गरीब कौन – लक्ष्मी त्यागी :  Moral Stories in Hindi

रुपाली के फोन की घंटी बजी, वो अभी अपने घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। न जाने किसका फोन आ गया ?सोचकर वह अपने फोन को देखती है। फोन उसकी मम्मी का था ,नंबर देखकर वो परेशान हो गयी ,अब न जाने क्या बात हो गयी ? मम्मी से कितनी बार कहा है ?अब आपकी उम्र हो गयी है ,घर की

साफ -सफाई के लिए किसी को रख लो !किन्तु उन्हें तो जैसे किसी की बात सुननी ही नहीं है ,घर  में काम करती रहेंगी और फिर मुझे फोन करके अपनी बिमारियों का रोना रोती रहेंगी। 

हैलो ! क्या हुआ ,अब क्या नई मुसीबत आ गई है ,थोड़ी झुंझलाहट से रुपाली ने पूछा। 

तू इतनी परेशां क्यों है ?क्या कुछ हुआ है ? उन्होंने सहजता से पूछा। 

तब रुपाली को अपने व्यवहार पर ख़ेद हुआ ,उसे लगा, उसने अपनी मम्मी से इस तरह से बात करके गलती की है। तब वो बोली -मम्मी !वो मैं कहीं ओर व्यस्त थी ,ध्यान कहीं और था, आप बताइये !कैसे फोन किया ?

तुझे एक ख़ुशख़बरी सुनानी थी इसीलिए फोन किया ,वो मुस्कुराते हुए बोलीं। 

रुपाली सोचने लगी ,ऐसी क्या बात हो सकती है ? क्या प्रभात आ रहा है ?उसने पूछा। 

नहीं ,वो अभी कहाँ आ पायेगा ?उसे आने में अभी समय है,तू ,हर बार शोर मचाती रहती थी -कोई कामवाली रख लो ! अब तेरे कहे पर मैंने एक कामवाली रख ली है 

ओह !शुक्र है ,अब आपने कोई सही कदम तो उठाया। अब आप अपनी सेहत का ध्यान रखिये !जो समय आप घर के कामों में बिताती थीं ,वो समय अब अपने योग में और अपने खाने -पीने का ख़्याल रखिएगा कहते हुए, रुपाली ने एक गहरी स्वांस ली और बोली -मम्मी !अभी मेरा बहुत काम पड़ा हुआ है ,काम निपटाकर आपसे बात करती हूँ। मैं भी अब मम्मी की तरफ से निश्चिन्त हो जाना चाहती थी।

बड़ा भाई अपने परिवार के साथ विदेश में जा बसा है ,छोटा अभी नौकरी तो करता है किन्तु अच्छी नौकरी की तलाश में भटक रहा है। मम्मी मुझसे ही ,फोन करके अपने दिल की बात कह लेतीं थीं ,उनकी बातों से मुझे लग रहा था ,अब वो समय के साथ थकने लगीं हैं। तब अक़्सर मैं, उन्हें समझाने का प्रयास करती और कहती सहारे के लिए कोई कामवाली लगा लो !अब तक उन्होंने अपने सभी

कार्य स्वयं किये हैं ,उन्हें आदत भी नहीं किसी से कहने की किन्तु अब उनके घुटनों का दर्द बढ़ गया था इसीलिए अब मैं उनसे कहती रहती थी। चलो !अच्छा ही हुआ ,जो उन्होंने काम के लिए कोई रख ली। 

मम्मी और मेरे बीच अक़्सर बातें होती रहतीं ,योग ,दवाई ,भाई की नौकरी ,पापा के स्वास्थ्य को लेकर बातें होती रहतीं। मम्मी से कभी, उनकी कामवाली के विषय में बात नहीं की, उस तरफ से मैं, निश्चिंत थी कि  उनका कार्य हो रहा है किंतु यह ध्यान नहीं दिया, कि उनसे पूछूं-उन्हें यह काम वाली कैसे मिली , कैसा काम करती है ? अभी उनकी कामवाली को लगभग 3 महीने भी पूरे नहीं हुए थे, मम्मी का फोन आया – रूपाली बेटा ! आज 15 दिन हो गए काम वाली नहीं आई है। 

