सर्वोदय कॉलोनी शहर का एक संभ्रांत इलाका। जहां अधिकतर काफी पढ़े लिखे उच्चस्तरीय परिवार रहते थे। ऐसे ही एक बड़ी सी कोठी थी,जज रवि माथुर जी की। रवि माथुर जी अपनी पत्नी रजनी जी और दो बच्चों के साथ रहते थे। पत्नी ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थी पर अपने पति की उच्च सरकारी नौकरी की वजह से एक अलग ही ठसक और रोब से रहती थी।
दोनों बच्चे कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्त रहते थे। रवि माथुर जी स्वभाव से जितने विन्रम थे, पत्नी रजनी जी उतनी ही मुंहफट थी। खैर ज़िंदगी इसी तरह चल रही थी। घर में सुविधाओं और नौकर-चाकर की कोई कमी नही थी। रजनी जी घर के सारे नौकरों को डांट डपट कर रखती। किसी को भी हिम्मत उनके सामने मुंह खोलने की नहीं होती थी।
ऐसे ही उनके घर में विमला नाम की कामवाली बर्तन, झाड़ू पोंछा और दूसरे अन्य छोटे कार्य के लिए आती थी। विमला बहुत अच्छे तरीके से काम करते हुए अपना घर चला रही थी। उसके भी दो बच्चे थे। उसका पति सब्जी बेचता था, दोनो पति-पत्नी की पूरी कोशिश थी कि अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दें। एक दिन जज साहब के यहां कोई बहुत बड़ी पार्टी होनी थी।
काफी बड़े-बड़े लोग आमंत्रित किए गए थे। रजनी जी ने सभी नौकरों की रेल बना रखी थी। उन्होंने विमला से भी बोला की शाम में पार्टी है वो भी काम संभालने के लिए आज यही रुके और घर से अपनी बेटी को भी बुला ले, जिससे वो भी काम में हाथ बंटा सके। पहले तो विमला कुछ नहीं बोली पर जब रजनी जी बार-बार बोलने लगी तो उसने कहा मेम साहब मैं सब संभाल लूंगी।
बिटिया की बाहरवी कक्षा की परीक्षा हैं। उसका बहुत महत्वपूर्ण साल है, इसलिए उसको नहीं बुला सकती। अब रजनी जी तो अपनेआप को रुतबे में जज साहब से भी ऊपर समझती थी उनको विमला का सभी नौकरों के सामने इस तरह उनकी बात की अवेहलना करना रास नहीं आया। उन्होनें विमला को सुनाते हुआ कहा कि तू बर्तन, झाड़ू पोंछा करती है, तुझे क्या लगता है कि कल को तेरी बेटी कलेक्टर बन जायेगी।
ज्यादा सपने मत देख।अपनी बेटी को भी अपने साथ काम पर लाना शुरू कर जिससे घर में कुछ पैसा जुड़ सके, जिससे कल को उसकी शादी में आसानी हो सके। हम जैसे लोगों की देखा- देखी मत कर। विमला रोज़ रजनी जी की बातें एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती थी पर आज बेटी को ऐसा कहना उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचा गया।
आज वो अपने को रोक नहीं पाई और बोली मेमसाब छोटा मुंह और बड़ी बात,पर आज एक बात कहती हूं वक्त का कुछ पता नहीं होता, कल को क्या हो जाए। मैं तो फिर भी अपनी मेहनत की कमाई से अपना घर चलाती हूं पर आप साब की जिस नौकरी पर इतना इठलाती है, उसमें आपका तो कुछ भी योगदान नहीं है। कल को अगर साब की नौकरी नहीं होगी तब आपको पूछने वाला तो कोई भी नहीं होगा।
उसके मुंह से ऐसा सुनकर रजनी जी अपना आपा खो चुकी थी, वो उसे नौकरी से जाने को कहती हैं, तो मुस्कराते हुए बड़े आराम से जाते हुए कहती है, मेम साब मैं भी ऐसी जगह नौकरी नहीं करना चाहती जहां गरीब के आत्मसम्मान का कोई मान ना हो।
आज रजनी जी का घमंड कुछ हद तक टूट गया था। रही-सही कसर सामने वाले घर पर खड़ी दो पड़ोसनों ने कर दी जो, आज आया ऊंट पहाड़ के नीचे कहकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी।
दोस्तों कई बार कुछ महिलाओं को पति की नौकरी का इतना घमंड हो जाता है वो खुद को ही बहुत बड़ा अधिकारी समझ लेती हैं। वो ये भी नहीं सोचती की सामने वाले का भी कुछ आत्मसम्मान होता है। हो सकता है, मेरी बात पूरी तरह सही न हो। पर मैंने इस तरह के बहुत सारे अनुभव अपने आस पास देखे हैं। अगर हम सम्मान चाहते हैं तो हमें भी सामने वाले को पूरा सम्मान देना होगा।।
#आत्मसम्मान
डॉ पारुल अग्रवाल,
नोएडा