सुनिए जी आपका ये बात बात पर गरम होने के स्वभाव की वजह से बच्चे आपसे कहीं दूरियां न बढ़ा ले..
कामिनी ने अपने पति सुबोध से कहा जो रोज ऑफिस से आते ही खेल कूद कर रहे , हल्ला गुल्ला कर रहे बच्चों को झिड़क देता ये कहकर कि तुम लोग शांत नही रह सकते क्या थोड़ी देर, जाओ दोनो अपने अपने कमरे में जाकर पढ़ो।
जब भी बच्चे उसे अपने मन की बात बताना चाहते ,बता नही पाते थे क्योंकि पता नही वो कौनसी बात पर कब गरम (क्रोधित) हो जाए। बच्चे कामिनी से कहकर ही अपनी बात मनवाना पसंद करते थे क्योंकि सुबोध या तो उन्हें डांट देता या फिर बात मानने से इंकार कर देता।
कामिनी ये क्या कह रही हो तुम? मेरे बच्चे भला मुझसे दूर कैसे होंगे ? सुबोध चिंतित होते हुए बोला
आप बच्चों के पास कभी बैठते ही नही, कभी उनके मन को जानने की कोशिश नही करते , हंसते मुस्कुराते हो कभी?
हमेशा माथे पर सिलवटें आई हुई रहती हैं आपके
बच्चे अब उम्र के जिस पड़ाव से गुजर रहे हैं वहां उन्हें माता पिता का भरपूर प्यार और समय चाहिए जो आप बस बात बात पर गरम हो कर ही उन्हें दिखाते हो
मुझे आपकी चिंता है सुबोध कि बुढ़ापे में कहीं ये दूरियां आपको अकेलेपन का शिकार न बना दे । जैसे आप बच्चों की जरूरत पूरी करते हो वैसे ही वो भी बस आपकी जरूरत पूरी करने तक ही सीमित हो जाएं। मैने अपने नानाजी और नानी को देखा है जो अपने दोनो बेटों के होते हुए भी अकेले ही हैं
मामा ,उनके गरम स्वभाव के चलते उनसे कभी जुड़ ही नही पाए और अब भी बस नौकरों के भरोसे उनको छोड़ रखा है।
कामिनी कहते कहते भावुक हो गई
सुबोध आने वाली समस्या शायद समझ चुका था इसलिए कामिनी से वादा किया कि अब से वो गरम स्वभाव को बदलने की पूरी कोशिश करेगा।
बच्चों को आवाज़ लगाई और उनकी मनपसंद आइसक्रीम खिलाने के बहाने उनके साथ समय बिताने चल दिया
ये उपाय कारगर सिद्ध हुआ और अब बच्चे सुबोध से अपने मन की बातें खुलकर करने लगे थे।
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन