जेनरेशन गैप – शिप्पी नारंग : Moral stories in hindi

हरदीप सिंह जी पार्क में बेंच पर बैठे हुए विचारों के सागर में गोते लगा रहे थे उन्हें देखकर ही लग रहा था कि कितना मंथन चल रहा होगा दिल-ओ-दिमाग में।  अचानक कंधे पर एक हाथ पड़ा किसी का उन्होंने एकदम चौंक कर देख सामने बचपन के दोस्त सुरेंद्र जी खड़े थे । “आओ आओ मैं इंतजार ही कर रहा था।”

सुरेंद्र जी भी वहीं बैठ गए दोनों लगभग 66-67 की उम्र के होंगे उसी मोहल्ले में रहते हुए दोनों को लगभग 60 साल से ज्यादा का समय हो गया था यानी बचपन जवानी साथ-साथ गुजारी शादी भी आगे पीछे हुए बच्चे भी हुए फिर उनकी शादियां सब कुछ साथ-साथ ही हुआ यानी कुल मिलाकर दुख सुख साथ गुजारा और अब दोनों नाना दादा की पदवी को सुशोभित कर रहे थे ।

हरदीप सिंह जी की दो बेटियां हैं और दोनों की शादियां हो गई ।सुरेंद्र जी के भी दो बच्चे हैं बेटे की शादी हो गई और एक पोता भी है बेटी की शादी भी 6 महीने बाद तय है यानी कुल मिलाकर जिंदगी के गाड़ी चल रही है । सुरेंद्र जी ने बैठते हुए पूछा – “क्या सोच रहा है यार,  कुछ प्रॉब्लम है तो बताओ।” 

“अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं बस सोच रहा हूं कि कब तक ऐसा चलेगा मैं अब सच में थक चुका हूं ।  तू बता यार 67 का हो गया हूं,  अमरदीप भी 65 की हो चुकी है वह भी अब धीरे-धीरे ढीली होती जा रही है । पैरों में उसके दर्द रहने लगा है । लोअर बैक की उसे प्रॉब्लम है। दार जी (ससुर जी) समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं।

92 साल के हो जाएंगे अगले महीने । बिस्तर से उठ नहीं सकते एक सहायक भी रखा हुआ है दिन में आता है रात को 8:00 बजे चला जाता है।  अब कितनी बार उन्हें बोला है कि हमारे साथ चलो,  घर में हमारे साथ रहो हमें भी मुश्किल हो रही है, पर नहीं जी.. मानना ही नहीं है । ‘नहीं मैं कहीं नहीं जाऊंगा, अपने घर में ही रहूंगा मुझे कहीं नहीं जाना।’

अब अमरदीप वहां रहती है मैं शाम को जाता हूं रात बिता कर सुबह घर वापस आता हूं यहां भी घर को अकेला नहीं छोड़ सकता। मान्या (नातिन) स्कूल के बाद इधर आती है।  बेटी दामाद तो अपने ऑफिस जाते हैं शाम को जब वे उसे घर ले जाते हैं तो मैं जाता हूं नोएडा क्योंकि यही लगता है कि रात बिरात कुछ हो गया तो बेचारी अमरदीप कहां भागेगी…?”

  “तो फिर दार जी को मनाओ ना ” सुरेंदर जी बोले । “अरे मना मना कर थक गए हैं बेजी जब तक थी तो सब ठीक चल रहा था बस अमरदीप के रिटायर होने के 2 साल बाद बेजी भी चली गई।  पिछले 3 सालों से यही चल रहा है । अमरदीप के बाकी दो भाई बहन देश से बाहर हैं दो-दो साल तक आते नहीं है जब भी आएंगे यही सुनाएंगे… दीदी जीजा जी तो आराम से है बेटियों की शादी कर दी है,  पेंशन दोनों की अच्छी खासी आती है, 

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घर अपना है तो उन्हें क्या फिक्र है नज़रे दार जी के मकान पर लगी हैं । मदद के नाम पर एक पैसा नहीं देंगे अपना रोना रोते रहेंगे । ‘हमारे अपने ही खर्च बहुत है,  क्या करें यही रटते रहते हैं ।जायदाद में से हिस्सा चाहिए वह तो उनका हक है । चलो मुझे तो उसमें भी कोई प्रॉब्लम नहीं है रब ने बहुत दिया है सिर पर लाद कर तो ले जाना नहीं है पर अब सच में मुझे अमरदीप पर दया आने लगी है बेचारी इस उम्र में पिस रही है।”  हरदीप सिंह जी  ने बेचारगी से कहा ।

“तब क्या सोचा है…?”  सुरेंद्र जी ने पूछा । “पता नहीं यार सोचने को क्या रहे गया है।  रब पर ही सब छोड़ दिया है, पर यार मैं तो सोचता हूं गलत कौन है शायद सभी या कोई भी नहीं । अब देख दार  जी इस उम्र में अपना घर नहीं छोड़ना चाहते तो वह सही है।  सारी उम्र उन्होंने उसे घर में निकाली ।अपने हाथों से उन्हें बनवाया एक-एक ईंट अपने सामने लगवाई । जब मैं इस उम्र में इस घर से इमोशनली अटैचे हूं तो वह तो होंगे ही ना ।

पर फिर सोचता हूं वक्त के साथ इंसान को बदल जाना चाहिए हम आज की पीढ़ी को खोजते रहते हैं और वह हमें जेनरेशन गैप तो हमेशा रहेगा । हमारे मां-बाप का साथ हमारा था,  हमारे बच्चों को हमारे साथ और आगे उनका उनके बच्चों के साथ । सबको लगता है हम ही समझौता कर रहे हैं । मुझे याद है जब मेरी बेटियां हुई थी तो बेजी भापा जी ने मना कर दिया ‘हम बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते, अपने आप देखो’  तेरे सामने है यार सब कुछ ।

अमरदीप सुबह 6:30 बजे स्कूल के लिए निकल जाती थी, मैं बच्चों को क्रैच छोड़कर बैंक जाता था । अमरदीप 3:00 बजे घर आकर खाना बनाती थी,  घर का बाकी काम करती थी, बच्चों को भी देखती थी फिर भी सुनती थी… हमें रोज खाना देर से मिलता है । कभी यह शिकायत तो कभी वह शिकायत लेकिन सेवा किसने की…?

  बाकी मेरे भाई-बहन आते थे दो दिन रुकते थे चले जाते थे अमरदीप ने कभी मुझसे कुछ कहा नहीं पर मैं तो देखता था ना.. अब हमारी कौन कर रहा है बस भापा  जी ने एक काम जरूर अच्छा किया कि अपने होते हुए सबको अपना-अपना हिस्सा दे दिया अब उसमें भी भाई बहनों को तकलीफ हुई ।  अब अमरदीप के भाई बहन को लगता है उस घर पर बहन कब्जा कर लेगी ।  जब भी आएंगे या फोन पर बात करेंगे दार जी भूल न जाना आपके दो बच्चे और भी हैं ।

वह तो चाहते हैं दार जी हमारे साथ आ जाएं और वह मकान बेच दें और उन्हें उनका हिस्सा दे दें ।  हम भी चाहते हैं दार जी हमारे पास आ जाए । हम भी रोज-रोज के आने-जाने से थक चुके हैं। पर दार जी जी मानते नहीं है तो क्या करें …!” हरदीप सिंह ने बात खत्म की । “वह तो सब ठीक है पर तुझे नहीं लगता कि हमारी जनरेशन ही सब भुगत रही है पहले मां-बाप की सेवा की,  अब बच्चों की कर रहे हैं । बच्चे मस्त हैं घर बने बनाए मिल गए, हैं गाड़ियां भी बनी बनाई मिली हुई हैं ।

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अब बच्चों की ख्वाहिशों को तो कोई अंत नहीं है जब तब कहते रहेंगे अब तो बड़ी गाड़ी लेनी है और मैं तो कह देता हूं ले लो भाई। अब वीकेंड पर घूमने जाना है बच्चों को छोड़ जाते हैं उन्हें बाहर कौन संभालेगा और अगर बच्चे साथ जाएंगे तो फिर हमें इसरार करके ले जाएंगे कि बाहर भी बच्चों को हम देखें । घर में कोई ज्यादा हेल्प भी नहीं करते भई मम्मी पापा की तो पेंशन आती है वह दिखती है । कुछ बोलो तो रोना शुरू हो जाते हैं ‘हमारे कितने खर्चे हैं

आपको क्या पता…? सुरेंद्र जी ने जैसे अपना दर्द बाहर निकाला।  वही तो मेरा कहना है “देखा जाए तो पिस तो हमारी पीढ़ी रही है ना… पहले मां-बाप की सुनते थे… गलत लगता था पर चुप लग जाते थे आज भी वही है । कुछ चीजें/बातें गलत लगती हैं पर फिर चुप लग जाते हैं शायद हमें संस्कार ही ऐसे मिले हैं पर फिर सोचता हूं बच्चों को भी तो हमने संस्कार दिए हैं,  उन्होंने हमें करते हुए भी देखा है तो उनमें वह फीलिंग, वह जज्बात क्यों नहीं है..?क्या वक्त बदल गया है या उनकी सोच बदल गई है…? अब क्या हम यहां भी गलत हैं ”  कहते हुए हरदीप सिंह जी चुप हो गए

दोस्तों मैं अपनी कहानी को या यूं कहिए कि जीवन के इस सच को यहीं विराम देती हूं ।आप बताएं आपका नजरिया क्या है..? जानती हूं हमारी पीढ़ी के लोग समझ जाएंगे क्योंकि अधिकतर की यही स्थिति है और गलत आज की पीढ़ी भी नहीं है उनको अपनी स्वतंत्रता अपनी खुशियां ज्यादा प्यारी हैं कमोबेश हम सब यह सुनते हैं (जब भी किसी बात के लिए समझाते हैं)  ‘यह हमारी जिंदगी है हम जैसा चाहे वैसा करेंगे ।  आपको क्या पता जमाना किधर जा रहा है….? आपकी सोच तो वही पुरानी है आप बदलना ही नहीं चाहते हो’… तो कैसा लगता है यह सब सुनने में..?आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी

शिप्पी नारंग

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