आज परदेश की भूमि पर हिन्दी के सम्मान में एक भव्य आयोजन रखा गया था । यह अमराती मुल्क का दुबई शहर था। प्रमुख सभागार में जैसे ही सुप्रसिद्ध कवयित्री स्वाति ने मंच पर पदार्पण किया, सम्पूर्ण सभागार करतल ध्वनि से गूंज उठा।
स्वाति के हिन्दी काव्य पाठ ने उपस्थित सभी श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। मग्नमुग्ध होकर श्रोता सुनते रहे थे। अंत में सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान प्राप्त कर स्वाति अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही थी। यकायक वह विचारों में खो गई ,उसके स्मृति पटल पर अतीत के पन्ने एक एक करके खुलने लगे…
कुछ वर्ष पूर्व वह शेखर की दुल्हन बनकर मुम्बई महानगर में आई थी। शेखर एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी में उच्च पद पर था। स्वाति उत्तर भारत के छोटे से शहर की B A पास लड़की थी।
थोड़े समय सब ठीक चलता रहा। स्वाति घर सुचारु रूप से चलाती, घर के सभी सदस्यों का पूरा ख्याल रखती और खाली समय में हिन्दी पत्र पत्रिकाएं पढ़ती।
शेखर स्वाति की तुलना ऑफिस की आधुनिक लड़कियाँ से करता जो हमेशा आंग्ल भाषा में बात करतीं। शेखर अंग्रेजी को ही अपनी उन्नति का साधन मानता। हिन्दी उसे हमेशा कमतर
लगती। वह स्वाति से कहता …हिन्दी गवारों की भाषा है और गंवार कहकर स्वाति पर कटाक्ष करता। उसे ऑफिस की पार्टियों में भी स्वाति को ले जाने में शर्म आती क्योंकि वह हिन्दी में बात करती। उसे अपनी फर्राटेदार अंग्रेजी और पद का बहुत घमंड था।
इसी अंहकार के कारण दोनों की दूरियां बढ़ती गईं। अपने मन की बात पति से न कह पाती। वह हमेशा पति द्वारा उपेक्षित महसूस करती।शेखर अक्सर कम्पनी के काम से विदेश में ही रहना पसंद करता।उसे पत्नी की कोई परवाह न थी।
स्वाति समझ गई कि उसके पति को पद, भाषा और योग्यता के मद ने जकड़ लिया है।अब उसे अपनी मृतभाषा का तिरस्कार करने में भी हिचकिचाहट नहीं होती है । स्वाति ने अपनी और हिन्दी भाषा की जीवंतता के लिए कुछ करने का निश्चय किया।’
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अपने दृढ़निश्चय और कठिन परिश्रम से स्वाति ने कुछ सालों में एम. ए (हिंदी) और पीएच. डी कर ली। शहर के एक महाविद्यालय में उसे प्रवक्ता पद के लिए नियुक्ति मिल गई । अब वह विद्यालय के द्वारा मिले मकान में रहते लगी।
हिन्दी के हर समारोह में स्वाति बढ़चढ़कर भाग लेती।हिन्दी भाषा पर उसे अद्भुत आधिपत्य प्राप्त था। कविता,छंद,मुक्तक, दोहा आदि लिखने में उसे महारथ प्राप्त थी।वाग्देवी ने बेमिसाल कंठ दिया था।
उसकी प्रतिभा को देखकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों में स्वाति को आमंत्रित किया जाने लगा। अनगिनत सम्माऩ उसके दामन की शोभा बनते गए।
उसकी प्रसिद्धि और काबिलियत को देख सुनकर कई फिल्म निर्माताओं के द्वारा फिल्मों में गाना लिखने के प्रस्ताव भी स्वाति के पास आने लगे। उसके द्वारा लिखे गए गीत लोगों को द्वारा बहुत पसंद जाने लगे। आज उसकी सफलता गवार समझने वाले लोगों के मुंह पर थप्पड़ थी।
दूसरी तरफ करोना काल में पद और हिन्दी को कमतर आंकने वाले शेखर को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। काफी समय से कोई नौकरी न मिली, दुबई में एक दोस्त के पास नौकरी की तलाश में आया था,परन्तु यहां भी शेखर को सफलता न मिल सकी।
परदेश की ज़मीन पर आज स्वाति और शेखर आमने सामने खड़े थे। जहां एक ओर हिन्दी के कारण स्वाति के साथ फोटो खिंचाने वालों की होड़ लगी थी और दूसरी ओर घमंडी शेखर किंकर्तव्यविमूढ़ हो एकांत में निहार रहा था था। स्वाति पर अपने द्वारा किए गए व्यवहार से पछता रहा था।
स्वाति के कान में उसकी मां के द्वारा कहे गए शब्द गूंज रहे थे…बेटा! हमेशा अपनी भाषा और जड़ों से जुड़े रहना… पद,ऐश्वर्य, योग्यता के घमंड से सदा दूर रहना… यह घमंड की आग कभी कभी रिश्तों को खाक कर देती है… बेटा ! सफलता की शिखर पर पहुँचकर भी कभी किसी को कमतर न आंकना…
आज दुबई के वातानुकूलित हॉल में शेखर पश्चाताप की आग में जल रहा था। उसके घमंड की आग पूरी तरह शांत हो चुकी थी, बुझ चुकी थी….
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स्व रचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)
#घमंड