जमाना बदल गया है अब नारी हर वक्त हर मुकाबले के लिए तैयार रहती है।
तो तुम कमजोर थोड़ी ना हो?
और देखो पवित्र तुम्हे कितना प्यार करता है?
तो तुम्हारी केयर भी करेगा।
और फिर अरुणा जी बोलीं ” चलो अब तुम रेस्ट करो मैं तुम्हारी पसंद का खाना बना देती हूं।
फिर बात करते है”मम्मी के बाहर निकलते ही शुचि ने मम्मी की बातों को मन ही मन दोहराया।
और पवित्र को फ़ोन लगाया और बोला ” सॉरी पवित्र
पर एक प्रोमिस करो तुम मेरी पीएचडी भी करवाओंगे ना?
ये नहीं मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूं और तुम मेरी भूल जाओ।
पवित्र ने जवाब दिया ” तुम्हारी इच्छा सर आखों पर “
तुम्हे पता है ना?
सारा काम मम्मी अच्छे से संभाल लेती है।
तो आगे भी संभाल लेंगी “
तभी मम्मी की पैरों की आहट सुन शुचि ने फोन रख दिया।
क्या हुआ?
अरुणा ने पूछा
मम्मी मुझे वापस पवित्र के पास छोड़ आइए प्लीज
आप सही कह रही थीं।
शुचि के बोलते ही मम्मी मुस्कुराई और बोलीं ” उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।”
पवित्र तुम्हे लेने आ रहा है.
मम्मी के कहते ही शुचि के मुख से अनायास ही निकल पड़ा ” क्या”?
हां ,पवित्र जी का फोन आया था।
मतलब ? शुचि बोली।
मतलब क्या ?
बेटा वो तुम्हें बहुत प्यार करता है तुम्हारा ख्याल करता है।
तभी तो तुम्हारे वहां से रवाना होते ही उसने फोन कर दिया था।
हालांकि वजह नहीं बताई ।
पर तुम यहां पहुंचो उसकी सूचना देने को जरूर कहा था।
हु तो उन्होंने आपको भी अपने ग्रुप में शामिल कर लिया।
कहते हुए दोनों हंस पड़ीं।
शुचि फिर से नए उत्साह से अपने ससुराल पहुंचते ही उसकी सासू मां ने अरुणा जी को फोन किया।
” धन्यवाद समधन जी ,एक मां ही अपनी बेटी की सबसे अच्छी मार्गदर्शक होती है और जिसकी मां आप जैसी सुलझी हुई हो उसका घर कभी खराब हो सकता है।
घर की इज्जत भी बरकरार रहती है।
रही बात शुचि की पीएचडी की ख्वाहिश,उसका सहयोग मैं करूंगी।
उसकी ख्वाहिशों को आंच नहीं आने दूंगी।”
अरुणा जी बोलीं ” अब बताइए कौन कहता है कि मदर इन लॉ बुरी होती हैं। आप जैसी मिल जाए तो..…
और दोनों हंस पड़ती हैं।
दीपा माथुर