Moral stories in hindi: “तुम्हारे नैना फिर भीग उठे वैशाली?” अपनी वर्दी पहनकर वापिस बॉर्डर जाने की तैयारी करते फौजी राकेश ने अपना सामान बांधेते उसे निहारते हुए प्यार से पूछा।
“आप घर आते नहीं कि जाने की तैयारी करने लगते हैं।”
” मेरा काम बाकियों जैसा नहीं है, ये बात तुम्हें समझनी चाहिए। “
“क्या समझूँ? पिछली बार आपने कहा था कि आप अगली बार ज्यादा दिनों के लिए रुकेंगे और अभी एक फोन आया नहीं कि आप जा रहे हैं?”अपने नवजात को दूध पिलाती वो खिन्न होकर कहती है।
“सीमा पर अचानक घुसपैठ हो रही है, इस बार मुझे माफ़ करना,मेरा जाना जरूरी है।”
“क्या आपको अपने परिवार के साथ रहने का हक नहीं?”
ये सुन राकेश अपनी पैकिंग छोड़कर उसके कोमल हाथो को थामते हुए कहता है। “भारत माता ने देश के एक-एक नागरिक की सुरक्षा मेरे कन्धों सोपी है,अपने परिवार के साथ-साथ मुझे पूरा देश अपना परिवार लगता है।” ये सुन वैशाली के भाव नहीं बदले और राकेश अपनी रोती बच्ची को गोद में ले सहलाने लगा।
“और हमारा क्या? आपके लिए हमेशा देश पहले आता है और हम सबसे आखिरी में!” वैशाली बिलखने लगी और दूसरी दीवार पर सटी जज्बाती हो सब सुनती राकेश की माँ उमा जी से रहा ना गया और वे अपने भीगे नैनो को पोछ मुस्कराती हुई भीतर प्रवेश करने लगी।
“बहु, ऐसे उदास ना हो उसे खुशी-खुशी बिदा कर, तेरे साथ तो मैं हूं गुड़िया है,उसका सोच! उसे हमसे मिलों दूर अकेला रहना होता है, ऐसे जाते-जाते उसका दिल ना दुखा।”
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“माँ जी,आपने तो इन्हें वो रास्ता चुनने दिया जिसका मोड़ कभी उनके खुद के घर-आँगन से होकर नहीं गुजरता। माफ़ कीजिए मगर मैं आप जैसी मजबूत नहीं। “
“बेटी ये मत भूल कि देश सेवा में समर्पित हर एक सिपाही के पीछे उनके पूरे परिवार का त्याग भी सम्मिलित होता है। उसको तेरे ये बहते आँसु कमजोर कर रहे होंगे, इन्हें पोंछ और उसका हौसला बढ़ा।” उमा जी उसे समझाती है।
राकेश के चेहरे पर परिवार छोड़ने की पीड़ा जरूर थी पर अपनी धरती माँ की एक पुकार के सामने वो दुश्मनों को ललकार अपना सबकुछ निछावर करने तत्पर था।
कितना मजबूत होता है एक सैनिक और उसका परिवार जो इस बात से पूर्ण अनभिज्ञ रहता हैं कि वे अगली बार कब मिलेंगे और उस मुलाकात के इन्तेज़ार बीच उनका मन इस एक डर लिए जी जी कर पलपल मरता है कि वे अपने लाल का जिवित चेहरा अगली बार देख पायेगे या नहीं।
” तुम्हारे भीगे नैना एक बार को चल जायेंगे पर ये बहते आँसु एक फौजी की पत्नी की आँखों में उसके शहीद हो जाने पर भी अच्छे नहीं लगते।” उन सबसे बिदा लेकर वो बॉर्डर जा पहुँचा।
” 179 चेक!!”
“179 ओवर, राकेश क्या खबर है। “
” सर करीब 9 घुसपैठियों की हरकत दिख रही है। टोली पहुंचने कितना और समय लगेगा?
