सुबह के आठ बज रहे थे,काम वाली बाई की राह देखते हुए रागिनी गुस्से से लाल पीली हो रही थी,घर का सारा काम काम वाली बाई के देर से आने की वजह से काफी देर से होता था,रागिनी खुद कुछ भी नहीं करती थी,वह हमेशा अपने चेहरे की खूबसूरती निहारतीं रहती थी,वह खुद को किसी अप्सरा से कम नहीं समझती थी,वह दूसरों को नीचा दिखाकर हमेशा खुद को ही सर्वोपरि समझतीं थी।
“आज फिर तुम देर से आई हो? सारा काम पड़ा हुआ है,रोज -रोज की नौटंकी बना रखी है तुमने” सामने काम वाली बाई को देखकर रागिनी दांत पीसते हुए बोली।”मेम साहब! मेरे लड़के की तबियत ठीक नहीं है,उसको दिखाने गई थी,इसी वजह से देर हो गई है अब आगे नहीं होगी ” काम वाली बाई रागिनी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली।
“बहाना अच्छा है,यह क्यूं नहीं कहती कि तुम्हें कम पैसे मिलते हैं?”रागिनी झुंझलाते हुए बोली।”नहीं मेमसाब! ऐसी कोई बात नहीं है मैं सच कह रही हूं “काम वाली बाई सिर झुकाते हुए बोली।”लगता है मुझे दरोगा जी से कहकर तुम्हारे आदमी की दुकान हटवानी पड़ेगी?”रागिनी काम वाली बाई को देखकर मुस्कुराती हुई बोली।
” नहीं मेमसाब! आप दरोगा जी से कुछ मत कहियेगा,उसी दुकान से तो हमारा घर चलता है।”काम वाली बाई गिड़गिड़ाते हुए बोली।”ठीक है अब एक भी दिन अगर तुम देर से आई तो यह समझना कि उसी दिन तुम्हारी दुकान चौराहे से हट जाएगी?
” कहकर काम वाली बाई को धमकाते हुए रागिनी कमरे के अंदर चली गई। काम वाली बाई चुपचाप रागिनी के अहंकार से परिपूर्ण घमंडी चेहरे को देख रही थी।
रागिनी का पति राघवेन्द्र उसी क्षेत्र के थाने में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत था,काम वाली बाई के पति ने सड़क के किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान खोल रखी थी, राघवेन्द्र कही उसके पति की दुकान न हटवा दें,
इसी भय के कारण कामवाली बाई रागिनी के घर पर कम पैसों में कठिन परिश्रम करती थी। शादी से पहले राघवेन्द्र कुछ दूरी पर स्थित अपने पुश्तैनी घर पर अपने छोटे भाई पुष्पेन्द्र उसकी पत्नी रजनी मां गायत्री देवी के साथ रहता था, उसके पिता का देहांत उसके बालपन में ही हों चुका था,
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मां गायत्री देवी ने कठिन परिश्रम करके राघवेन्द्र और पुष्पेन्द्र को पाल पोस कर बड़ा करके अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया था, रागिनी से शादी होने के बाद राघवेन्द्र का स्वभाव बिल्कुल बदल गया था,वह अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित नहीं था,वह पुलिस की वर्दी में एक अपराधी बन चुका था,
पैसे लेकर वह अपराधियों का साथ देता था, भ्रष्टाचार बेईमानी के दम पर उसने करोड़ों रुपए की सम्पत्ति अर्जित करके अपने पुश्तैनी घर को छोड़कर एक आलीशान महल बनाकर रागिनी और अपने दो बच्चों बेटे आकाश व बेटी नीलिमा के साथ रहता था,अपनी मां और भाई के लिए वह बिल्कुल अंजान हो चुका था।
उसकी मां गायत्री देवी उसके कृत्यों से परेशान रहती थी, उसे सच्चाई का साथ देने के लिए प्रेरित किया करती थी,मगर राघवेन्द्र के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं हुआ क्योंकि उसकी जीवन संगिनी रागिनी जिसकी ख्वाहिशें हमेशा आसमान छूने की रहती थी,
इसलिए राघवेन्द्र कभी जमीन की तरफ देखता भी नहीं था, नेताओं, मिलावटखोरों, भूमाफियाओं, के सारे दो नंबर के काम पूर्ण करने में राघवेन्द्र उनकी खुलकर मदद करता था।
रात के दस बज रहे थे,डोर बेल की आवाज सुनकर राघवेन्द्र बोला।” रागिनी! देखो कौन आया है?”रागिनी ने दरवाजा खोलकर देखा, घर के गेट के सामने एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी हुई थी।दो तीन लोग जो देखने में सफेदपोश नेता लग रहें थे,