क्यों, क्या बात हुई ? क्या आपने उसे काम से निकाल दिया।

 नहीं, मैंने उसे  निकाला नहीं है। 

तब वह छुट्टी के लिए कह कर गई होगी।

 उसने छुट्टी भी नहीं ली। 

तब क्या हुआ ? अब क्यों नहीं आ रही है ? क्या कुछ बात हुई है, आप मुझे ठीक से सारी बात बताइए। क्योंकि उनकी बातों से मुझे लग रहा था, वो कुछ बात तो मुझसे छुपा रही हैं । 

तब वो बोलीं  -जब मैंने  उसे काम पर लगाया था तो मुझे सीधी लग रही थी, मुझे तो काम से मतलब था, काम अच्छा कर रही थी। जरूरत के लिए कभी-कभी बीच में पैसे भी मांग लेती थी, मुझे तो पैसे देने ही थे  यही सोचकर – शायद, बेचारी गरीब है इसीलिए इसकी सहायता भी हो जाएगी धीरे-धीरे काम करती रहेगी।

 अब क्या हुआ? रूपाली ने परेशान होते हुए पूछा। 

अब बात यह है, वह मुझे यह कहती थी -कि मेरी बहू के बच्चा होने वाला है। मुझे थोड़े पैसों की जरूरत पड़ेगी, आप मेरी मदद कर देना। मुझे लगा,’ अच्छी है, यह क्या बेईमानी करेगी ? ऐसे समय में तो, सहायता करने में क्या बुराई है ?” मेरे कान खड़े हो गए”, अवश्य ही मम्मी ने ऐसा कुछ किया है, तभी वो परेशान हैं। 

 तब मैंने पूछा -आपने किस तरह की सहायता की, वह मुझसे  ₹5000 मांग रही थी और कह रही थी -‘धीरे-धीरे पैसे कटते जाएंगे या फिर मैं आपको लौटा दूंगी, मैंने गरीब समझकर उसकी सहायता कर दी, किंतु आज 15 दिन हो गए अभी तक आई ही नहीं है। मैंने तेरे पापा को भी नहीं बताया। सोचा, इसमें बताना क्या है ? बाद में दे ही देगी किंतु जब 15 दिन हो गए ,तब मुझे लगा शायद, वह पैसे लेकर भाग गई। 

आपको उसके घर का पता मालूम है ? घर का पता तो मालूम नहीं है किंतु वह बता रही थी – वह किसी इलाके से आई थी। 

बहुत अच्छे ! इतने दिनों पश्चात आपने एक कामवाली लगाई  और उस पर इतना विश्वास कर बैठीं  कि उसे ₹5000 थमा दिए।

कह रही थी, गरीब हूं, बहु को बच्चा होने वाला है, इसीलिए थोड़ी परेशानी है, दे जाऊंगी। मम्मी की बातों ने मुझे परेशान कर दिया और मैं तैयार होकर घर के लिए रवाना हो गई। बच्चों के स्कूल से आने मैं अभी समय था प्रदीप भी शाम को ही आएंगे मैंने सोचा -काम निपटाकर ,मम्मी से मिलकर जल्दी ही आ जाऊंगी। जब मम्मी के पास गई, तो वह रो रही थीं क्योंकि पापा ने उनकी बातें सुन ली थीं और वो उन पर नाराज थे। मम्मी को डांट रहे थे -‘ यह किसी पर भी ऐसे ही विश्वास कर लेती है और अब बैठी है।’ 

मम्मी रोते हुए कह रहीं थीं -उसने कहा था -गरीब हूं ,थोड़ी सहायता हो जाएगी, मैंने भी सोचा, काम तो कर ही रही है , उसमें पैसे कटते जाएंगे। मुझे क्या मालूम था? कि वह आएगी ही नहीं।

 आप आसपास किसी ऐसे इंसान को जानती हैं या ऐसे परिवार को, जिसके यहां वह काम करती थी।

 चार घर छोड़कर, उसमें काम करती है,दो -तीन घर और हैं। 

आपने उसका नंबर तो लिया होगा। 

 हां उसका नंबर मेरे पास है, लेकिन अभी वह फोन नहीं उठा रही है। 

मम्मी ने, उसके विषय में बताया -उसका नाम शारदा है , उसके तीन बेटे हैं, तीनों किसी न किसी जगह कार्य करते हैं, पोते-पोती हैं। 