” रास्ता बहुत खराब है, आधा घंटा और शायद उससे थोड़ा ज्यादा। “
“सर यहां आसपास गाँव है, बच्चों का स्कूल है वे प्रवेश करने सफल हो गए तो अनर्थ हो जाएगा। “
“हमें क्या करना चाहिए?”
“सर हम सैनिक तो जीते ही उस दिन के लिए है कि समय आने पर देश के लिए गौरव से शहीद हो सके! हम मौजूद सैनिक उनसे संख्या में जरूर आधे होंगे मगर हमारा हौसला उनके मनसूबे को हराने बहुत काफी है,सर! हमे ऑर्डर दीजिए। “
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“आल दी बेस्ट ओवर एंड आउट। “
और वे बंदूक ताने माटी के सपूत भारत माता जी जय हुंकार भरते उन आतंकियों से भिड़ने निकल पड़े।
“माँ जी किसका फोन था? आप इतनी परेशान क्यु दिख रही है, वे ठीक तो है?कुछ तो कहिये! आपकी ये चुप्पी मुझे बेचैन कर रही हैं। “
“बेटी,,, उसके साहस के सामने,,, घुसपैठियों को,,घुटने टेकने पड़े,,,वो अपनी अंतिम,,, सास तक,,, डटकर,,, लड़ता रहा।”माँ लड़खड़ाते स्वर से कह धम्म से जमीन पर बैठ गई,जिसे देख वैशाली उन्हें संभालने भागी और वे एक-दूजे को गले लगा विलाप करने लगी।
“जैसा कि आप देख सकते हैं कि शहीद राकेश दुबे जी का पार्थिव शरीर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके गाँव धनेली ले जाया जा रहा है, जहां सड़क के चारों कोने हज़ारों लोगों की भीड़ उनके अंतिम दर्शन पाने देखी जा सकती है। आज सभी की नम आंखे उनके किए पराक्रम को सलाम कर रही है। लोग काफी भावुक हो उठे हैं जैसे कि उनके परिवार का कोई अपना बिदा हो रहा हो। उनके घर की क्या खबर है?”उस रिपोर्टर ने उनके घर कवर करने वाली रिपोर्टर से पूछा।
“उनका घर शोक में डूबा हुआ है, आसपास के काफी लोग उनके परिवार को सांत्वना देने यहा मौजूद हैं। उनकी पत्नी,बच्ची और माँ जिन्होंने अपना पति, पिता और बेटा खोया है वे खुद को बहुत मजबूती से संभाली हुई है। ऐसी हिम्मत केवल एक फौजी के परिवार में ही देखी जा सकती हैं, जिनकी देश के प्रति निस्वार्थ सेवा हमे एक और खतरे से बचाने सफल रही।” आगे की ख़बरों के लिए बने रहे कैमरामैन दीपक और रिपोर्टर रूपाली के साथ।
वैशाली अपने पति राकेश के अंतिम दर्शन करने उनके समीप जाने लगी, उसके कानों में जैसे राकेश की कही बात बारबार गूंज दोहराने लगी,
“तुम्हारे भीगे नैना एक बार को चल जाएंगे पर ये बहते आँसु एक फौजी की पत्नी की आँखों में जरा भी अच्छे नहीं लगते।” वो बात-बात पर नैन बहाने वाली वैशाली आज खुद के भीतर एक अलग सा तेज महसूस कर रही थी। उनकी कहीं बात को उनकी अंतिम इच्छा मान,
जिसे वो कभी अपने घर-आंगन में ना देख सकेगी,उसके नैना भीगे पर पर वो रोई नहीं
एक सिपाही के परिवार का किया त्याग यहा भूल जाते लगता किसीको पल भर नहीं
वे शाहिद,माँ के लाल जो देशवासियों को सुरक्षित कर लिपटकर तिरंगे में अपने घर-आंगन लौटे थे
उनके शौर्य को कभी भूल ना जाना,जो हमारी चैन की नींद के लिए खुद हमेशा के लिए सोये थे
जय हिंद
रुचि पंत