आज मौली की बरसी है ।उसे गये एक साल बीत चुके हैं ।समय कितना जल्दी अपनी यात्रा पूरा करता है, यह उसकी जेठानी आभा को पता चल रहा है ।बरसी की तैयारी जोर शोर से चल रहा है ।परिवार के बहुत सारे लोग जुटे हुए हैं ।
मौली के पापा बहुत पहले गुजर गए थे ।सिर्फ माँ हैं ।वह भी आई हुई है ।उनका रूदन अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है ।आखिर वह माँ है ।बेटी का जाना बहुत बड़ी तकलीफ की बात होती है ।रूपसी आभा को भी तो बहुत घमंड था अपने रूप पर ।
पूरे दान दहेज के साथ रूप गर्विता आभा जब शादी के बाद आई थी तो पूरे परिवार पर अपनी धाक जमाने लगी थी ।सास को भी तो बहुत घमंड था ।है किसी की बहू इसके जैसा? आभा भी समझ गई थी कि अब यहाँ अच्छी तरह सब पर राज कर सकती है ।
थोड़े दिन के बाद ही वह सब कुछ अपने मन के मुताबिक करने लगी थी ।रसोई से लेकर घर की हर वयवस्था तक।सास की दुलारी अब दुलार का नाजायज फायदा उठाने लगी थी ।ससुर भी सीधे सादे थे ।थोड़े दिन के बाद वह भी गुजर गए थे ।
जब मन होता रसोई बनाती ।और अपने कमरे में टीवी देख कर खाना खा कर सो जाती।घर का सारा काम अब सास पर होता ।वह भी थक कर चूर हो जाती ।बेटा दिनेश भी पूरा पत्नि के वश में हो गया था ।
सास मालती को लगा छोटे अशोक की शादी कर देती हूँ तो शायद मेरे दुख दूर हो जायेंगे ।फिर अच्छी तरह देख भाल कर मौली से अशोक की शादी हो गई ।मौली ठीक धागे की तरह परिवार को एक सूत्र में पिरो सकने वाली कन्या थी।
सीधी सादी ।शान्त, समझदार ।गेहूंआ रंग, तीखे नाक नक्शे वाली आकर्षक ।घर के काम में भी होशियार ।मालतीदेवी जब भी मौली के गुणगान करती, आभा चिढ़ जाती ।अपने गोरे रंग का बहुत गुमान था उसे ।
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अब वह मौली के बुराई खोजकर नीचे गिराने का प्रयास करती रहती ।मौली चुप रहती ।माँ बाबा ने बहुत अच्छे संस्कार जो दिए थे ।आभा को अब याद आ रहा था ” कितनी अच्छी थी वह ,मैंने ही उसे कभी अपनापन नहीं दिया ।
उसदिन जब वह एक सूट खरीद कर अपने लिए लाई थी और आभा को दिखाया तो कैसे आभा ने मुँह बनाकर कहा था ” तुम पर तो सूट कभी अच्छा नहीं लगता है ” कोई कपड़ा जचता ही नहीं तुम पर ” कैसे देवर जी ने तुम को पसंद कर लिया?
आकर्षण नाम की कोई बात ही नहीं है तुम में ” मौली चुप चाप अकेले में रो लेती ।पति थे तो सहारा थे।कभी दुख सुख सुनाने की कोशिश करती तो वह भी मना कर देते ” अब रहने दो भी, घर की बातें, मुझे सुनना अच्छा नहीं लगता है “
कभी अपनी अम्मा से कहती तो वे भी समझा देती ” बेटा परिवार में तो यह सब लगा ही रहता है ।इन बातों को नजर अंदाज कर लेना ।परिवार में ऊचनीच चलता रहा ।सास भी बड़ी बहू के आगे दब गई ।एक दिन ससुर जी सोए तो फिर उठे ही नहीं ।
छः महीने के बाद पति भी एक एक्सीडेंट में चल बसे ।मौली ने रो धो कर अपने आँसू पोंछ लिए ।एक बेटा है ।अब उसी के लिए जीना है ।यही सोच कर नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।बेटे को खूब अच्छा से शिक्षा दिलाने के लिए प्रयास रत हो गयी ।
फिर समय भागता रहा ।बेटा भी इन्जीनियर बन गया था ।समय पर उसकी भी शादी करवा दी।घर में सास ,जेठ जेठानी और वह खुद रह गई ।बेटा भी नौकरी पर चला गया ।बहुत खूब सूरत और प्यारी मिली थी ।मौली बहुत खुश हो गई थी ।
वह भी शादी ब्याह का लेन-देन और हिसाब किताब निबटा कर बेटे के पास चली जायेगी ।समय पलटता गया ।आभा के चेहरे पर सफेद दाग ने अपना असर दिखाना शुरू किया ।जिस सुन्दरता का घमंड था वह चूर चूर हो रहा था ।बहुत जगह इलाज कराया ।
पर वह बढ़ता ही गया ।आभा को भी लगता था कि कभी मैंने मौली को अपना नहीं समझा ।हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करती रही ।हमेशा अपने सुन्दरता के घमंड में चूर रही ।आभा का बेटा भी माँ से दूर रहने लगा ।
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वह रोज ईश्वर से प्रार्थना करती ” हे ईश्वर मुझे माफ कर देना ” मैंने छोटी बहन जैसी मौली का बहुत अनादर किया ।लेकिन कहते हैं न कि समय सबका बदल जाता है ।मौली के लिए बेटा बहू ने टिकट भेज दिया “
अम्मा, दस तारीख की टिकट है, आ जाना ” जाने की तैयारी होने लगी ।और फिर खुशी के अतिरेक को मौली सह नहीं पाई ।रात को जो सोई तो फिर उठी ही नहीं ।आभा का रो रो कर बुरा हाल था ।ईश्वर ने माफी के लायक भी नहीं छोड़ा ।
” मै ही सबसे बड़ी पापी हूँ ” मौली की अर्थी सज गई ।अम्मा बेहोश हो गई थी ।होश आया तो दिमाग सही नहीं रहा ।बेटी को देख कर गाने लगी ” खुशी खुशी कर दो विदा, कि रानी बेटी राज करेगी—- ” और मौली चली गयी—- आभा का घमंड टूटा ? पता नहीं ।” उमा वर्मा ” ,नोएडा ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।