 तीन-तीन बेटे कमा रहे हैं, और फिर भी आपको वह गरीब लग रही थी, वह स्वयं भी काम पर आ रही थी।

 इससे पूछो ! इसने उसका दिमाग खराब कर दिया था, उसे खाने में कभी कुछ, कभी कुछ देती रहती थी , कभी-कभी तो उसे बांधकर दे देती है, कि उसके बच्चे खा लेंगे। 

मैंने उसका नंबर लेकर अपने फोन से उसे फोन किया, उसने तुरंत ही फोन उठा लिया, तब मैंने उससे कहा -मुझे अपने घर काम करवाना है, किसी ने तुम्हारा नंबर दिया है। 

तब वो बोली -आप कहाँ रहती हैं ? मैं आ जाऊंगी।

नहीं ,मैं तुम्हारे घर आ जाती हूँ ,तब बात करते हैं ,कहकर उससे उसके घर का पता माँगा। 

मैंने,उस महिला से, जिसका नाम शारदा था ,उसके घर का पता लिया ,उसे अपने घर नहीं बुलाया, ताकि मैं उसे वहीं जाकर मिल सकूं , यह कहकर मैंने उसके घर का पता लिया और उसके घर जा पहुंची।उसके घर का पता लेने का मेरा उद्देश्य उसकी गरीबी देखने का भी था। जब मैं उसके घर पहुंची,मैंने देखा, वह पत्थर लगे,तीन मंजिले मकान में रहती थी। जिसके एक हिस्से में बड़ा बेटा

,मंझला और छोटा बेटा,जिस के साथ में स्वयं रहती थी। वहां बाहर छोटे-छोटे बच्चे,आसपास ही खेल रहे थे। शारदा, देखने में, पतली- दुबली कमजोर सी लग रही थी, जब मैं उससे उसकी उम्र पूछी तो उसने बताया -‘ वह दो कम पचास वर्ष की है।’ जब मैंने उससे पूछा – तुम्हारी कोई बहू गर्भवती भी है,तब वो मुझे ध्यान से देखने लगी ,तब मैंने कहा -ऐसे ही तुम्हारे घर का पता पूछ रही थी ,तब किसी ने बताया। 

 हां, मेरी छोटी बहू गर्भवती थी।

उसके कितने बच्चे हैं ? उससे पहले दो बेटियां हैं, और अब तीसरा बच्चा हुआ है।

तुम्हारा मकान तो बहुत अच्छा बना है।

वैसे तो ये सरकारी मकान है किन्तु सरकार क्या देती है ?मुँह बनाते हुए बोली -नाम है ,बस, ये सब तो मेरे बच्चों ने अपनी मेहनत से ठीक किया था, जिसको उसने अच्छे तरीके से बनवा लिया था। सरकारी स्कूलों में उसके पोते -पोती पढ़ने जाते थे, सरकारी सुविधा सभी मिली हुई थीं, वह तो खूब मजे में रह रही थी,सरकारी चावल तो वे लोग खाते ही नहीं ,बेच देते हैं, बेकार चावल, कौन खाये ?

मैं देख रही थी , उसकी कद- काठी ही ऐसी थी, उसे देखकर लगे -बेचारी गरीब है। इस उम्र में कार्य कर रही है, लेकिन इसका वह बखूबी लाभ उठा रही थी जिनके बड़े-बड़े घर हैं और उनके बच्चे वहां नहीं रहते हैं। उनसे खाने- पीने का सामान लाती है, महीने की पगार अलग। मैं सोच रही थी -यह कैसी गरीब है ? ऐसे गरीब ! गरीब, बनकर लोगों की भावनाओं से खेलते हैं। 

मैंने उससे पूछा -क्या तुम किसी सावित्री जी के यहां काम करती हो ? पहले तो वह सोचने का अभिनय करने लगी, तब बोली -हां……  उनके यहां काम तो करती थी, किंतु वह बुढ़िया बड़ी चिक-चिक करती है। अब मुझे उसके यहां काम नहीं करना है। तुम उसे कैसे जानती हो ?उसकी बात सुनकर मुझे बहुत क्रोध आया और उससे कहा -मैं, उसी बुढ़िया की बेटी हूँ ,जिससे तुम पांच हजार रूपये लेकर आई थीं। 

