hindi stories with moral : ” क्या बात है नीलेश इतना उदास क्यो लग रहा है ?” अतुल जो नीलेश का सहकर्मी और दोस्त दोनो था उसकी सीट पर आ पूछने लगा।
” क्या बताऊं यार परेशान हो गया हूँ मैं अपनी जिंदगी से !” नीलेश दुखी स्वर मे बोला।
” अरे मेरे भाई अभी तो तेरी शादी को दो साल ही हुए है अभी से परेशान हो गया तू हमें देख हम तो छह साल से निभा रहे है !” अतुल हँसते हुए बोला।
” यार प्लीज मजाक की बात नही है !” अतुल की बात से चिढ़कर नीलेश बोला।
” चल कॉफी पीने चलते है वही बात करेंगे !” अतुल उसका हाथ पकड़ कर उठाते हुए बोला।
” पर यार काम…! इससे पहले की नीलेश अपना वाक्य पूरा कर पाता अतुल उसे बाहर खींच लाया तो मजबूरी मे नीलेश को जाना पड़ा।
” हां अब बता समस्या क्या है ?” कॉफी का ऑर्डर दे अतुल बोला।
” यार मुझे घर घर नही लगता अब घर जाने का भी मन नही करता। रीति ( नीलेश की पत्नी ) मेरे माता पिता के साथ नही रहना चाहती और अपने माता पिता का इकलौता बेटा होने के कारण मैं उन्हे छोड़ नही सकता अजीब संकट मे आ गया हूँ मैं ये शादी करके!” नीलेश बोला।
” रीति को समस्या क्या है अंकल आंटी से ?” अतुल ने पूछा ।
” यार कोई समस्या हो तो समझ भी आये माँ पापा ने हर तरह से आजादी दे रखी है उसे बस कभी कभी का कोई सवाल पूछना या अपनी पसंद का खाना बोल देना ही अखरता है उसे। अब तू जानता है मैं माँ पापा की शादी के बारह साल बाद हुआ तो अब वो लोग बूढ़े हो गये है थोड़ा बहुत अपनी मर्जी चला लेते है बस यही झगड़े की जड़। और मेरे घर जाते ही जब रीति दिन भर का रोना रोती है तो मैं भी माँ पापा पर चिल्ला देता हूँ फिर खुद ही गिल्ट होता है पर मैं क्या करूँ यार घर मे कैसे शांति रखूं !” नीलेश लगभग रोते हुए बोला।
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” नीलेश ये बताओ तुम रीति से क्या एक्सपेक्ट करते हो ?” अतुल कुछ सोचते हुए बोला।
” यार बस इतना कि थोड़ा बहुत माँ पापा की पसंद का ख्याल रखे उन्हे सम्मान दे बस जिससे उन्हे भी अपना घर लगे वो अभी तो उन्हे बस बहू से शिकायत रहती है कि इस घर मे पराया कर दिया हमें !” नीलेश बोला।
” जब तुम बेटे होकर अपने माँ बाप पर चिल्ला देते हो तो रीति से ये एक्सपेक्ट करना बेमानी है कि वो उनकी रेस्पेक्ट करे। तुम जानते हो तुम्हारी पत्नी गलत है पर तुम बोलते अपने माँ बाप को हो तो रीति कैसे उनसे गलत नही बोलेगी।” अतुल बोला।
” पर मैं तो घर की शांति के लिए माँ पापा को बोल जाता हूँ वरना कई दिन तक घर मे कलेश रहता है रीति का मुंह फूला रहता है तुझे पता है वो गर्भवती है तो ऐसे मे उसे स्ट्रेस भी नही दे सकता इसलिए अपने माँ पापा को ही झिड़क देता हूँ ! मैं ना अच्छा बेटा बन पा रहा ना पति पता नही आगे अच्छा पिता बन पाऊंगा या नही !” नीलेश रुआंसा हो बोला।
” देख नीलेश सुखी घर ग्रहस्थी का मूल मंत्र है माँ बाप और पत्नी के बीच सामंजस्य बैठना वरना तो तू सारी जिंदगी परेशान ही रहेगा तुझे अपने माता पिता को भी इम्पोर्टेंस देनी होगी बीवी को भी वरना दोनो के बीच पिसेगा !” अतुल ने समझाया और उसे वो मंत्र भी दे दिया। अब नीलेश रविवार के दिन रीति के साथ खुद खाना बनाने लगा जिससे रीति को अच्छा लगता है और वो अपने माँ बाप की पसंद का ध्यान भी रख लेता है ।
” अरे अरे रीति मिर्च कम डालो हमारे बच्चे पर इसका असर होगा !” वो अक्सर ये बोल माता पिता का साथ देता। रीति भी उसके इस तरह ध्यान रखने से खुश रहती ।
” माँ ये सब्जियाँ आप काट दो रीति के हाथ आटे मे सने है और मुझसे तो आपको पता ही है कैसी बेढगी सब्जी कटती है !” ये बोल वो माँ को भी काम मे लगा लेता जिससे उन्हे भी तसल्ली होती और अपना पन लगता वरना तो वो रसोई मे आती ही झिझकती की रीति कुछ बोल ना दे उन्हे ।
” देखो आज फिर पापाजी ने खाना नही खाया …बोलते है मिर्ची ज्यादा है अब उनका बुढ़ापा है तो हम क्यो उबली सब्जिया खाये।” कुछ दिन बाद नीलेश के घर आते ही रीति शिकायत लेकर बैठ गई।
