शैलजा जी अपनी होने वाली समधन के घर गई थीं… विवाह की तैयारियों के बारे में बैठकर बातें करने… घर दो घंटे की दूरी पर था…आज कुछ काम के सिलसिले में उधर निकलना हुआ… तो फोन पर बातें करने से अच्छा उन्होंने सोचा कि…
एक बार घर जाकर ही विवेक की मां और भाभी से बात कर ली जाए…
वैसे भी विवाह होने से पहले… वे एक बार खुद जाकर उनके घर का माहौल देखना चाहती थीं…
पर जब से वहां से वापस आई थीं उनका चित्त अशांत सा था…
” शैलजा आप रत्ना की ससुराल गई थीं ना… क्या हुआ बताया नहीं आपने…!” अनंत जी ने पूछा तो शैलजा जैसे भड़क उठी
“अभी नहीं है वह रत्ना का ससुराल…!”
” नहीं है… पर होगा ना कल को… बस कुछ ही दिनों की तो बात है…!”
” नहीं अनंत जी… अपनी रत्ना का ब्याह तोड़ दीजिए…!”
” यह क्या कह रही हैं आप…!’
” मैं ठीक कह रही हूं… रत्ना का ब्याह विवेक से नहीं होगा…!”
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यह सुनकर रत्ना भी भागती हुई बाहर आ गई…
” क्या हुआ मां… ऐसा क्यों बोल रही हो…!”
” नहीं बेटा तुम वहां एडजस्ट नहीं कर पाओगी…!”
” ऐसा क्यों लगता है तुम्हें…!”
” मैं तुम्हारी मां हूं ना… मैं जानती हूं… नहीं कर पाओगी…
आज नजदीक से थोड़ी देर उनके घर का रहन-सहन देखकर आई हूं मैं… सारे काम सब लोग मिलजुल कर… कर रहे थे… दोनों सास बहू काम में लगे हुए थे… यहां तक की विवेक और उसके पापा भी कुछ ना कुछ हेल्प कर रहे थे…
ऐसा तो अपने घर में नहीं होता… ना ही तुमने कभी देखा है…मां के साथ तो मिलकर तुमने आज तक एक काम नहीं किया… बताओ उन लोगों का साथ कैसे दोगी…!”
” क्या मां मजाक मत करो…!”
” नहीं बेटा… बिल्कुल नहीं… मैं मजाक नहीं कर रही…
मैं उन लोगों की खुशहाल जिंदगी को… अपनी नकचढ़ी बेटी को भेज कर बर्बाद नहीं करना चाहती…
तुम्हें संयुक्त परिवार नहीं… एकल परिवार चाहिए…
आज तो तुम वहां चली जाओगी… कल से काम धाम नहीं होगा… तो अलग हो जाने की बात शुरू कर दोगी… या फिर मायके आकर बैठ जाओगी…
इस तरह तो उनका और हमारा दोनों का घर परेशानी में पड़ जाएगा…
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इससे बेहतर है कि मैं तुम्हारा ब्याह कहीं किसी ऐसे लड़के से करूं… जो अकेला हो…या फिर अकेला ही रहता हो…
जिससे वहां तुम्हारी जो मर्जी आए तुम करो… और वैसे ही रहो…!”
” यह क्या उटपटांग लगा रखा है शैलजा जी.… इतना अच्छा घर परिवार है… इतना अच्छा संस्कारी लड़का है… आप कैसी बात लेकर बैठ गईं…!”
” अच्छा है तभी तो उन्हें बचाना चाह रही हूं…
हमारी स्वतंत्र विचारों की सिर्फ पढ़ाई और नौकरी कर सकने में समर्थ बेटी से… हमारी रत्ना से…!”
रत्ना की आंखों में अब तक आंसू भर आए…
” नहीं मम्मा और कितना जलील करोगी… छह महीने से शादी की बात हो रही है… विवेक और मेरी अच्छी बनती है… अब ऐसी बातें मत करो…!”
” शैलजा जी आप बात मत बढ़ाइए… शादी वहीं होगी… आप तैयारी करिए… यह मेरा आखिरी फैसला है…!”
रत्ना की शादी तय समय पर विवेक के साथ हो गई…
दो-तीन महीने का समय भी हंसी खुशी यहां वहां आते जाते बीत गया…
पर मां का मन अंदर ही अंदर रत्ना के भविष्य को लेकर अभी भी आशंकित था…
इस बार रत्ना बहुत दिनों बाद मायके आई… वह खुश थी…
मां ने उसका हाथ पकड़ अपने पास बिठा लिया…प्यार से सर पर हाथ फेर कर पूछा…
“बेटा सचमुच खुश तो है ना…!”
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रत्ना मां के मन की आशंका समझ गई… उसने मां के कंधे पर अपना सर रख दिया और चहकते हुए बोली…
” हां मां बहुत खुश हूं… मैंने पहले ही विवेक को बता दिया था अपनी परेशानी… मुझसे अधिक घर का काम नहीं हो पाता…
उन सबको यह बात पता है… सब मेरा बहुत ख्याल रखते हैं…
मैं भी अब बहुत कुछ सीख चुकी हूं … जिस तरह तुम पर धौंस दिखाती थी… वहां नहीं करती… जैसे तुमको देखा है… सबका ध्यान रखते… वही करने की कोशिश करती हूं…
तुम्हारी बेटी हूं… इतना तो भरोसा रखो… अब तो मैं घर के कामों में उनके साथ-साथ सहयोग भी करती हूं …
सब बहुत आसान हो गया है… उन लोगों के साथ से… कोई कुछ गलत हो जाने पर खींचाई भी नहीं करता…
हां मैं ही कभी-कभी झल्ला जाती हूं… तो विवेक फिर संभाल लेते हैं…!”
आज मां ने सही मायने में… शंका रहित हो… अपनी बेटी को गले लगा कर विदाई दी…
सचमुच अनंत जी का फैसला बिल्कुल सही था…
कई बार हम अपने बच्चों की क्षमताओं की सही पहचान नहीं कर पाते… भले ही वह हमारे लिए नासमझ हों…
पर मौका मिलने पर.… वे माता-पिता के दिए संस्कारों के अनुरूप ही कार्य करते हैं…अपनी पर पड़े तो सब संभाल ही लेते हैं… है ना…
रश्मि झा मिश्रा