वो एकदम से सफेद पड़ गयी और बोली -कौन से पांच हज़ार ? मैंने कोई पैसा नहीं लिया। 

तुम झूठ बोल रही हो ,तुम उनसे बहु के बच्चे होने के नाम पर, पैसे लाई हो ,तुम्हें काम नहीं करना है ,मत करो !किन्तु मुझे वो पैसे वापस करो !वरना मैं पुलिस को बुलाऊंगी। 

पुलिस की धमकी देने पर रोने लगी और रोते हुए बोली -हम गरीब आदमी ,मेहनत -मजदूरी करने वाले हैं। वो हमारी मेहनत का पैसा है ,तुम्हारी माँ ने मेरे काम के पैसे दिए हैं ,कोई ख़ैरात में नहीं दिए, वो भी जितने मेरे बनते थे उतने ही दिए हैं। उनके पास क्या सबूत है ?उन्होंने मुझे पैसे दिए हैं ,हो सकता है ,किसी और को दिए हों और मेरा नाम लगा दिया।

 उसकी बात सुनकर रुपाली को बड़ा क्रोध आया और वो पुलिस थाने  की तरफ चल पड़ी ,उसे ज्यादा दूर जाना नहीं पड़ा और रास्ते में ही,उसे एक पुलिसवाला मिल गया। उसे मैंने सम्पूर्ण बात बताई ,सारी बातें सुनकर वो बोला -आपको क्या लगता है ?वो तुम्हारे पैसे वापस करेगी ,अगर उसे वापस करने ही होते तो इस तरह झूठ बोलकर न ले जाती। तुम्हारी मम्मी की भी गलती नहीं है ,उन्होंने इंसानियत के

नाते, उसकी सहायता करनी चाही किन्तु ये कलयुग है। इंसानियत किस पर दिखानी है, किस पर नहीं ,यह पता ही नहीं चलेगा। जिसकी आप बात कर रहीं हैं ,उनका राशन मुफ़्त ,बच्चे पैदा करने पर भी पैसा मिलता है ,बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं। सभी सुविधाएँ मिली हैं, आरक्षण है, फिर भी ये लोग गरीब हैं ,बाक़ी की पूर्ति तुम्हारी मम्मी जैसे लोग कर देते हैं। अब आप आगे से जो भी कामवाली लगाएं बड़े सोच -समझकर लगाएं। आप कहें, तो मैं आपके साथ चल सकता हूँ किन्तु अपने  पैसे वापस मिलने की उम्मीद छोड़ दें !ख्वाहमख़ाह बखेड़ा ही हो जायेगा। 

निराश रुपाली घर वापस आ गयी और अपनी मम्मी से बोली -आपको क्या आवश्यकता थी ,इंसानियत दिखाने की आज के समय में ऐसे भिखारी भी हैं ,जो करोड़पति हैं। अपना देखो !

हुआ, क्या है ? क्या वो नहीं मिली ?

मिली क्यों नहीं ?उसका भरा -पूरा परिवार है ,उसकी शक्ल ही गरीब जैसी है। उसके पास सरकार की मेहरबानी से ,तीन मकान हैं , जिसमें उसके तीनो लड़के और उनका परिवार रहता है। आपको पता है ,हम रईस हैं ,ऐसा आपको लगता है। आपका एक बेटा जो अब पैंतीस वर्ष का हो गया है ,जिसने तैंतीस की उम्र में विवाह किया ,ताकि वो अपने” पैरों पर खड़ा हो सके”अपने परिवर को बेहतर

ज़िंदगी दे सके। पति -पत्नी दोनों कमाते हैं ,विवाह के पश्चात उनके एक बेटी हुई ,दूसरा बच्चा बनाने की हिम्मत ही नहीं है ,समय भी नहीं है। इतना खर्चा कौन करेगा ?दूसरा बत्तीस का हो गया है ,वो अभी लड़की ही ढूंढ़ रहा है, ,किसी बेहतर नौकरी की तलाश में है। स्वयं मेरा विवाह उनत्तीस साल की उम्र में हुआ। आपका खर्चा पापा की पेंशन से चल रहा है ,और आगे तो सरकार ने पेंशन ही समाप्त

