शालीमार बाग़ में आशा के घर के सामने वाला घर, सोनिया ने खरीदा था। यह एक दिल्ली का पॉश इलाका माना जाता है। सोनिया ने आशा के घर की घंटी बजाई। आशा ने जब दरवाजा खोला तो देखा कि सामने एक सुंदर किंतु साधारण, बालों में तेल लगा हुआ और एक चोटी बनाई हुई, महिला खड़ी है, यही थी सोनिया।
साधारण सा सूट पहना हुआ था। उसने अपना परिचय दिया ,” भाभी, मैं सोनिया हूं आपके सामने वाला घर हमने खरीदा है और मुझे एक जरूरी फोन करना है क्या आपके यहां से कर लूं?”
आशा-“हां हां क्यों नहीं, आइए फोन कीजिए।”
आशा मन ही मन खुश हो रही थी कि एक अच्छी पड़ोसन उसे मिल गई। धीरे-धीरे मकान में काम होता रहा और थोड़े समय बाद सोनिया अपने पति और दो बच्चों के साथ घर में रहने आ गई। दोनों बच्चे सात और आठ साल की आयु के थे।
इस घर में शिफ्ट होते ही मानो सोनिया के पति का भाग्य ही खुल गया था। उसका टूर एंड ट्रेवल का काम जोरों शोरों से चल रहा था। देखते ही देखते यह लोग मध्यमवर्गीय से उच्च वर्गीय बन गए और फिर सोनिया के हाव भाव तो देखते ही बनते थे।
उसके हवा में उड़ते कटे हुए बाल, रोज पार्लर जाना, स्कर्ट और जींस पहनना, उसका रहन-सहन बिल्कुल बदल चुका था। उसने कार चलाना भी सीख लिया था। इंसान का पहनावा बदले तो बदले लेकिन व्यवहार बदल जाए, तो बड़ा अजीब लगता है।
सोनिया घमंडी हो चुकी थी और उसकी मांगने की आदत बहुत खराब थी। रोज कुछ ना कुछ मांगती रहती थी, कभी चाय पत्ती, बेसन, चीनी, साबुन, मतलब घर की हर चीज क्योंकि उसे पता ही नहीं होता था कि उसके घर में क्या है क्या नहीं।
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आशा भाभी से कहती-“आप तो कहीं जाती ही नहीं हो। मैं तो अपने बच्चों को खूब घुमाती हूं। कभी स्वर्ण जयंती पार्क, कभी मॉल, कभी शॉपिंग तो कभी मूवी। चाहो तो आप अपने बेटे को भी हमारे साथ भेज दिया करो।”
आशा-“नहीं सोनिया, बच्चों का बहुत ध्यान रखना पड़ता है इसीलिए जहां ले जाना होगा, हम उसे खुद ही ले जाएंगे। तुम भी जहां जाओ बच्चों का ध्यान रखा करो।”
सोनिया-“भाभी कल आप मेरे बच्चों को स्कूल से आने पर अपने पास बिठा लेना। मैं डांस सीख रही हूं तू मेरा स्टेडियम में परफॉर्मेंस है। यह काली ड्रेस देख रही हो ना आप बहुत महंगी है, उसी परफॉर्मेंस के लिए खरीदी है।”
आशा-“हां ठीक है अच्छी है।”
अगले दिन)सोनिया-“अच्छा किया भाभी आपने बच्चों का ध्यान रखा, देखो मुझे आने में कितनी देर हो गई।”
सोनिया (अगले दिन)-“भाभी, मैं स्विमिंग सीखने के लिए जा रही हूं। आप को चलना है क्या?”
आशा-“सोनिया, तुम कैसे स्विमिंग ड्रेस पहन लोगी, क्या तुम्हें अजीब नहीं लगेगा सबके सामने?”
सोनिया-“भाभी वहां कौन से मेरे रिश्तेदार बैठे हैं, जिन्हें देखना है देखें, भाड़ में जाए मेरी बला से।”
थोड़े दिन बाद) सोनिया-“भाभी, कल से मैं टीचर ट्रेनिंग के लिए जा रही हूं। मेरे पति कह रहे हैं कि कुछ ढंग का काम कर ले, घर में रोटी बनाने से क्या होगा। रोटी तो मेड भी बना लेती है।।”
आशा-“टीचर ट्रेनिंग करने के बाद जॉब करोगी?”
सोनिया-“जॉब तो मेरे बस की नहीं है, टीचर ट्रेनिंग के बहाने घर से निकलना तो होगा।”
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टीचर ट्रेनिंग पूरी हो गई और सोनिया अब घर पर थी पर उसका घर में मन नहीं लगता था। घर के सामानों में क्या कुछ खत्म है, कौन सी दालें घर में पड़ी है, सिलेंडर को लगाए हुए कितने दिन हो गए या फिर घर में साबुन है या नहीं उसे कुछ पता नहीं होता था।
आए दिन उसके पति के चिल्लाने की आवाज आती थी लेकिन सोनिया के कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी।
वह सुबह दोनों बच्चों को दूध या चाय
कुछ नहीं देती थी। वह रोज उन्हें ₹10 पकड़ा कर कहती थी की स्कूल में जो मशीन लगी है वहां से पी लेना।
धीरे-धीरे समय बीतता गया, बच्चे बड़े हो गए । फिर आया एक मुसीबत भरा काल “कोरोना काल।”इस मुश्किल भरे समय में कई लोगों ने अपनी जिंदगी गवां दी और कई लोगों ने अपनी जमा पूंजी और साथ-साथ अपने व्यवसाय भी।
ऐसे ही सोनिया के पति का टूर एंड ट्रैवल का काम भी खत्म हो गया। सोनिया को तो अमीरी की आदत लग चुकी थी, अब उसे बहुत मुश्किल समय नजर आ रहा था।
पैसा जोड़ना तो उसने सीखा ही नहीं था। बेटी को पढ़ने के लिए विदेश भेजा था, उसकी पढ़ाई खराब ना हो इसीलिए मकान बेचकर बेटी को आगे पढ़ने के लिए भेजा और खुद किराए के घर में शिफ्ट होना पड़ा।
भगवान ऐसे दिन किसी को ना दिखाए क्योंकि दुख के बाद अगर सुख आता है तो बहुत खुशी देता है और अगर सुख के बाद दुख आए तो इंसान बर्दाश्त नहीं कर पाता। सोनिया जो हर पल आसमान में उड़ती रहती थी अब जमीन पर आ चुकी थी और उसका घमंड टूट चुका था।
स्वरचित, अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली