मनोरमा जी ने अपने घर में सुंदर कांड का पाठ रखा था।
बड़े जोश से तैयारियो में जुटी थी।
तभी पड़ोस में रहने वाली नेहा वहां पहुंच गई ।
मनोरमा जी अपनी बहुओं को हिदायत दे रही थी।
“अब सब अच्छी सी तैयार होकर आ जाओ।
सुन्दर सुन्दर साड़ी पहनना ।
ओर टेंट में व्यवस्था करवा रही थी।
“रमेश भाई इस टेंट के नीचे कुर्सियां लगा दो।”
तभी नजर नेहा पर पढ़ी।
“आइए नेहा जी आइए वेलकम वेलकम करते हुए नेहा को गले लगा लिया।
आंटी में आपकी बेटी जैसी हू मुझे आप नेहा कह कर बुला सकती है।
मनोरमा जी ने प्यार से नेहा के सर पर हाथ रखा ओर बोली ”
“अरे बेटी हो या बहू सम्मान की तो सब हकदार होती है।
नेहा जी।
फिर मेरी आदत भी नहीं है किसी के नाम को जिकारा बिना बोलने की।”
दोनों हस पड़ती है।
“आंटी कोई काम हो तो बताइए।”
बस बेटा एन्जॉय करना।
आज पाठ के बाद भजन सुनाना ।
तभी मनोरमा जी का रसोइया वहां पहुंच गया और बोला
” दीदी अभी घर से फोन आया है बेटे की अचानक तबीयत खराब हो गई है मैने सारा भोजन बना दिया है।
मनोरमा जी ने तुरंत अपने छोटे बेटे तरुण को आवाज लगाई ” तरुण, बाबू भाई को उनके घर छोड़ कर
आजाओ और 5000 रुपए उनको दे देना ।”
जाओ बाबू भाई बेटे का इलाज जरूरी है।”
नेहा ये सब देख रही थी उसे मनोरमा जी का व्यवहार बहुत अच्छा लगा ।
और नौकर के प्रति इतना सकारात्मक रवैया सच इसीलिए घर में नौकर टिके रहते है।
थोड़ी देर बाद सत्यनारायण की कथा प्रारम्भ हो गई।
कथा के बाद नेहा ने भी बहुत अच्छा भजन सुनाया ।
कथा व भजन की समाप्ति के बाद सब को भोजन करवाने की बारी आई।
सभी पंडित को भोजन करवाने के बाद सब बच्चो ओर
पुरुषों को बिठा दिया गया।
मनोरमा जी ने सबको बड़े प्यार से भोजन करवाया।
उसके बाद सभी महिलाओं को बिठाया गया।
अतुल मनोरमा जी का बड़ा बेटा बोला “मम्मी जी आप भी बैठ जाइए हम खिला देंगे।
सभी बहुए भी जिद्द करने लगी।
सब की जिद्द के आगे हार कर मनोरमा जी भी
बहुओं को साथ लेकर भोजन करने बैठ गई।
थोड़ी देर बाद अचानक गर्म गर्म पूरी आने लगी।
मनोरमा जी मन ही मन मुस्कुरा दी।
सबको अच्छी तरह भोजन करवा कर ,
सभी मेहमानों को प्रशाद देकर सम्मान पूर्वक विदा किया।
जब सब मेहमान विदा हो गए ।
तब मनोरमा जी अपनी बहुओं को लेकर किचन में
गई ।
किचन में गेस पर बड़ी कढ़ाई जिसमें गोल गोल फुली फुली पूरियां तेल में फुदक फुदक कर नाच नाच कर इतरा रही थी।
मानो आतुर हो रही हो किसके पेट की अग्नि जल्दी से शांत करू, किसकी जिव्हा को संतुष्ट करू।
किचन में पूरियों की महक चारो तरफ फेल रही थी।
ओर अतुल गोल गोल फुली फुली इतराती पूरियों को पलटने की कोशिश कर रहा था।
बड़ी बहू विनीता ने पूछा ” अजी आप क्या कर रहे हो?”
अतुल ने कहा ” आप सब खाना खा रहे थे बीच में ही पूरियां कम पड़ गई।
तब पहले तो चिंता हुई फिर हम दोनों भाइयों ने मिलकर
तय किया कि इस बात की किसी को हवा भी नहीं लगनी चाहिए ।
अगर राकेश भाई ,सोनू भाई ( नोकर के नाम) को कह देते तो हंगामा हो सकता था।
क्योंकि जल्दी जल्दी के चक्कर में क्या पता हम ही टेंशन क्रियेट कर देते।
और फिर पूरियां बनाओ मिशन में पापा भी शामिल हो गए।
अतुल ने आटा उसन लिया पापा ने लोई बना ली तरुण ने पूरी बेली और अतुल ने तल दी।
राकेश भाई,और सोनू भाई ने परोसने का जिम्मा ले लिया।
“पर अब पूरियां किसके लिए बन रही है?”
विनीता ने अतुल के पापा जी के हाथ से आटे की लोई लेते हुए पूछा।
अभी घर का काम संभालने वाली टीम बाकी है।
और फिर बाबू भैया को भी टिफिन देकर आना है”।
हां हां उनके पूरे परिवार का खाना ले जाना।” मनोरमा ने कहा।
तरुण की पत्नी रुचिका ने कहा “चलिए अब सबने खाना खा लिया है अब हम काम संभाल लेंगी।
आप अब भोजन करवाने की व्यवस्था देखे।”
हां ये ठीक कह रही है, पर आज आप तीनों ने बिगड़ी हुई बात को कितने अच्छे ढंग से अंजाम दिया कि किसी को कानों कान भनक नहीं लगने दी।
मुझे मेरे बच्चो पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है।
तभी पापाजी तपाक से बोल पड़े ” तो हम यूहीं मतलब।
भई बिना लोई के पुरिया कैसे बनती?
हमारे काम का तो कोई महत्व ही नहीं है”।
सब हस दिए।
मनोरमा जी बोली “हा हा आपको भी ढेर सारा धन्यवाद”
पापा जी ने फिर चुटकी ली ” प्यार से नहीं कहा”
मनोरमा जी ने बेलन दिखाते हुए कहा “अब बाहर जाइए घरमे बहुए आ गई है”।
पर अगले ही पल बहुओं को नसीहत देने लगी।
देखा “आज लड़को को काम सिखाने का नतीजा”।
विनीता बोली हा मम्मी जी आज तो हमे भी बहुत गर्व महसूस हो रहा है कि हमे आप जैसी मम्मी जी ,पापा जी और तरुण जैसा देवर मिला।
रुचिका हस कर बोली ” तो अतुल भैया पसंद नहीं आए दीदी”
चल हट ” वो सबसे बढ़ कर है”
” तो एवे ही बोल रही हो” रुचिका ने पूरियां तलते हुए कोहनी की मारते हुए बोला।
हसते मुस्कुराते सारा काम बहुत सलीके से खतम हो गया।
पर आज रुचिका और विनीता ने मन में ठान ली थी
” लड़का हो चाहे लड़की काम दोनों को पूरा सिखाना है”
बिल्कुल मम्मी जी की तरह की परवरिश करेंगे।
वास्तव में सखियों समय की मांग ही समझ लो घर काम लड़का हो चाहे लड़की दोनो को आना चाहिए।
दीपा माथुर