कर दी। यदि पापा की पेंशन न होती तो, आप लोगों के खर्चे कैसे चलते ?कभी सोचा है ,इस उम्र में कहाँ जातीं ? आपको वो औरत ग़रीब नजर आ रही थी। उसका परिवार उसके साथ है ,अच्छा- ख़ासा सभी कमा रहे हैं ,एक की आरक्षण के माध्यम से नौकरी लगी है। दूसरा किसी डॉक्टर के यहाँ है ,तीसरे का अपना व्यापार है। जिसके नाम से वो पैसे मांगकर ले गयी ,उसकी वो तीसरी औलाद है ,दो बेटियां पहले से ही हैं। 

यदि वो ग़रीब है ,तो उसे या उसके बच्चों को इतनी महंगाई में तीन -तीन बच्चे बनाने की क्या आवश्यकता थी ?जिस उम्र में मेरा विवाह हुआ, उस उम्र में उसके बड़े बेटे के दो बच्चे हो चुके थे। ये बुढ़िया गरीबी का रोना रोकर आप जैसियों को न जाने कितना चलाती हैं। वो बुढ़िया लगती है ,है नहीं

,अभी वो अड़तालीस की है, आठ पोते -पोतियों की दादी बनी बैठी है और आप साठ की होकर भी एक पोते की दादी नहीं बन सकीं क्योंकि महंगाई और खर्चों के ड़र ने आगे बढ़ने ही नहीं दिया। क्या इन लोगों के लिए महंगाई नहीं हुई है। आपके बच्चे दूर -दूर हैं ,आप यहां अकेली और उसका परिवार

उसके साथ है। तुम लोग कैसे अमीर हो ?रिश्तों से भी ग़रीब ,यदि आपको कभी कोई परेशानी आ जाये, तो अपने रिश्तेदार भी आकर खड़े न हों और वहां उसका पूरा परिवार और मोहल्ले के लोग थे।

 कभी ठंडे दिमाग़ से सोचा है- ग़रीब कौन है ?वो या हम। हम आधी ज़िंदगी तो सोचने में ही बिता देते हैं ,उम्र का एक पड़ाव पार कर आगे बढ़ने की सोचते हैं। तब तक उनका घर- परिवार आगे बढ़ जाता है ,वे चिंता नहीं करते, बच्चे कैसे पलेंगे ? क्योंकि गरीबों की सहायता के लिए आप जैसे लोग और सरकार जो बैठी है ,मुफ़्त का राशन बाँटने के लिए…… क्रोध में रुपाली ने अपनी माँ को खूब सुनाया

,जब थक गयी तो थोड़ा पानी पिया और माँ से बोली -उन लोगों को आदत बन चुकी है ,मांगने में भी, जोर नहीं पड़ता। गरीबी ,बेचारगी ,विवशता का वास्ता देकर अपना ‘उल्लू सीधा करते’ हैं। ऐसे लोगो से सावधान होने की आवश्यकता है। आजकल ग़रीब ऐसे ग़रीब नहीं रहे ,जो वास्तव में गरीब हैं या जिन्हें

  सहायता की आवश्यकता है ,उन्हें सही मायनों में सहायता नहीं मिल पाती ,मिलती भी हो तो, हमें नहीं मालूम। सहायता करना अच्छी बात है किन्तु आजकल सतर्क रहने की भी उतनी आवश्यकता है। बोलते -बोलते जैसे रुपाली थक गयी थी इसीलिए बोली -लाओ !मम्मी खाना दो !अब मैं थोड़ा थक गयी हूँ , थोड़ा सोऊंगी। 

सावित्री  जी सोच रहीं थीं -सही तो कह रही है ,कमाने के लिए बच्चे बाहर विदेश में पड़े हैं ,छोटे का अभी विवाह नहीं हुआ और ये लोग…… अपनी सहूलियत से जीवन जी रहें हैं। मांगने में इन्हें शर्म नहीं आती ,और हम रिश्तों से भी गरीब है। 

                 ✍🏻 लक्ष्मी त्यागी

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