” रीति आज पता है मैं क्या सोच रहा था ?” नीलेश ने कोई जवाब देने की जगह रीति से सवाल किया।
” क्या …?” आज नीलेश को उदास और परेशान देख रीति हैरानी से उसके पास बैठते हुए बोली।
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” भगवान करे हमारी बेटी हो और फिर उसके बाद हम दूसरा बच्चा नही करेंगे क्या पता दूसरा लड़का हो गया तो …नही नही मुझे लड़का नही चाहिए !” नीलेश बोला ।
” कैसी बाते कर रहे हो तुम लड़कियां तो शादी करके अपने घर चली जाती है बुढ़ापे का सहारा तो बेटा बनता है। जब हम लाचार हो जाएंगे तो हमारी सेवा तो बेटा बहु ही करेंगे ना बेटी थोड़ी !” रीति अपनी रौ मे बोल गई।
” नही रीति ये सब कहने की बाते है आजकल कौन बेटे सेवा करते है बुढ़ापे मे …नही नही मुझे बेटा नही चाहिए बुढ़ापे मे कैसे भी सही चैन की रोटी तो खा लेंगे दोनो अकेले होंगे तो वरना कलेश ही रहेगा !” नीलेश मुंह बनाते हुए बोला।
” अरे ऐसे कैसे कलेश रहेगा हम माँ बाप होंगे उसके वो हमारी देखभाल करेगा भी और अपनी पत्नी से करवाएगा भी !” रीति बोली।
” नही रीति जब मैं नही कर पा रहा अपने माँ बाप की सेवा ना तुमसे करवा पा रहा तो अपने बेटे से भविष्य मे क्या उम्मीद रखूंगा । इसलिए मुझे बेटा नही चाहिए वरना वो सारी जिंदगी बीवी और माँ बाप के बीच झूलता रहेगा दो पल सुकून के नही बिता पायेगा घर आकर …और अगर उसकी बीवी ने हमें घर से ही निकाल दिया तो …तो कहा जाएंगे हम ? नही नही हम बस एक बेटी के माँ बाप बनेगे जो कभी कभी ही सही हमारे हाल तो पूछ लेगी माँ पापा की तरह अकेले तो नही घुटेंगे भी और अपना घर अपना सा लगेगा पराया नही जहाँ कुछ लेने मे झिझक हो !” नीलेश ये बोल फ्रेश होने चल दिया।
ये क्या कह गया नीलेश …और गलत भी क्या कहा यही तो हो रहा अभी भी फिर भविष्य मे तो बच्चे और ज्यादा प्रैक्टिकल हो जाएगे वो जो घर मे देखेंगे वही तो करेंगे …नही नही मेरे बच्चे ऐसे नही होंगे …रीति बहुत देर तक आत्मचिंतन करती रही । नीलेश बाथरूम से निकल रीति के चेहरे पर आते जाते भाव देख रहा था ।
” रीति चलो खाना खाते है !” अचानक नीलेश ने उसे झंझोड़ा।
” हम्म.. हां बस दस मिनट रुकिए मैं अभी लगाती हूँ खाना !” ये बोल रीति रसोई मे आ गई ।
” जल्दी लाओ रीति भूख लगी है !” नीलेश ने थोड़ी देर बाद रीति को आवाज़ लगाई ।
” लीजिये आप शुरु कीजिये मैं इतने पापा जी को ये दलिया देकर आई !” रीति उसके आगे खाना रखते हुए बोली और चली गई।
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रीति के सास ससुर हैरान थे ये देख कि आज उनकी बहु ने उनके लिए अलग से दलिया बनाया है वरना तो वो कहते कहते थक जाते थे उसपर रीति सास को भी अलग से नही बनाने देती थी। इधर नीलेश भी रीति मे आगे इस सुखद बदलाव को देख खुश था।। उसने मन ही मन अतुल को धन्यवाद किया क्योकि अतुल के सहयोग बिना ये संभव ही नही था।
उस दिन के बाद से रीति धीरे धीरे ही सही बदलने लगी। और नीलेश के कानो तक भी कम शिकायते आने लगी।
अब जब रीति जल्दी ही माँ बनने वाली है वो नीलेश से अब भी शिकायते तो करती है पर ये कि मांजी लाड मे मुझे रसोई के काम बहुत कम करने देती है बोलती है ऐसे मे आराम कि जरूरत है तुम्हे। अब रीति की शिकायतों पर नीलेश खीजता नही था बल्कि उसे प्यार आता था। उधर सास के सहयोग और समर्थन से रीति भी खुश रहने लगी थी और उसके माता पिता को भी घर पराया नही लगता था। अब नीलेश का घर आने का मन भी करता है क्योकि वहाँ अब चिल्लाने की आवाज़ो की जगह सुकून मिलता है।
दोस्तों अक्सर सास ससुर और बहु के बीच मनमुटाव रहते है जिसने पति सबसे ज्यादा पिसता है लेकिन थोड़ी सी समझदारी से चले अगर वो तो कुछ हद तक इन मनमुटाव को खत्म कर सकता है। बस उसे सब रिश्तो मे सामंजस्य बैठाना आता हो।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल