ढलती सांझ – शशि शर्मा : Moral Stories in Hindi

हरिद्वार – मायके, गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने गुड़िया को लेकर आयी थी। खाना खाने के बाद गुड़िया को सुलाकर छत पर चली गयी। अँधेरा हो चुका था, छत पर टहल रही थी कि अचानक आवाज़ सुनाई दी – गुड्डू बेटे नीचे आ जा। नहीं नानी मैं नीचे नहीं आऊँगा, आप रोज़ कहती हो मम्मा आ जायेगी, वो कब आएगी नानी, पापा भी कभी- कभी मिलने आते हैं – गुड्डू बोला। धीरे- धीरे सीढ़ियाँ चढ़कर, नीरा का ममी ऊपर आकर, को नीचे ले गयीं। मन में कशमश थी, नीचे आकर माँ ने बताया, गुड्डू और प्रकाश यहीं पर रहते हैं। मेरी आँखों में पानी भर आया, सोचा दर्द को पन्ने पर उतारूँ तो शायद कम होगा। 

नीरा और मैं बचपन की सहेलियाँ, ख़ूब बातें करते, नीरा बढ़ा खिलखिलाकर हँसती थी, चुलबुली, घर के कामों में होशियार। बी. ए. पास करते ही उसकी शादी तय हो गयी। मुझसे कहती थी – बाबूजी ये गाना सुनकर रो पढ़ते हैं – बाबुल की दुआएँ लेती जा, तुझको सुखी संसार मिले। शादी नीरा की बढ़े धूमधाम से हुई।

उसको उसके सपनो का राजकुमार मिल गया। बढ़ी ख़ुश रहती थी। जल्द ही उसकी गोद भर गयी, उसको प्यारा सा बेटा हुआ, बहुत ख़ुश, प्यार से बेटे को गुड्डू बुलाती थी। प्रकाश और गुड्डू को पाकर बहुत ख़ुश थी। धीरे- धीरे वो उदास रहने लगी। पिछली छुट्टियों में जब मैं मायके आयी थी तो उसने बताया, प्रकाश बहुत अच्छे हैं, मेरा ख़याल रखते हैं। बस माजी दहेज का ताना देती रहती हैं, कि तेरे पापा ने गाड़ी का वादा किया था, अभी तक क्यूँ नहीं दी। प्रकाश काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं, तो मुझे पीछे से परेशान करतीं हैं। गुड्डू को भी कमरे से बाहर निकाल देती हैं। 

अभी तो हम ठीक से बातें भी नहीं कर पाये थे, कि सुना उसकी सास हरिद्वार घूमने आ रही हैं। नीरा अपनी सास और प्रकाश के साथ ऋषिकेश घूमने गई।

पिछले साल का वो दिन चलचित्र की तरह मेरी आँखों के सामने खड़ा होगया। हम सब मन्दिरों के दर्शन और गंगा स्नान करके लौटे थे की गली में भीड़ जमा देखी, हाहाकर मचा था, नीरा के घर से रोने की आवाज़ें आ रही थी। मन आशंका से भर उठा, भाभी बच्चों को घर के अंदर ले गयीं। मैं और माँ नीरा के घर में घुसे तो,

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पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। सामने मेरी सहेली नीरा धरती पर मृत पड़ी थी। दिल चीत्कार उठा। उसे शादी का जोड़ा पहनाया गया, प्रकाश बेसुध हो रहा था, नीरा कि माँग भारी उसने। वो दिन, वो पल, समय रुक गया था।जिस आँगन से उसकी डोली उठी थी, उसी आँगन से उसकी अर्थी उठी, कितना दर्दनाक था वह दृश्य…

नीरा के माता पिता का कलेजा टूट चुका था, सबका बुरा हाल था। ईश्वर उस परिवार को दुःख सहने की शक्ति दे, पर सब आसान नहीं होता वक़्त पर छोड़ना पढ़ता है। वक़्त मरहम लगाता है, कोई कुछ नहीं कर सकता।

दिल में दर्द और आँसू लिये कुछ दिन बाद मैं भी ससुराल चली गई। मन नहीं लग रहा था। आज एक साल बाद दिल को सन्नाटा सा चीर रहा है। गुड्डू की आवाज़ ने अंदर तक हिला दिया, सोचा माँ से पूछूँ तो दिल हल्का हो। माँ ने बताया पानी में नीरा का पैर फिसल गया था, पत्थर से टकरायी तो आँखों की रोशनी जाती रही। अस्पताल में दम तोड़ने से पहले, अंदर माँ- बाबूजी को बुलाया और एक ही रट, बाबूजी प्रकाश बहुत अच्छे हैं। बाबूजी

हाथ जोड़ती हूँ, अपने ही आँगन से अंतिम विदाई देना माँ, माँ गुड्डू को अपने पास रखना। तब से प्रकाश अपने घर नहीं गया, यहीं सास – ससुर के संग रहता है। अपने बेटे जैसा ध्यान रखता है। गुड्डू का ध्यान आते ही मेरी क़लम आगे नहीं लिख पा रही। फ़ूल स बच्चा मुरझा गया। मेरी सहेली नीरा सबकी आँखों में नीर भरकर, असमय ही चली गयी।तेरी याद साथ है …

सीख – स्थिति से माता पिता को अवगत कराते रहना चाहिया।

 ~ स्वरचित/ शशि शर्मा

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