उनमें से एक रागिनी को देखकर बोला।”बहन जी! इंस्पेक्टर साहब से कह दीजिए रामप्रताप जी उनसे मिलने आए हैं।” रागिनी उस व्यक्ति की बात सुनकर अंदर आते हुए राघवेन्द्र से बोली। “कोई रामप्रताप जी आपसे मिलने आए हैं।
” रामप्रताप का नाम सुनकर राघवेन्द्र उठकर बैठ गया “क्या रामप्रताप जी मुझसे मिलने आए हैं!” कहते हुए राघवेन्द्र तेजी से बाहर निकल आया। कुछ देर बाद वह दो लोगों के साथ घर के अंदर आया और आदरपूर्वक उन्हें बैठाते हुए बोला।
“अरे नेताजी! अपने क्यूं कष्ट किया मुझे फोन कर दिया होता मैं आ जाता आपकी सेवा में।”राघवेन्द्र उस व्यक्ति का सम्मान करते हुए बोला।”राघवेन्द्र! बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे आना पड़ा?” वह व्यक्ति चिंतित होते हुए बोला।
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” नेताजी! यह मेरी पत्नी रागिनी है,अरे रागिनी चाय नाश्ता लाओ नेताजी के लिए।” राघवेन्द्र रागिनी से बोला। रागिनी ने उस व्यक्ति से नमस्ते किया और किचन की ओर चली गई। रागिनी उन लोगों की बातें ध्यान लगाकर चुपचाप सुन रही थी।
किसी पत्रकार की हत्या नेताजी के बेटे ने कर दी थी, उसके केस को हल्का करने व सबूतों को इधर-उधर करने के लिए नेताजी राघवेन्द्र को दस लाख रुपए देने की बात कर रहे थे, उसके चाय नाश्ता लेकर जाते ही उन लोगों ने बातें करना बंद कर दिया।
“राघवेन्द्र! तुम्हारे बच्चे नहीं दिख रहें हैं?”उनमें से एक व्यक्ति बोला।”जी बच्चे जल्दी सो जाते हैं।” रागिनी मुस्कुराते हुए बोली।”अच्छा राघवेन्द्र! अब हम चलते हैं,कल तुम हमसे मिल लेना?”नेताजी उठकर जाते हुए बोले।
“ठीक है नेताजी मैं कल आ जाउंगा आप परेशान मत हो।” राघवेन्द्र उन लोगों को बाहर जाकर विदा करते हुए बोला और घर के अंदर आ गया।
उन लोगों के जाने के बाद राघवेन्द्र कुछ देर तक शांत बैठा कुछ सोच रहा था।”क्या सोच रहे हैं आप?” रागिनी राघवेन्द्र को देखते हुए बोली।”रागिनी! मामला बहुत पेचीदा है?
“राघवेन्द्र चिंतित होते हुए बोला।”दस लाख रुपए पेचीदे काम के लिए ही कोई देता है, मैं तो कहती हूं,आप पन्द्रह लाख लीजिए वह भी देंगे यह लोग।
” रागिनी चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखेरती हुई बोली। राघवेन्द्र कुछ देर तक रागिनी को देखता रहा फिर धीरे से मुस्कुराते हुए बोला।”रागिनी! शायद तुम ठीक कह रही हो।” और दोनों लोग खिलखिलाकर हंसने लगे।
तीन महीने बीत चुके थे,रात के बारह बज चुके थे, राघवेन्द्र घर नहीं आया था, रागिनी परेशान थी, राघवेन्द्र का फोन बंद था, उसने राघवेन्द्र की गाड़ी के ड्राइवर को फोन किया,फोन पर ड्राइवर की बात सुनकर वह सोफे पर धम्म से गिर पड़ी, राघवेन्द्र को पत्रकार की हत्या के साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने और उन्हें छुपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था।
रागिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कुछ सोचकर उसने अपने देवर पुष्पेन्द्र को फोन करके सारी बातें बताई, दूसरे दिन सुबह पुष्पेन्द्र अपनी मां गायत्री देवी के साथ रागिनी के घर पहुंच चुका था। मां को रागिनी के पास छोड़कर पुष्पेन्द्र राघवेन्द्र के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करके शाम को वापस आया और चुपचाप बैठ गया।]
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” क्या हुआ पुष्पेन्द्र तुम्हारे भैया कहा है?”रागिनी पुष्पेन्द्र से सवाल करते हुए बोली।”भाभी भैया का छूटना बहुत ही मुश्किल है, उनके खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, जिसमें उनके पुराने केसों की भी जांच हो रही है,अब कोई कुछ नहीं कर सकता?
