घर आना! – पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ : Moral Stories in Hindi

आँखों के आंसू बहकर गालों पर सूख चुके थे, बस की खिड़की से हौले हौले आती हवा के झोकों ने झपकी लेने पर मजबूर कर दिया.

अचानक से मोनी को अर्जुन दा की तबियत ख़राब होने की सूचना मिली! मोनी से रहा न गया! मन में अंजाना डर बिठाये पति रोहित और बेटे आदि को साथ ले पिता से मिलने अस्पताल जा पहुंची!

दूर से ही पिता को देख रही थी मोनी! पास जाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी! उसे पता था कि अपने पसंद की शादी करने से पापा अब तक नाराज़ होंगे!

फोन पर दो वर्ष पूर्व बात करते हुए उसके पापा ने यह कहते हुए फ़ोन काटा था की आज के बाद इस घर के दरवाजे तेरे लिए हमेशा के लिए बंद!

मोनी की माँ बचपन में ही गुजर गयी थी! उसका पालन पोषण सब उसके पापा ने किया था! तभी तीमारदार के रूप में वहां उपस्थित उनके भाई

की नज़र मोनी पर पड़ी! उन्होंने धीरे से बेड पर मशीनों से घिरे मोनी के पापा से कहा-“दादा! ,मोनी आई है!”

अर्जुन दा ने चौंकते हुए पुछा, “मोनी.. मोनी आई है? कहाँ है मोनी?? मोनी?” मोनी के नाम भर से चेहरे की चमक एकदम से बढ़ गयी! अपना नाम पिता के मुख से सुनते ही मोनी पिता के पास दौड़ी गयी!

फिर क्या था, आंसुओं के सैलाब में पिता और पुत्री खूब नहाए! आंसू जब थमे तो अर्जुन दा ने मोनी से पूछा- “अकेले आई है मोनी?”

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मोनी ने इशारे से पति और बेटे को पास बुलाया! नन्हे आदि को देख कर अर्जुन दा निहाल हुए जा रहे थे! दिन भर रहने के बाद अगले दिन फिर आने का वादा कर के मोनी वापिस जाने लगी!

तभी अर्जुन दा ने तीनो को वापिस बुलाया, जैसे कुछ ज़रूरी काम रह गया हो! रोहित और मोनी का हाथ अपने हाथ में ले कर जैसे अर्जुन दा ने इस रिश्ते को स्वीकृति प्रदान की! और फिर आश्वस्त होते हुए बोले- 

“घर आना!..”

मोनी के मन में ढेर सारे भाव उद्वेलित हो रहे थे! अस्पताल के गेट तक पहुची ही थी कि उन्ही तीमारदार का फ़ोन था!

“बेटा, पापा नहीं रहे!”

-पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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