रिद्धिमा बहुत जिद्दी और बदतमीज लड़की थी, देवी शंकर जी ने लाड प्यार में उसे इतना बिगाड़ दिया था कि वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी। समय उपरांत देवी शंकर जी ने उसकी शादी बहुत ही कुलीन और संस्कारित परिवार में यह सोचकर करवा दी कि शायद वहां रहने से रिद्धिमा सुधर जाए।
किंतु रिद्धिमा जैसी थी वैसी ही रही, वह अपने पति और ससुराल वालों को अपने आगे कुछ नहीं समझती थी। इस बार रिद्धिमा अपने भाई ऋषि की शादी के लिए जब 15 दिनों के लिए मायके आई तो पूरा महीना बीत जाने के बाद भी ससुराल जाने का नाम नहीं लेती थी। माता-पिता सब परेशान हो गए। उधर रिद्धिमा के ससुराल वाले भी रोज अपनी बहू को भेजने के लिए फोन करते किंतु रिद्धिमा की एक शर्त थी…
वह चाहती थी कि वह अपने पति को साथ लेकर अलग हो जाए और अपने मायके के बगल में घर ले ले, ताकि उसे कुछ भी नहीं करना पड़े और वह अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जी सके, पर रिद्धिमा का पति निलेश बहुत समझदार था, वह रिद्धिमा की बचकानी बातों में नहीं आया और उसने कह दिया की “यह घर तुम्हारा भी है” अगर तुम्हें आना हो तो आकर इसी घर में रहो वरना मैं नहीं अलग होने वाला, और फिर गुस्से में रिद्धिमा अपने मायके में ही रहने लगी!
किंतु यहां भी उसकी जिद्द और बदतमीजी की वजह से उसकी नई आई भाभी सलोनी बहुत परेशान रहने लगी! सलोनी बहुत ही समझदार और प्यारी बच्ची थी! एक दिन किसी बात पर रिद्धिमा ने अपनी भाभी के ऊपर हाथ उठा दिया, अब सलोनी के बर्दाश्त के बाहर की बात हो गई और उसने अपने पति और सास ससुर से कह दिया कि वह अब इस घर में नहीं रह सकती! तब देवी शंकर जी ने अपनी बहू सलोनी से कहा….
सलोनी बेटा.. तुम कहीं नहीं जाओगी, यह घर तुम्हारा भी है! अगर किसी को परेशानी है तो वह यहां से जा सकता है, उनका इशारा अपनी बेटी रिद्धिमा की ओर था और देवी शंकर जी की इस बात का किसी ने भी विरोध नहीं किया! यह देखकर रिद्धिमा समझ गई कि अब उसकी दाल यहां नहीं गलने वाली।
घमंड में जीने वाली रिद्धिमा का घमंड उस दिन टूट ही गया जब उसे लगा अब उसके मायके में उसकी कोई कदर नहीं रही, इससे अच्छा तो उसके ससुराल वाले थे जो उसकी इतनी बदतमीजी सहन करने के बाद भी उसे वापस बुलाना चाह रहे थे, शायद रिद्धिमा को अपनी गलतियों का एहसास हो रहा था, और उसने अपनी भाभी से माफी मांगते हुए अपने घर वालों से कहा….
भाभी यह घर तुम्हारा ही है और आज से मैं भी अपने ससुराल में उसी तरह रहूंगी जिस तरह यहां आकर आप रही हो। मैं भी आपकी जैसी सुयोग बहू बनने की कोशिश करूंगी। उस के फैसले से पूरा परिवार खुश था और अगले ही दिन वह वह अपने भाई ऋषि के साथ अपनी ससुराल चली गई और आज उसे अपना ससुराल पहली बार अपना लगने लगा।
हेमलता गुप्ता स्वरचित
यह घर तुम्हारा भी है