“पुष्पेन्द्र चिंतित होते हुए बोला।”कैसे कोई कुछ नहीं कर सकता,उनकी बड़े-बड़े लोगों से जान पहचान है,वो छुड़ा लेगे उनको।” रागिनी अहंकार दर्शाते हुए बोली।”रागिनी! तुम्हारे इसी घमंड की वजह से आज राघवेन्द्र का यह हाल हुआ है,
गलत राह से रोकने के बजाय तुमने उसे उस पर चलने के लिए हरदम प्रेरित किया है?” कहते हुए गायत्री देवी रोने लगी।”आप लोग मुझे ही दोष देंगे मैं जानती हूं, मुझे किसी की जरूरत नहीं है, मैं खुद छुड़ा लूंगी उनको?” रागिनी चिल्लाते हुए बोली। गायत्री देवी आंखों में आसूं लेकर चुपचाप पुष्पेन्द्र के साथ अपने घर वापस चली गई।
एक महीने बीत चुके थे, रागिनी की लाख कोशिशों के बावजूद कोई भी उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया,जो लोग कल तक उनके आगे पीछे घूमते थे,वे भी उससे दूरी बनाने लगे, रागिनी को धीरे-धीरे हर उस गुनाह का आभास हो रहा था,
जिसमें वह राघवेन्द्र की भागीदार थी,जिसकी सजा आज अकेले राघवेन्द्र भोग रहा था। रागिनी कमरे में अकेले बैठी चुपचाप अपने कर्मों के बारे में सोच रही थी,तभी डोर बेल बज उठी। रागिनी दरवाजा खोलते ही चौंक गयी सामने अवैध सम्पत्ति व अन्य दस्तावेजों की जांच करने के दो गाड़ियों में भरकर जांच दल के सदस्य आए थे,
रागिनी और बच्चों को घर से बाहर कर दिया गया, कुछ घंटों तक रागिनी का घर खंगालने के बाद पूरा घर सील कर दिया गया। रागिनी अपने महल नुमा घर से बेदखल हो चुकी थी, उसके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं थी वह फूट-फूट कर रो रही थी।
गायत्री देवी बेटे के गम में बीमार हो गयी थी, पुष्पेन्द्र और उसकी पत्नी रजनी उन्हें संभालने का प्रयास कर रहे थे, गायत्री देवी यह पहले ही जान चुकी थी की एक दिन राघवेन्द्र के साथ ऐसा होना तय था,जो आज उसके सामने था।
घर के बाहर दरवाजे पर रागिनी आकाश और नीलिमा को देखकर पुष्पेन्द्र चौंक उठा हरदम अपनी अकड़ और घमंड में चूर रहने वाला उसकी भाभी रागिनी का घमंडी चेहरा मुरझा चुका था, आंखों में आसूं छलक रहें थे, आकाश और नीलिमा दहशत में डूबे हुए नजर आ रहे थे।”अम्मा! भाभी आई है।” पुष्पेन्द्र गायत्री देवी से बोला।”राघवेन्द्र भी आया है?
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” नहीं अम्मा!भाभी और बच्चे हैं।” पुष्पेन्द्र उदास होते हुए बोला। “अम्मा! मुझे माफ़ कर दो, मैंने अपने ही हरे -भरे घर को लालच ईष्र्या और घमंड के वशीभूत होकर आग के हवाले कर दिया,अब मेरे पास कुछ भी नहीं है।” कहकर रागिनी फूट-फूट कर रो रही थी। आकाश और नीलिमा भी जोर -जोर से रोने लगे।
“रागिनी अगर तुमने राघवेन्द्र को उसके कर्तव्यों को निर्वाह करने के लिए प्रेरित किया होता तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता,ना एक मां अपने बेटे के लिए तड़पती,ना यह बच्चे अपने पिता के कर्मों से पीड़ित होकर अपना मुंह छुपाते,हर गलत काम का एक दिन अंत जरूर होता है, और उसकी सजा भी भुगतनी पड़ती है,यही सच है।
” कहकर गायत्री देवी ने आकाश और नीलिमा को गले लगा लिया। रागिनी का घमंडी चेहरा मुरझाकर पीला पड़ चुका था, उसके मन-मस्तिष्क में एक ही सवाल गूंज रहा था,जो शायद वह ही जानती थी,वह अपनी नजरों में ही खुद को गिरा हुआ महसूस कर रही थी, और यही सोच रही थी कि उसके गुनाहों की सजा उसे भी मिलना चाहिए सिर्फ राघवेन्द्र को नहीं।
#घमंड
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ
हत्यारे जैसे जघन्य अयराधी को बचाने की सजा सही मिली। पत्नी का अहंकार, घमंड चूर चूर हो गया। अच्छी शिक्षाप्रद कहानी।
Nice